दक्षिण गुजरात में पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ो परियोजना के खिलाफ तीन साल के अंतराल के बाद फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू करते हुए 14 अगस्त को वलसाड के धरमपुर क्षेत्र में एक रैली की घोषणा की गई है.
प्रभावित क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों के 5 हज़ार से अधिक लोगों के इस प्रदर्शन में भाग लेने की उम्मीद है.
विरोध प्रदर्शन की देखरेख कर रही आदिवासी समिति के सदस्यों ने धरमपुर के पास नादगधारी गांव में बैठक की और विरोध प्रदर्शन को फिर से शुरू करने की रणनीति बनाई.
दरअसल, संसद में एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) पेश किए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू हो गया.
वांसदा से कांग्रेस विधायक अनंत पटेल ने कहा, “2022 के विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मई में सूरत दौरे के दौरान इस परियोजना को रद्द करने की घोषणा की थी. लेकिन अब लोकसभा में एक डीपीआर पेश किया गया है और हज़ारों आदिवासी जीवनयापन के लिए फिर से विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर हो गए हैं.”
इस परियोजना में तीन नदियों – (महाराष्ट्र के नासिक से निकलकर वलसाड से होकर बहने वाली), तापी (सापुतारा से निकलकर महाराष्ट्र और गुजरात के सूरत से होकर बहने वाली) और नर्मदा (मध्य प्रदेश से निकलकर महाराष्ट्र और गुजरात के भरूच और नर्मदा जिलों से होकर बहने वाली) को जोड़ना शामिल है.
ताकि पश्चिमी घाट के सरप्लस क्षेत्रों से नदी के पानी को सौराष्ट्र और कच्छ के पानी की कमी वाले क्षेत्रों में ट्रांसफर किया जा सके.
1980 के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत 40 साल पहले परिकल्पित इस परियोजना, जिसमें कई बांध बनाने का प्रस्ताव है… उसको विरोध के कारण कई बार स्थगित किया गया.
साल 2022 में केंद्रीय बजट भाषण में इस परियोजना का ज़िक्र होने पर दक्षिण गुजरात में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए.
हाल ही में संसद में इसका ज़िक्र होने के बाद अपने घर खोने के डर से लगभग 1 लाख आदिवासियों ने फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है.
2022 में गठित ग्राम समितियों को फिर से संगठित किया जा रहा है ताकि लोगों को इस परियोजना के प्रभावों के बारे में जागरूक किया जा सके.
दक्षिण गुजरात में बांधों और नहरों के जाल के कारण डांग और वलसाड का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा.
अनंत पटेल ने आगे कहा, “पहले सात बांधों की योजना बनाई गई थी, लेकिन अब डीपीआर विवरण में दो और बांध जोड़ दिए गए हैं. करीब 30 हज़ार परिवार प्रभावित होंगे. उनके गांव, खेत और आजीविका बांध के पानी में डूब जाएंगे.”
वहीं आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता कल्पेश पटेल ने कहा, “पीढ़ियों से अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ सद्भाव से रह रहे आदिवासी समुदाय को लगता है कि यह परियोजना उनकी पारंपरिक जीवनशैली के लिए ख़तरा है. उन्हें विस्थापन, आजीविका के नुकसान और अपनी पैतृक ज़मीन के नष्ट होने का डर है.”
पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना क्या है?
पार-तापी-नर्मदा नदी-लिंक परियोजना का उद्देश्य महाराष्ट्र के पश्चिमी घाटों से ‘अतिरिक्त’ जल को गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के कम पानी वाले क्षेत्रों में “सिंचाई, जलविद्युत और जल आपूर्ति लाभ” के लिए स्थानांतरित करना है.
इस परियोजना में तीन नदियों – पार, तापी और नर्मदा को एक नहर के माध्यम से जोड़ा जाएगा, जो महाराष्ट्र और गुजरात दोनों के जिलों से होकर बहती हैं. इस परियोजना में सात बांध, तीन बांध और छह बिजलीघरों का निर्माण भी शामिल है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2022 को अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि पार-तापी-नर्मदा सहित पांच नदी-जोड़ परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) को अंतिम रूप दे दिया गया है.
उन्होंने आगे कहा कि “लाभार्थी राज्यों के बीच आम सहमति बनने के बाद केंद्र कार्यान्वयन के लिए सहायता प्रदान करेगा.”
हालांकि, प्रस्तावित परियोजना की घोषणा के बाद से ही इसमें रुकावटें आ रही थीं, आदिवासी इलाकों के निवासियों ने अपने प्रत्याशित विस्थापन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए.
कांग्रेस ने इन विरोध प्रदर्शनों का मुखर समर्थन किया था. जबकि गुजरात भाजपा अध्यक्ष सी.आर. पाटिल ने भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से परियोजना पर पुनर्विचार करने की अपील की थी.
परियोजना की घोषणा के बाद से क्षेत्र के निवासी, खासकर आदिवासी इलाकों में ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किया था. इस दौरान गुजरात कांग्रेस ने भी आदिवासियों की ओर से मोर्चा संभाला और नदी-जोड़ो परियोजना के खिलाफ रैलियों में हिस्सा लिया.
हालांकि, वो चुनावी साल था और राज्य भाजपा नेतृत्व इन विरोध प्रदर्शनों से असहज दिखा और वो आदिवासी समुदाय को अलग-थलग करने से बचना चाहता था. इसलिए चुनाव से पहले परियोजना को रद्द कर दिया गया.
इससे पहले मई 2010 में गुजरात, महाराष्ट्र और केंद्र ने पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना की डीपीआर तैयार करने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे.
जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध 2017 के दस्तावेज़ों के मुताबिक, तत्कालीन जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने 25 सितंबर 2017 को महाराष्ट्र और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों, देवेंद्र फडणवीस और विजय रूपाणी के साथ एक बैठक की थी.
इस बैठक में दोनों भाजपा मुख्यमंत्रियों ने परियोजना को लागू करने पर सहमति व्यक्त की थी.
गडकरी ने 16 जनवरी 2018 को महाराष्ट्र और गुजरात सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ स्थिति की समीक्षा के लिए एक और बैठक की.
इसके बाद भी कई अन्य बैठकें हुईं, जिनमें से एक बैठक 7 सितंबर 2018 को दोनों राज्यों के तत्कालीन मुख्य सचिवों द्वारा परियोजना के कार्यान्वयन हेतु समझौता ज्ञापन को अंतिम रूप देने के लिए बुलाई गई थी.