मध्य प्रदेश के जबलपुर के कुंडम तहसील में स्थित शासकीय सीनियर आदिवासी छात्रावास हरदौली कला में एक दुखद घटना सामने आई है.
यहां 20 अगस्त को छात्रावास में रह रहे बच्चों ने सुबह का खाना खाया, जिसके तुरंत बाद 14 छात्रों की तबीयत बिगड़ गई.
इनमें से एक छात्र राजाराम बैगा की मौत हो गई.
राजाराम भारत सरकार की संरक्षित जनजाति बैगा समुदाय का था.
यह घटना न केवल आदिवासी बच्चों के लिए बनाए गए इस छात्रावास की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि प्रशासन की लापरवाही भी उजागर करती है.
राजाराम बैगा जबलपुर और डिंडोरी जिले की सीमा पर स्थित बिल्टुकारी गांव का रहने वाला था.
उसका परिवार गरीब था और उसके पिता छोटेलाल बैगा मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते थे.
राजाराम पढ़ाई में ठीक था, इसलिए उसके पिता ने उसे बेहतर शिक्षा और जीवन के लिए हरदौली के आदिवासी छात्रावास में भेजा था.
छोटेलाल को उम्मीद थी कि वहां के सुरक्षित और साफ-सुथरे वातावरण में उसका बेटा अच्छे से पढ़ाई करेगा और उसका भविष्य संवर जाएगा.
लेकिन इस उम्मीद के बीच व्यवस्था की गड़बड़ी ने उनके बेटे की जान ले ली.
20 अगस्त को सुबह के समय छात्रावास में 14 छात्र मौजूद थे.
सभी ने एक साथ खाना खाया, लेकिन जैसे ही खाना खत्म हुआ, सभी छात्रों की तबीयत खराब होने लगी.
वे पेट दर्द, उल्टी और चक्कर जैसी समस्याओं से परेशान हो गए.
बच्चों ने अपने घरवालों को तुरंत फोन किया, और कुछ ही समय में उनके परिजन छात्रावास के पास इकट्ठा हो गए.
इसी दौरान हरदौली गांव के सरपंच शाहमन मरावी भी वहां से गुजर रहे थे.
उन्होंने देखा कि छात्रावास के बाहर काफी लोग जमा थे, तो उन्होंने पूछताछ शुरू की. परिजनों ने बताया कि बच्चों को खाना खाने के बाद पेट में तेज दर्द हो रहा है.
सरपंच शाहमन मरावी ने तुरंत छात्रावास के अधीक्षक गोविंद मेहरा को फोन किया, लेकिन अधीक्षक मौके पर नहीं पहुंचे.
उन्होंने बच्चों को अस्पताल ले जाने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि एक झोलाछाप डॉक्टर को भेज दिया.
इस लापरवाही के कारण कुछ बच्चों की हालत और बिगड़ गई.
परिजन बच्चों का इलाज कराने के लिए दबाव डालने लगे और कई बच्चों को घर ले जाने लगे.इसी बीच राजाराम की हालत गंभीर हो गई और वह घर पर ही दुनिया छोड़ गया.
घटना के बाद प्रशासन भी सक्रिय हुआ. जबलपुर के जिला पंचायत सीईओ अभिषेक गहलोत और अन्य अधिकारी कुंडम रवाना हुए ताकि वे स्थिति का जायजा ले सकें.
बाकी बच्चों को कुंडम के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है.
इस पूरे मामले में छात्रावास की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं.
सरपंच शाहमन मरावी का कहना है कि हॉस्टल का अधीक्षक गांव में भी नहीं आता और छात्रावास मजदूरों के भरोसे चल रहा है.
छात्रों ने भी आरोप लगाया है कि उन्हें कई बार सड़ा हुआ और खराब खाना दिया जाता है, जो इस पूरे हादसे की मुख्य वजह माना जा रहा है.
यह घटना न केवल एक बच्चे की मौत का कारण बनी है, बल्कि आदिवासी बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा के लिए बनाए गए संस्थानों की सच्चाई को भी सामने ला रही है.
जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही ने न केवल बच्चों की जान को खतरे में डाला है, बल्कि उनके परिवारों के सपनों को भी तोड़ दिया है.