मैतेई और कुकी समुदाय के बीच मई 2023 में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद आखिरकार 13 सितंबर, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने मणिपुर का दौरा किया.
3 मई, 2023 को मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच भड़की हिंसा ने पूर्वोत्तर राज्य में वर्षों से चली आ रही अपेक्षाकृत शांति को तहस-नहस कर दिया.
रिकॉर्ड के मुताबिक, इस दौरान 250 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई, 60 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए और गहरे सामाजिक विभाजन फिर से उभर आए.
महीनों तक जलते घरों, शोकाकुल परिवारों और सामूहिक विस्थापन की तस्वीरें टेलीविजन स्क्रीन और सोशल मीडिया पर छाई रहीं. जिसके बाद यह सिर्फ क्षेत्रीय संघर्ष नहीं रहा बल्कि एक राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया.
राज्य में ऐसी गंभीर स्थिति होने के कारण महीनों तक विपक्ष प्रधानमंत्री की चुप्पी और अनुपस्थिति पर सवाल उठाता रहा. कई लोगों का मानना
लेकिन आखिरकार पिछले हफ़्ते प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर दौरे पर आए…जिसके बाद यह सवाल उठने लगे की क्या उनके आगमन से राज्य की कहानी बदल सकती है?
खराब मौसम के कारण कुकी-ज़ो समुदाय के प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर में उड़ान भरने में असमर्थ होने के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी ने संघर्ष प्रभावित लोगों से मिलने के लिए सड़क मार्ग से 90 मिनट से ज़्यादा की यात्रा करने का फ़ैसला किया.
उनका अगला पड़ाव इम्फाल था, जो मैतेई बहुल क्षेत्र का केंद्र है, जहां उन्होंने एक अलग सभा को संबोधित किया और क्षेत्र के पुनर्निर्माण के उद्देश्य से इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की घोषणा की.
दोनों ही जगहों पर प्रधानमंत्री ने संदेश सोच-समझकर और कई स्तरों पर दिए. पीएम मोदी का संदेश बहुत ही बारीकी से तैयार किया गया था.
चुराचांदपुर में जहां विकास पिछड़ गया है… वहां पीएम मोदी ने कई परियोजनाओं की आधारशिला रखी. सुपर-स्पेशलिटी स्वास्थ्य सेवा केंद्र, कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल, बेहतर स्कूली शिक्षा का बुनियादी ढांचा और आईटी पहल.
इस दौरान उन्होंने कहा, “मणिपुर का हर कोना समान ध्यान और अवसर का हकदार है. यह सरकार सिर्फ़ वादे नहीं, बल्कि वास्तविक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है.”
वहीं इम्फाल में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय अभियानों में मैतेई सैनिकों के बलिदान को याद किया. खासकर कश्मीर घाटी में पहलगाम हमले के बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में शहीद हुए दीपक चिंगखम की बहादुरी का ज़िक्र किया.
इसके साथ ही उन्होंने एशिया के सबसे पुराने महिलाओं द्वारा संचालित बाज़ार, इमा कीथेल की भी शक्ति और लचीलेपन के प्रतीक के रूप में प्रशंसा की.
उन्होंने कहा, “हमारी माताएं, हमारी बहनें सिर्फ़ देखभाल करने वाली नहीं हैं, वे हमारी अर्थव्यवस्था और संस्कृति की धड़कन हैं.”
प्रधानमंत्री के आने का स्वागत तो हुआ लेकिन कई लोगों ने इसे राजनीतिक चश्मे से भी देखा. कुकी-ज़ो परिषद ने इस अवसर का उपयोग “अलग प्रशासन” की अपनी मांग को दोहराने के लिए किया, जो राजनीतिक स्वायत्तता की एक पुरानी मांग है.
वहीं दूसरी ओर सबसे प्रभावशाली मैतेई नागरिक समाज संगठन, COCOMI ने इस तरह की मांगों को सिरे से खारिज कर दिया और इन्हें मणिपुर की एकता के लिए ख़तरा बताया.
