ओडिशा के क्योंझर जिले में सड़क और पुल की कमी से आदिवासी ग्रामीणों की ज़िंदगी मुश्किलों से भरी हुई है.
बरसों से बुनियादी सुविधाओं के इंतज़ार में बैठे इन गांवों के लोगों को अब हर रोज़ अपने ही इलाके में ज़िंदगी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
यहां बड़खमान और आसपास के कई गांव ऐसे हैं जहां आज तक कोई पक्का पुल नहीं बना.
बारिश के मौसम में जब नदी में पानी भर जाता है, तब लोगों को उसे पार करने के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती है.
बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक, हर कोई मजबूरी में पानी में उतरकर स्कूल, अस्पताल या बाज़ार जाता है. गर्भवती महिलाओं और बीमार मरीजों को कंधों पर उठाकर नदी पार कराना आम बात हो गई है.
कुछ लोगों को एम्बुलेंस तक पहुंचने में चार से पांच घंटे तक लग जाते हैं क्योंकि वाहन गांव तक पहुंच ही नहीं पाते.
इन हालात का सबसे बुरा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है. बरसात के दिनों में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, क्योंकि रास्ते में नदी और कीचड़ भरे पथरीले रास्ते उनके लिए बेहद खतरनाक हो जाते हैं.
कई बार बच्चे फिसल कर घायल हो जाते हैं या डर के मारे घर पर ही रह जाते हैं.
इस वजह से गांव में शिक्षा का स्तर काफी गिर गया है.
रोज़गार के अवसर भी प्रभावित हो रहे हैं. लोग अगर खेत या जंगल से कोई उत्पाद लेकर बाज़ार जाना चाहें तो रास्ते की वजह से वे समय पर नहीं पहुंच पाते.
जिन लोगों की रोज़ी-रोटी शहर जाकर मजदूरी करने पर टिकी है, वे कई दिनों तक काम पर नहीं जा पाते। इससे उनकी आमदनी कम होती है और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है.
जान का खतरा भी हमेशा बना रहता है. तेज़ बहाव में फिसल कर गिरने से चोट लगने या डूबने की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं.
लेकिन अब तक प्रशासन की ओर से कोई स्थायी समाधान नहीं हुआ.
सरकार ने ज़रूर कुछ योजनाएं शुरू की हैं और बताया गया है कि DMF फंड से पैसे मंजूर हो चुके हैं, लेकिन काम की रफ्तार इतनी धीमी है कि गांववालों को अब सरकार पर भरोसा नहीं रहा.
गांव के लोग कहते हैं कि जब तक सड़क और पुल नहीं बनते, तब तक हर साल बारिश के मौसम में उन्हें यह संकट झेलना पड़ेगा.
उनका कहना है कि विकास का असली मतलब तभी होगा जब गांव के लोगों को सुरक्षित रास्ता, बेहतर इलाज और बच्चों को शिक्षा पाने का हक मिलेगा.
वरना वे खुद को हमेशा देश के नक्शे से कटा हुआ महसूस करते रहेंगे.