महाराष्ट्र के नागपुर में रहने वाले पारधी समुदाय के एक परिवार को आखिरकार जंगल की ज़मीन पर उनका हक़ मिल गया है.
यह फैसला महाराष्ट्र राज्य के अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग ने सुनाया है.
आयोग ने ज़िला प्रशासन को साफ-साफ कहा है कि वह बयतीताई शेकु काले और उनके परिवार को तुरंत ज़मीन का पट्टा और ज़रूरी दस्तावेज़, जैसे 7/12 रसीद, दे.
बयतीताई और उनके परिवार ने आयोग से शिकायत की थी कि वे बहुत सालों से जंगल में रह रहे हैं और वहां खेती कर रहे हैं, लेकिन आज तक उन्हें उनकी ज़मीन के अधिकार नहीं मिले.
उन्होंने ये भी बताया कि उनके घर को तोड़ा गया, गलत तरीके से रिकॉर्ड में बदलाव किया गया और उन्हें धमकाया भी गया.
आयोग की सुनवाई में बयतीताई ने बताया कि उनका परिवार साल 2005 से पहले से ही उस ज़मीन पर रह रहा है.
भारत सरकार का कानून है – “वन अधिकार अधिनियम 2006” – जिसमें कहा गया है कि जो आदिवासी परिवार 2005 से पहले से जंगल में रह रहे हैं और वहां खेती कर रहे हैं, उन्हें जंगल की ज़मीन पर अधिकार दिया जाएगा.
आयोग की बैठक में कई अधिकारी मौजूद थे – जैसे तहसीलदार, आदिवासी विभाग के अधिकारी और वन विभाग के अफसर.
सबने मिलकर फैसला किया कि बयतीताई और उनके परिवार को अब और इंतजार नहीं करवाया जाएगा.
आयोग ने कहा कि अब दोबारा जांच करने की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें तुरंत पट्टा और ज़मीन के कागज़ दिए जाएं.
सिर्फ यही नहीं, आयोग ने ये भी कहा कि जो अधिकारी या लोग झूठे कागज़ बनाकर इस परिवार को नुकसान पहुंचा रहे थे, उन पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.
ऐसे मामलों की जांच होनी चाहिए और दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए.
यह फैसला पारधी समुदाय के लिए एक बड़ी राहत है. बहुत सारे आदिवासी परिवार आज भी अपनी ही ज़मीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
यह खबर उनके लिए एक उम्मीद की किरण है कि अगर सही जगह पर आवाज़ उठाई जाए, तो न्याय जरूर मिलता है.