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हिमाचल प्रदेश सरकार का दावा, आदिवासी क्षेत्रों के विकास में तेजी लाने के लिए 3,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च

ऊँचाई वाले और कम आबादी वाले क्षेत्रों में सेवा वितरण की चुनौती को समझते हुए सरकार ने दूरदराज के इलाकों में बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं को मज़बूत किया है.

हिमाचल प्रदेश सरकार का दावा है कि राज्य के आदिवासी इलाकों में विकास को गति देने के लिए उन्होंने पिछले ढाई सालों में 3,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का निवेश किया है.

एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया, “इस कदम से 35 हज़ार से ज़्यादा आदिवासी परिवारों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच, आजीविका सृजन कार्यक्रमों और बेहतर सामाजिक सेवाओं के ज़रिए सीधा लाभ हुआ है.”

उन्होंने आगे कहा, “नई सड़कों, पुलों, आवासीय विद्यालयों, स्वास्थ्य सुविधाओं और सामुदायिक पहलों ने धीरे-धीरे सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया है.”

जनजातीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम को 2022-23 में 855 करोड़ रुपये, 2023-24 में 857.14 करोड़ रुपये, 2024-25 में 890.28 करोड़ रुपये और 2025-26 के लिए प्रस्तावित 638.73 करोड़ रुपये के बजटीय प्रावधानों के साथ लागू किया गया है.

सड़कें, पुल, परिवहन अवसंरचना और सार्वजनिक भवनों पर 2022-23 में 290.58 करोड़ रुपये, 2023-24 में 287.99 करोड़ रुपये और 2024-25 में 62.92 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं और 2025-26 के लिए 125.06 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं.

ऊँचाई वाले और कम आबादी वाले क्षेत्रों में सेवा वितरण की चुनौती को समझते हुए सरकार ने दूरदराज के इलाकों में बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं को मज़बूत किया है.

प्रवक्ता ने कहा, “स्वास्थ्य उप-केंद्रों को उन्नत किया गया है, मोबाइल आउटरीच और रेफरल यूनिट स्थापित की गई हैं, साथ ही पेयजल और बिजली आपूर्ति को और अधिक विश्वसनीय बनाया गया है. बागवानी, पशुपालन और स्थानीय उपज के मूल्यवर्धन से जुड़ी आजीविका सहायता ने आदिवासी परिवारों की आय को स्थिर करने में मदद की है.”

राज्य सरकार का कहना है कि उन्होंने वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत, किन्नौर, पूह और स्पीति की 75 सीमावर्ती बस्तियों मैपिंग की है और वहां बुनियादी ढांचा, सामाजिक सेवाएं और आर्थिक अवसरों को मजबूत करने के लिए विकास योजनाएं बनाई गई हैं.

उन्होंने कहा कि इन गांवों में कनेक्टिविटी, आवास और सामुदायिक परिसंपत्तियों पर काम पहले ही शुरू हो चुका है.

प्रवक्ता ने आगे कहा कि शिक्षा भी प्राथमिकता का एक अन्य क्षेत्र है.

निचार, भरमौर, पांगी और लाहौल स्थित चार एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों में वर्तमान में 1,008 छात्र अध्ययनरत हैं और कक्षा 6 में हर साल 150 नए प्रवेश होते हैं.

सरकार का कहना है कि पांगी और लाहौल में नए स्कूल और छात्रावास परिसरों का निर्माण कार्य चल रहा है. पांगी जिले के लिए 2 करोड़ रुपए और लाहौल के लिए 1.90 करोड़ रुपए पहले ही जारी किए जा चुके हैं.

वन अधिकार अधिनियम का समय पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए जनजातीय जिलों में अधिकारियों और सामुदायिक प्रतिनिधियों को गहन प्रशिक्षण दिया गया.

जून 2025 तक, 901 भूमि अधिकार, 755 व्यक्तिगत और 146 सामुदायिक पट्टे जारी किए जा चुके हैं.

उन्होंने कहा, “अप्रैल 2025 में, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने लंबित दावों का एक समान और समयबद्ध निपटान सुनिश्चित करने के लिए वन अधिकार अधिनियम कार्यान्वयन कैलेंडर जारी किया था.”

उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने एक स्थायी जनजातीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के लिए 40.29 करोड़ रुपये की लागत से भूमि हस्तांतरण, वैधानिक मंज़ूरियां और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने का काम पूरा कर लिया है.

हिमाचल प्रदेश की जनजातियां

हिमाचल प्रदेश की प्रमुख जनजातियां गद्दी, गुज्जर, किन्नौरी, लाहौली, स्वांगला, पंगवाला और खम्पा हैं. ये जनजातियां राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करती हैं, गद्दी और गुज्जर सबसे बड़े समूहों में से हैं.

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