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प्रधानमंत्री के पास मणिपुर के अलावा हर चीज के लिए समय है : जयराम रमेश

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत 3 मई, 2023 को हुई थी. इसकी तात्कालिक वजह मणिपुर हाई कोर्ट का एक फैसला था, जिसमें उसने राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने पर विचार करने को कहा था.

कांग्रेस ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हिंसा प्रभावित मणिपुर का दौरा करने के लिए अभी तक समय नहीं निकालने का आरोप लगाया है. इसके साथ ही पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने पिछले साल मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे को लेकर हुए नाटक की याद दिलाई.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में मुख्यमंत्री सिंह के फटे हुए त्यागपत्र की तस्वीर साझा करते हुए कहा ठीक एक साल पहले, इंफाल में इस्तीफे का एक बड़ा नाटक हुआ था.

उन्होंने एक्स पर लिखा मणिपुर की पीड़ा और व्यथा जारी ह नॉन बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के पास संकटग्रस्त राज्य का दौरा करने या वहां के निर्वाचित प्रतिनिधियों से आमने-सामने बात करने के अलावा हर चीज के लिए समय है.

दरअसल, पिछले साल मई में मैतई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में कुकी आदिवासियों ने पहाड़ी जिलों में एकजुटता मार्च निकाल था. जिसके बाद मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी थी.

राज्य में जारी हिंसक घटनाओं के बीच पिछले साल जून में सिंह इस्तीफा देने के करीब पहुंच गए थे लेकिन उनके समर्थकों ने उन्हें इस्तीफा देने से रोक दिया था.

सैकड़ों महिलाओं ने मानव श्रृंखला बनाकर उन्हें इस्तीफा देने के लिए राज्यपाल के घर जाने से रोक दिया था. साथ ही महिलाओं ने त्यागपत्र भी फाड़ दिया था.

राष्ट्रपति अपने भाषण में मणिपुर को कैसे छोड़ सकते हैं: कांग्रेस

वहीं मणिपुर कांग्रेस ने 27 जून को संसद के जॉइंट सेशन के दौरान दिए गए राष्ट्रपति के अभिभाषण की भी आलोचना की है, जिसमें कथित रूप से मणिपुर संकट पर चर्चा नहीं की गई थी.

मणिपुर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष देवब्रत ने मणिपुर संकट को शामिल न किए जाने पर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य को केंद्र सरकार से बेहतर व्यवहार मिलना चाहिए.

मणिपुर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवब्रत ने राष्ट्रपति द्वारा इस तरह के गंभीर मुद्दे का जिक्र न किए जाने पर सवाल उठाया और इस बात पर जोर दिया कि कि मणिपुर में संकट कम होने के बजाय और बढ़ रहा है. उन्होंने राज्य सरकार द्वारा किए गए सामान्य स्थिति के दावों का भी खंडन किया.

देवब्रत ने कहा, “हमें उम्मीद थी कि राष्ट्रपति अपने भाषण में मणिपुर हिंसा का जिक्र करेंगी, जो देश के सामने सबसे गंभीर संकट है, जिसके कारण नार्को-आतंकवाद और सशस्त्र उग्रवादियों का आना हुआ, जो राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़कर तबाही मचा रहे हैं. राष्ट्रपति ऐसे मुद्दे को कैसे टाल सकती हैं, जिसे राष्ट्रीय मुद्दा माना जाता है?”

देवब्रत ने आगे कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में कश्मीर घाटी के बारामुल्ला क्षेत्र में मतदान की सराहना की गई, जबकि चुनौतीपूर्ण समय में मणिपुर के 70 फीसदी से ज्यादा मतदान को नजरअंदाज कर दिया गया. इस चुनिंदा सराहना को मणिपुर के लोग अपमान के तौर पर देखते हैं, और कहा कि यह राज्य के साथ सौतेला व्यवहार है.

देवब्रत ने यह भी कहा, “हम पूछना चाहते हैं कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की उपेक्षा करना जारी रखेंगे, जबकि (राष्ट्रपति के) भाषण को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी. क्या यह मुद्दे को कमजोर करने की साजिश है?”

मणिपुर कांग्रेस द्वारा विरोध प्रदर्शन करने के फैसले की वजह स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति का भाषण समतापूर्ण होना चाहिए और उसमें न्याय की आवाज होनी चाहिए.” उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का भाषण सत्तारूढ़ सरकार का मुखपत्र नहीं बनना चाहिए.

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल हिमालय का हवाला देते हुए कांग्रेस के स्थानीय नेता ने कहा कि मणिपुर संकट “एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा” है और केंद्र सरकार को इसे प्राथमिकता के रूप में लेना चाहिए.

इस बीच, मणिपुर के दो और विधायक शनिवार को इम्फाल से नई दिल्ली के लिए रवाना हुए. इससे एक दिन पहले एनडीए विधायकों का एक समूह राष्ट्रीय राजधानी पहुंचा था.

इन विधायकों में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के दामाद आरके इमो और एंड्रो के विधायक टी. श्यामकुमार शामिल हैं.

वहीं 27 जून को मुख्यमंत्री ने राज्य के सभी NDA विधायकों के साथ बैठक की थी.

बैठक में मौजूद एक भाजपा विधायक ने कहा, “14 महीनों से कोई सामान्य स्थिति नहीं रही है और लोगों के दिलों में जो है, वह लोकसभा चुनाव के नतीजों में झलक रहा है. लोग हमसे खुश नहीं हैं. सभी विधायक इसे महसूस कर रहे हैं. दिल्ली की पिछली यात्राओं में केंद्र से उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली है. विधायक चाहते हैं कि अंतिम संदेश दिया जाए.”

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत 3 मई, 2023 को हुई थी. इसकी तात्कालिक वजह मणिपुर हाई कोर्ट का एक फैसला था, जिसमें उसने राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने पर विचार करने को कहा था.

इसके विरोध में कुकी समुदाय ने मार्च निकाला और हिंसा भड़क उठी. हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई है जबकि 60 हज़ार लोग विस्थापित हुए और कुछ आज भी राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं.

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