आंध्र प्रदेश की आदिवासी आबादी में कुपोषण लगातार चिंता का विषय बना हुआ है. वहीं हाल के आंकड़े इन समुदायों के बच्चों में कुपोषण से हो रहे निरंतर नुकसान उजागर करते हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, राज्य में 5 वर्ष से कम आयु के 60 हज़ार से अधिक आदिवासी बच्चे विभिन्न प्रकार के कुपोषण से प्रभावित हैं.
जून 2025 के पोषण ट्रैकर डेटा के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में 33 हज़ार 143 अविकसित बच्चे, 10 हज़ार 39 बहुत ज्यादा पतले बच्चे और 18 हज़ार 620 कम वजन वाले बच्चे दर्ज किए गए हैं.
बौनापन, रीकरेंट मालन्यूट्रिशन (एक ऐसी स्थिति जिसमें बच्चा बार-बार कुपोषण का शिकार होता है) के कारण बच्चे में होने वाली वृद्धि और विकास बाधित होता है और इससे उम्र के हिसाब से बच्चे की हाइट कम रहती है.
अंडरवेट, जिसे उम्र के हिसाब से कम वजन के रूप में परिभाषित किया जाता है वो बहुत गंभीर और क्रॉनिक मालन्यूट्रिशन दोनों का परिणाम है.
ये संकेत न केवल पोषण संबंधी कमियों की ओर इशारा करते हैं बल्कि स्वास्थ्य सेवा तक खराब पहुंच, अपर्याप्त मातृ शिक्षा और जनजातीय क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा जैसे गहरे संरचनात्मक मुद्दों की ओर भी संकेत करते हैं.
यह आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के निष्कर्षों से मेल खाता है. जो दर्शाता है कि भारत में 5 वर्ष से कम आयु के 44.5 फीसदी आदिवासी बच्चे अविकसित, 20 फीसदी बहुत ज्यादा पतले और 45.2 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं.
62 प्रतिशत आदिवासी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित
इसके अलावा, 15 से 49 वर्ष की 62.6 फीसदी आदिवासी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. जबकि 21 फीसदी का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य स्तर से कम है, जो आदिवासी महिलाओं में व्यापक पोषण संबंधी चुनौतियों को भी उजागर करता है.
इन मुद्दों के समाधान के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने कहा कि वह प्रजनन, मां, नवजात, बच्चा, किशोर स्वास्थ्य और पोषण (RMNCAH+N) रणनीति के माध्यम से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कई हस्तक्षेपों पर काम किया जा रहा है.
इन पहलों में गंभीर एक्यूट मालन्यूट्रिशन (SAM) से ग्रस्त बच्चों की देखभाल के लिए पोषण पुनर्वास केंद्रों (NRCs) की स्थापना और केवल स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए माताओं का पूर्ण स्नेह (MAA) कार्यक्रम शामिल है.
इसके अलावा, विभिन्न आयु वर्गों में एनीमिया को कम करने के लिए एनीमिया मुक्त भारत (AMB) कार्यक्रम, द्विवार्षिक राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (NDD) और अस्पतालों में स्तनपान प्रबंधन केंद्रों की स्थापना शामिल है.
मां और शिशु को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से पोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस (VHSND) भी नियमित रूप से मनाए जाते हैं.
हालांकि, सरकार के इन उपायों के बावजूद आदिवासी समुदायों में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता बनी हुई है.