झारखंड के कई इलाकों में मंगलवार को माहौल तनावपूर्ण रहा. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य में 12 घंटे का बंद बुलाया.
यह बंद उस पुलिस कार्रवाई के विरोध में किया गया जिसमें आदिवासी प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े गए थे.
यह घटना चाईबासा और आस-पास के इलाकों में हुई.
मामला उस समय शुरू हुआ जब स्थानीय आदिवासी ग्रामीणों ने भारी वाहनों और खनन ट्रकों के खिलाफ विरोध शुरू किया.
इन ट्रकों की वजह से सड़कों पर लगातार हादसे हो रहे थे.
ग्रामीणों का कहना था कि ये बड़े-बड़े वाहन स्कूलों और बस्तियों के बीच से गुजरते हैं, जिससे बच्चों और आम लोगों की जान को खतरा बना रहता है.
उन्होंने मांग की थी कि इन वाहनों -को दिन में चलने से रोका जाए, ताकि लोगों की सुरक्षा बनी रहे.
ग्रामीणों ने इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण धरना शुरू किया था. कई लोग बैनर और तख्तियाँ लेकर सड़कों पर बैठे थे.
वे सिर्फ इतना चाहते थे कि प्रशासन उनकी बात सुने और कोई ठोस फैसला करे. लेकिन देर रात पुलिस मौके पर पहुंची और लोगों को हटाने लगी.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के लाठीचार्ज कर दिया और आंसू गैस के गोले छोड़े.
इससे कई लोग घायल हो गए और अफरा-तफरी मच गई.
इस घटना के बाद झारखंड में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया.
भाजपा ने कहा कि यह घटना बेहद शर्मनाक है और यह राज्य सरकार की नाकामी को दिखाती है.
पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष आदित्य साहू ने कहा कि आदिवासी लोग अपने अधिकारों और सुरक्षा के लिए शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन सरकार ने उन पर पुलिस भेज दी.
उन्होंने कहा कि भाजपा इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएगी. इसी कारण उन्होंने बुधवार को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक राज्य-व्यापी बंद का आह्वान किया.
भाजपा नेताओं ने कहा कि यह बंद सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है.
उनका कहना था कि अगर सरकार आदिवासियों की आवाज़ नहीं सुनेगी, तो आने वाले दिनों में आंदोलन और तेज़ होगा.
पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि आदिवासी और मूलवासी समुदाय इस सरकार से बहुत नाराज़ हैं क्योंकि उनकी ज़मीन, उनकी सुरक्षा और उनके अधिकारों की लगातार अनदेखी की जा रही है.
इस घटना से पहले भी इन इलाकों में कई सड़क हादसे हो चुके हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक साल में 150 से ज़्यादा लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हो चुकी है. इनमें ज़्यादातर हादसे उन जगहों पर हुए हैं जहाँ भारी खनन वाहन 24 घंटे चलते रहते हैं.
पिछले दस दिनों में ही चार लोगों की मौत हुई है.
यही वजह थी कि ग्रामीणों ने धरना शुरू किया था. उनका कहना था कि जब तक प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठाएगा, तब तक धरना जारी रहेगा.
धरने में बड़ी संख्या में महिलाएँ भी शामिल थीं. कई आदिवासी संगठन और छात्र संघ भी उनके साथ खड़े थे.
लेकिन जब पुलिस ने बल प्रयोग किया, तो माहौल बिगड़ गया. कई लोगों ने कहा कि उन्हें लगा था कि प्रशासन बातचीत करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पुलिस की ओर से अब तक कोई साफ बयान नहीं आया है.
कुछ अधिकारियों ने कहा कि स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए हल्का बल प्रयोग किया गया था, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पुलिस ने जरूरत से ज्यादा हिंसा की.
कई लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.
इस घटना के बाद पूरे झारखंड में तनाव का माहौल है.
बंद के दौरान कई जगह दुकानें बंद रहीं, बसें नहीं चलीं और स्कूल-कॉलेजों में भी असर देखा गया.
हालांकि कुछ जगहों पर लोगों ने शांतिपूर्वक बंद का समर्थन किया और कोई बड़ी हिंसा की खबर नहीं मिली.
अब सवाल उठ रहा है कि आखिर सरकार आदिवासी इलाकों की सुरक्षा के लिए क्या कर रही है.
जिन सड़कों पर रोज़ भारी ट्रक चलते हैं, वहां बच्चे, बुजुर्ग और आम लोग रोज़ जान जोखिम में डालते हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि खनन कंपनियाँ अपने फायदे के लिए जनता की सुरक्षा की अनदेखी कर रही हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना सिर्फ पुलिस कार्रवाई तक सीमित नहीं है.
यह इस बात की याद दिलाती है कि आदिवासी समाज आज भी विकास की कीमत चुका रहा है. उनकी ज़मीन और उनकी जान — सब दांव पर लगी है.
भाजपा ने कहा है कि वह इस मुद्दे को विधानसभा में उठाएगी और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई जारी रखेगी.
दूसरी ओर, आदिवासी संगठनों ने भी कहा है कि वे अब पीछे नहीं हटेंगे.
वे चाहते हैं कि पुलिस कार्रवाई की जांच हो और जिन अधिकारियों ने बल प्रयोग किया है, उन पर कार्रवाई की जाए.