इसके बजाय COCOMI ने “जनसांख्यिकीय असंतुलन” को दूर करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और “अवैध प्रवासियों” की पहचान पर भी ज़ोर दिया है.
उधर राज्यपाल अजय भल्ला के माध्यम से भी कुछ महत्वपूर्ण संदेश दिए गए. राज्यपाल ने चुराचांदपुर को “समृद्ध सांस्कृतिक विविधता” का प्रतीक मानने पर ज़ोर दिया.
राज्यपाल ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर भी बात की और इसे रोकने के लिए राज्य और केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की. यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर कुकी-ज़ो लोगों और मैतेई लोगों के बीच तीखी बहस हुई है.
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस दर्द को स्वीकार किया जो अभी भी बरकरार है.
उन्होंने कहा, “यहां जो हुआ है वह सिर्फ़ मणिपुर के लिए एक त्रासदी नहीं है बल्कि हमारे पूर्वजों के साथ अन्याय और हमारी आने वाली पीढ़ियों के साथ विश्वासघात है.”
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी ने 3,600 करोड़ रुपये की मणिपुर शहरी सड़क परियोजना और 500 करोड़ रुपये की इन्फोटेक विकास परियोजना की घोषणा की, जीएसटी दरों में कमी और विकसित भारत का ज़िक्र किया. लेकिन मणिपुर के लोगों के लिए ये कुछ भी मायने नहीं रखता, जो हिंसा और विभाजनकारी नीतियों से त्रस्त हैं.
मणिपुर के लोग जो लगातार हिंसा का सामना कर रहे हैं, बेघर रह रहे हैं और अपनों की मौत का शोक मना रहे हैं… वो उम्मीद कर रहे थे कि मोदी उन्हें ज़रूरी मरहम लगाएंगे, न कि यह कहेंगे कि बुनियादी ढांचे का विकास एकीकरण और प्रगति का मुख्य साधन होगा.
यह बेहद दुखद है कि प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर के हिंसाग्रस्त लोगों के न्याय के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा.
मणिपुर की हालिया स्थिति
करीब 21 महीने चले जातीय संघर्ष के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 9 फरवरी 2025 को इस्तीफा दे दिया.
विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने से पहले ही उन्होंने पद छोड़ दिया.
ऐसे में बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.नए मुख्यमंत्री पर सहमति न बनने के कारण यह कदम उठाया गया.
विधानसभा का सत्र छह महीने से ज़्यादा समय तक न बुलाने का संवैधानिक कारण भी इसके पीछे था.
मणिपुर में विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को पूरा हुआ था और अगला सत्र छह महीने के अंदर बुलाया जाना था लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
इसके बाद 5 अगस्त 2025 को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में प्रस्ताव रखा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने और बढ़ाई जाए.
इस पर हंगामे के बावजूद सदन ने प्रस्ताव पास कर दिया.
अब राष्ट्रपति शासन को 13 अगस्त 2025 से अगले छह महीनों के लिए बढ़ा दिया गया है.
मणिपुर में चुनौतियां अभी भी बाकी हैं. समुदायों के बीच गहरा अविश्वास, प्रतिस्पर्धी राजनीतिक मांगें और पिछले दो वर्षों के आघात को एक ही दौरे से दूर नहीं किया जा सकता. फ़िलहाल, मणिपुर की धरती पर प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति आशा की एक किरण लेकर आई होगी लेकिन आगे की राह पर बहुत ध्यान देने की ज़रूरत है.
आने वाले हफ़्तों और महीनों में केंद्र को मणिपुर के सभी समूहों से बातचीत जारी रखनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आपस में बातचीत करें. प्रधानमंत्री के शब्दों को ज़मीनी स्तर पर प्रगति में बदलना होगा.
(Image credit: PTI)