एक संसदीय पैनल ने आदिवासी महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के प्रति सरकार की “गंभीरता की कमी” पर असंतोष व्यक्त किया है. साथ ही अपर्याप्त आंकड़ों, कुपोषण और एनीमिया निवारण कार्यक्रमों के खराब कार्यान्वयन और बाल विवाह से निपटने में धीमी प्रगति जैसी चुनौतियों पर प्रकाश डाला है.
बुधवार को संसद में पेश अपनी दूसरी रिपोर्ट में महिला सशक्तिकरण समिति ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय की आलोचना की कि वह जनजातीय स्वास्थ्य में सुधार के लिए अन्य मंत्रालयों के साथ समन्वय करने में सक्रिय भूमिका निभाने में विफल रहा है.
यह रिपोर्ट ‘आदिवासी महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं’ पर 2023 की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों पर सरकार की प्रतिक्रिया की समीक्षा करती है.
समिति ने कहा कि वह जनजातीय महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हस्तक्षेपों को लागू करने में “गंभीरता की कमी” को लेकर चिंतित है, खासकर के आदिवासी आबादी से संबंधित विशेष स्वास्थ्य डेटा के सृजन और उपयोग के संबंध में.
पैनल ने कहा कि केवल समिति की सिफारिशों पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है.
पैनल ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय से आग्रह किया गया कि वह जनजातीय आबादी के लिए लिंग और आयु के आधार पर अलग-अलग आंकड़े तैयार करने के लिए स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ सक्रिय सहयोग करे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों को अभी भी व्यापक ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ों के अंतर्गत शामिल किया जा रहा है, जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी हस्तक्षेप अप्रभावी हो रहे हैं.
पैनल ने सिफारिश की कि मंत्रालय के भीतर एक समर्पित जनजातीय स्वास्थ्य डेटा समन्वय इकाई और अनुसंधान संस्थानों के साथ औपचारिक सहयोग की जरूरत है.
कुपोषण और एनीमिया के मुद्दे पर समिति ने पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे राष्ट्रीय प्रयासों की सराहना की. लेकिन कहा कि जनजातीय-केंद्रित रणनीतियां अभी भी गायब हैं.
इसने परिणाम-विशिष्ट डेटा उपलब्ध कराने में विफल रहने के लिए मंत्रालयों की आलोचना की और जनजातीय रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुरूप क्षेत्रीय रूप से अनुकूलित अभियान चलाने का आह्वान किया.
समिति ने जनजातीय क्षेत्रों में आंगनवाड़ी केन्द्रों का तत्काल सोशल ऑडिट कराने और सामुदायिक प्रभावकों की स्पष्ट भूमिका सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.
पैनल ने आदिवासी समुदायों में सिकल सेल एनीमिया को एक निरंतर बने रहने वाला संकट बताया. हालांकि इसने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन की शुरुआत का स्वागत किया. लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि मंत्रालय ने स्क्रीनिंग के लिए समय-सीमा तय नहीं की है और न ही आदिवासी मरीज़ों की सहायता के लिए स्थानीय हेल्प डेस्क जैसी सहायता प्रणालियां स्थापित की हैं.
समिति ने कहा कि आदिवासियों में डिजिटल साक्षरता की कमी को देखते हुए स्वैच्छिक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पर निर्भर रहना अव्यावहारिक है.
उठाई गई अन्य चिंताओं में जनजातीय क्षेत्रों में बाल विवाह की उच्च दर शामिल थी, जिसके बारे में समिति ने कहा कि यह मातृ मृत्यु और किशोरावस्था में गर्भधारण से निकटता से जुड़ा हुआ है.
संसदीय पैनल ने जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से बाल विवाह में देरी के लिए मंत्रालयों के बीच संयुक्त कार्ययोजना और आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की अधिक भागीदारी का भी आह्वान किया.
इसने जनजातीय क्षेत्रों में अविश्वसनीय जन्म पंजीकरण के मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाने की भी सिफारिश की, जिसके कारण आयु संबंधी गलत जानकारी दी जाती है और बाल विवाह की कम रिपोर्टिंग होती है.