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मिलिए सबसे युवा से लेकर तीन बार झारखंड के सीएम बनने वाले आदिवासी नेता हेमंत सोरेन से

अपने पूरे राजनीतिक सफर में सोरेन राज्य में आदिवासी समुदाय के एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं. उन्होंने सामाजिक कल्याण पहलों पर ध्यान केंद्रित किया है, जैसे कि 'आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार' कार्यक्रम, जो सेवाओं की डोरस्टेप डिलीवरी सुनिश्चित करता है और राज्य सरकार की पेंशन योजना का विस्तार करता है.

पांच महीने पहले जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी तो उन्होंने तुरंत पद से इस्तीफा दे दिया था और चंपई सोरेन (Champai Soren) को सीएम की कुर्सी पर बिठाया था.

कुछ दिनों तक उनकी पत्नी कल्पना (Kalpana Soren) अपने पति की रिहाई के लिए लड़ती रहीं, जेल से अपने पति के संदेश पहुंचाती रहीं.

अब सोरेन एक बार फिर झारखंड के मुख्यमंत्री (Chief minister of Jharkhand) के रूप में वापस आ गए हैं. उन्होंने गुरुवार रात को तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली है.

पहले यह खबर आई थी कि हेमंत सोरेन 7 जुलाई को झारखंड के नए सीएम के तौर पर शपथ लेंगे लेकिन बाद में यह बात सामने आई कि सोरेन गुरुवार को ही शपथ लेंगे.

राजधानी रांची स्थित राजभवन में राज्यपाल ने हेमंत सोरेन को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई है. राजभवन में आयोजित शपथग्रहण समारोह में हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन भी नजर आए.

इसके अलावा हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में कल्पना सोरेन और राज्य के पूर्व सीएम चंपई सोरेन भी नजर आए. साथ ही कांग्रेस के कई नेता भी राजभवन में शपथ समारोह में नज़र आए.

28 जून को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में झारखंड हाई कोर्ट द्वारा रिहा किए जाने के बाद वे मुख्यमंत्री बने हैं.

हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर

38 साल की उम्र में झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने सोरेन कथित तौर पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की पहली पसंद नहीं थे. हालांकि 2009 में उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन की असामयिक मृत्यु ने उन्हें झामुमो का एक महत्वपूर्ण चेहरा बना दिया.

सोरेन ने 2009 में राज्यसभा सदस्य के रूप में अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत की. हालांकि उन्होंने जल्द ही 2010 में झारखंड में भाजपा के नेतृत्व वाली अर्जुन मुंडा सरकार में उपमुख्यमंत्री की भूमिका संभालने के लिए इस्तीफा दे दिया. लेकिन सरकार के पतन के दो साल बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था.

बाद में वे कांग्रेस और आरजेडी के समर्थन से 2013 में राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. हालांकि, एक साल बाद ही उनकी सरकार गिर गई. क्योंकि 2014 में भाजपा ने सत्ता हथिया ली और रघुबर दास मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद सोरेन ने विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई.

सोरेन ने 2016 में सरकार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया. जब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए आदिवासी भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति देने के लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन करने का प्रयास किया.

बाद में वे कांग्रेस और राजद के समर्थन से 2019 में सत्ता में वापस आए, जिसमें झामुमो ने 81 में से 30 विधानसभा सीटें हासिल की थी.

इस बीच 2022 में मुख्यमंत्री बनने के बाद खनन पट्टे के नवीनीकरण के आरोपों के कारण उन्हें विधायक के रूप में अयोग्य ठहराए जाने का जोखिम भी उठाना पड़ा. उसी वर्ष, राज्य के तीन कांग्रेस विधायकों को पश्चिम बंगाल में लगभग 49 लाख रुपये नकद के साथ पकड़ा गया था.

जिस पर सोरेन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने आरोप लगाया था कि यह भाजपा द्वारा सरकार को गिराने के प्रयास का हिस्सा था.

अपने पूरे राजनीतिक सफर में सोरेन राज्य में आदिवासी समुदाय के एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं. उन्होंने सामाजिक कल्याण पहलों पर ध्यान केंद्रित किया है, जैसे कि ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार’ कार्यक्रम, जो सेवाओं की डोरस्टेप डिलीवरी सुनिश्चित करता है और राज्य सरकार की पेंशन योजना का विस्तार करता है.

वह यह सुनिश्चित करने के भी मुखर समर्थक रहे हैं कि राज्य में खनन गतिविधियों का आर्थिक लाभ आदिवासी आबादी तक पहुँचे.

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