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आदिवासी विकास निगम में 28 करोड़ के घोटाले में अधिकारी पर गिरी गाज

28 करोड़ का अनाज घोटाला, आदिवासियों के हक पर डाका और एक अधिकारी की बर्खास्तगी... लेकिन कैसे हुआ इतना बड़ा नुकसान?

महाराष्ट्र राज्य सहकारी आदिवासी विकास निगम (Maharashtra State Cooperative Tribal Development Corporation) ने पालघर ज़िले के जाव्हार कार्यालय में कार्यरत एक क्षेत्रीय प्रबंधक को सेवा से बर्खास्त कर दिया है.

यह कार्यवाही वर्ष 2022-23 में अनाज की खरीद और वितरण के दौरान हुई गंभीर अनियमितताओं के आधार पर की गई है.

कितना नुकसान हुआ?

सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार, इन अनियमितताओं के कारण सरकारी खजाने को कुल 27.91 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है.

यह अनाज आदिवासी कल्याण योजनाओं के तहत खरीदा और वितरित किया जाना था.

निगम की जांच में यह पाया गया कि जाव्हार स्थित कार्यालय में तैनात तत्कालीन क्षेत्रीय प्रबंधक ने अपने पद की जिम्मेदारियों का निर्वहन सही तरीके से नहीं किया.

उन्होंने विभाग के कामकाज पर नियंत्रण नहीं रखा और न ही समय रहते गड़बड़ियों को रोका, जिस वजह से इतना बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ.

इस मामले में पहले ही शाहपुर, खिणवली, जाव्हार, कर्जत और टोकावडे पुलिस थानों में कई एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं.

यह गड़बड़ियां सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि कई इलाकों में फैली हुई थीं.

क्या कार्रवाई हुई?

जांच रिपोर्ट और दस्तावेज़ों के आधार पर निगम ने पहले अधिकारी को निलंबित किया था.

अब उन्हें सेवा से पूरी तरह बर्खास्त कर दिया गया है.

इसके साथ ही सरकार का जो नुकसान हुआ है, उसकी पूरी राशि उनसे व्यक्तिगत रूप से वसूलने का आदेश भी दिया गया है. ये रकम 27,91,55,232 रुपये है.

वसूली कैसे होगी?

निगम ने ज़िलाधिकारी को राजस्व वसूली प्रमाणपत्र (Revenue Recovery Certificate – RRC) जारी करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है.

सरकार के पास एक विशेष तरीका होता है जिससे वह किसी से पैसा (जैसे जुर्माना, नुकसान की भरपाई आदि) वसूल सकती है. इसे राजस्व वसूली प्रमाणपत्र कहा जाता है.

उदाहरण के लिए जैसे कोई व्यक्ति ज़मीन का टैक्स नहीं देता तो सरकार उसकी ज़मीन या संपत्ति ज़ब्त करके टैक्स वसूल सकती है.

ठीक उसी तरह इस मामले में सरकार उस अधिकारी से पैसे वसूलने के लिए राजस्व वसूली प्रमाणपत्र का इस्तेमाल करेगी. अगर वो पैसा नहीं देता तो उसकी संपत्ति ज़ब्त करके सरकार अपनी रकम वसूल सकती है.

आदिवासी कल्याण योजनाएं समाज के सबसे कमजोर वर्गों तक सहायता पहुंचाने के लिए बनाई जाती हैं.

ऐसे में यदि इन योजनाओं में भ्रष्टाचार होता है, तो इसका सीधा असर ज़रूरतमंदों पर पड़ता है.

महाराष्ट्र राज्य सहकारी आदिवासी विकास निगम ने यह कार्यवाही करके स्पष्ट कर दिया है कि आदिवासी समुदाय के विकास के लिए बनाए गए संसाधनों में किसी भी प्रकार की लापरवाही या गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

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