मणिपुर का जातीय संघर्ष एक बार फिर सुर्खियों में है. 23 अप्रैल 2025 यानि बुधवार को राज्य के कमजोंग ज़िले के दो गांवों गम्पाल और हैयांग में अज्ञात लोगों ने 28 घरों में आग लगा दी.
ये गांव म्यांमार सीमा के नज़दीक हैं और यहां की आबादी मुख्यतः कुकी-जो समुदाय से है. हमले के वक्त अधिकांश ग्रामीण अपने खेतों में काम कर रहे थे. इसलिए हमलावरों को दिनदहाड़े गांव में तबाही मचाने का मौका मिल गया था.
हालिया हमले के बाद ज़िला प्रशासन ने तुरंत धारा 163 (BNSS) के तहत इलाके में निषेधाज्ञा लागू कर दी है और प्रभावित इलाके में कर्फ़्यू भी लगा दिया गया है.
जिलाधिकारी रंगनामेई रांग पीटर द्वारा जारी आदेश में लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने पर रोक लगाई गई है. किसी भी प्रकार की गतिविधि जो कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है, उस पर पाबंदी भी लगा दी गई है.
यह हमला उस ज़िले में हुआ है जहां अब तक हिंसा की कोई घटना नहीं हुई थी. यह नागा बहुल इलाका है. कुकी-जो समुदाय की तरह यह भी एक ईसाई इलाका ही हैं.
इसी कारण यह घटना और भी चिंताजनक बन जाती है क्योंकि इससे दो ईसाई जनजातियों – नागा और कुकी के बीच अविश्वास का बीज बोने की आशंका है.
कुकी इंपी मणिपुर और कुकी छात्र संगठन ने इस घटना की कड़ी निंदा की है.
यह घटना उस वक्त सामने आई है जब मणिपुर में दो साल पहले भड़की जातीय हिंसा की दूसरी बरसी (3 मई) बस कुछ ही दिन दूर है.
मैतेई और सरकार को नाराज करने वाली बात यह है कि कुकी-बहुल चुराचांदपुर जिले में कुकी संगठनों ने 3 मई को “पृथक्करण” दिवस के रूप में याद करने का फैसला किया है, जो 3 मई, 2023 को शुरू हुए मैतेई-कुकी संघर्ष के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में होगा.
जनजातीय नेताओं के मंच द्वारा चुराचांदपुर में एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. चुराचांदपुर में ही सबसे पहले हिंसा भड़की थी.
कुकी तब से ही मीतेई बहुल घाटी से अलग-थलग हैं और संघर्ष को समाप्त करने के लिए केंद्र शासित प्रदेश के रूप में “अलग प्रशासन” की मांग कर रहे हैं.
आदिवासी संगठनों ने मांग की है कि पीड़ित परिवारों को उचित मुआवज़ा दिया जाए और गांवों को दोबारा बसाया जाए. स्थानीय लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए “निरपेक्ष सुरक्षा बलों” की तैनाती करने की मांग भी इन संगठनों ने की है.
कुकी इंपी मणिपुर और कुकी छात्र संगठन का कहना है कि यह हमला न सिर्फ निर्दोष कुकी नागरिकों को आतंकित कर रहा है बल्कि मणिपुर की पहले से नाज़ुक शांति व्यवस्था को और भी खतरे में डाल रहा है.
उनके अनुसार, सरकार को निष्पक्षता, तत्परता और ईमानदारी से कार्य करना चाहिए ताकि गम्पाल, हैयांग और कुकी समुदाय के अन्य इलाकों में फिर से विश्वास और शांति लौट सके.
मणिपुर में यह विवाद मुख्य रूप से जमीन और आरक्षण को लेकर कुकी-जो और मेइती समुदाय के बीच है.
वर्ष 2023 में राज्य सरकार ने मैतई समुदाय को जनजातीय दर्जा देने का प्रयास किया गया था जिसका विरोध आदिवासी समुदायों ने किया.
इस दर्जे से मैतई लोगों को सरकारी नौकरियों, शिक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण मिलने के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीदने का अधिकार भी मिल जाता. लेकिन कुकी-जो नेताओं का कहना है कि इससे उनके समुदाय के लिए सीमित संसाधनों पर और दबाव पड़ेगा और एक प्रभावशाली समुदाय को अनुचित लाभ मिलेगा.
मणिपुर 13 फरवरी से राष्ट्रपति शासन के अधीन है और संघर्ष को समाप्त करने के प्रयास जारी हैं.
केंद्र सरकार ने हालात को सामान्य करने के लिए त्रिपक्षीय वार्ता शुरू की है. बावजूद इसके, दो साल बाद भी मणिपुर की स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो सकी है और हालिया घटनाएं यह संकेत दे रही हैं कि वहां की आग अभी पूरी तरह बुझी नहीं है.