टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा (Pradyot Kishore Debbarma) ने बुधवार को बीजेपी के नेतृत्व वाली त्रिपुरा सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए उस पर टिपरासा समझौते (Tiprasa Accord) को लागू करने और लंबे समय से अटके गांव समिति चुनावों में देरी करने का आरोप लगाया.
मीडिया से बात करते हुए देबबर्मा ने ज़ोर देकर कहा कि आदिवासी समुदायों के हित और भविष्य किसी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा या पार्टी एजेंडा से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हैं.
पॉलिटिक्स से ज़्यादा लोगों के प्रति अपनी कमिटमेंट को दोहराते हुए देबबर्मा ने कहा, “मेरा एकमात्र ब्रांड लोग हैं. हमारे समुदायों के भविष्य से बड़ा कोई ब्रांड नहीं है. मैं किसी पॉलिटिकल ब्रांड के चक्कर में नहीं पड़ा, मैं अपने लोगों के लिए खड़ा हुआ हूं. मेरी ज़मीन, मेरे लोग और पूरे नॉर्थ-ईस्ट के हित ही मेरा ब्रांड हैं.”
टिपरासा समझौते पर, देबबर्मा ने कन्फर्म किया कि वह जल्द ही इसके इम्प्लीमेंटेशन पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री से मिलेंगे.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “टिपरासा लोगों का भविष्य BJP, टिपरा मोथा, CPM या कांग्रेस के भविष्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण है. मैं कांग्रेस में भी था। मैं किसी पार्टी के बारे में नहीं सोच रहा हूं, मैं जाति (कम्युनिटी) के बारे में सोच रहा हूं.”
वहीं मेघालय की सत्ताधारी नेशनल पीपल्स पार्टी, TIPRA मोथा, असम की पीपल्स पार्टी जैसी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के नेता, पूर्व बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री म्मोहुनलुमो किकोन, और अन्य लोग मंगलवार को नई दिल्ली में एक साथ आए और नए राजनीतिक गठबंधन की घोषणा की.
एक बड़े विज़न पर ज़ोर देते हुए देबबर्मा ने पूरे नॉर्थईस्ट में एक यूनाइटेड ट्राइबल फ्रंट बनाने की अपील की.
प्रद्योत ने कहा, “हम सब एक ही बात कह रहे हैं. हम तिप्रासा, मिज़ो, नागा के तौर पर अलग-अलग मंचों से एक ही बात कह रहे हैं लेकिन हम, स्वदेशी लोग, दिल्ली में कभी भी एक साथ आवाज़ नहीं उठाते थे. आज, तिप्रासा अकेले नहीं हैं; आज गारो तिप्रासा के साथ हैं, नागा तिप्रासा के साथ हैं; अरुणाचली, मणिपुरी, असमिया, दिमासा, बोडो तिप्रासा के साथ हैं. हम अकेले नहीं खड़े हैं. क्योंकि अब नॉर्थईस्ट की थानसा (एकता) होगी.”
प्रद्योत ने त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज़ ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) की विलेज कमेटियों के लंबे समय से पेंडिंग चुनावों के बारे में भी बात की, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को और समय देने से मना कर दिया है.
उन्होंने सवाल किया, “सरकार अपने वादे पूरे करने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रही है. अगर कोई समस्या नहीं थी तो हमें सुप्रीम कोर्ट क्यों जाना पड़ा? गांव समिति के चुनाव पहले क्यों नहीं हुए?”
देबबर्मा ने सरकार की सुस्ती की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले गांव परिषद चुनाव 2016 में हुए थे.
उन्होंने कहा, ने कहा, “हमें सुप्रीम कोर्ट जाने की क्या ज़रूरत थी? हाई कोर्ट जाने की क्या ज़रूरत थी? अवमानना नोटिस क्यों? पिछले ADC गांव समिति चुनाव 2016 में हुए थे. अब 2026 आ रहा है. राजशाही खत्म हो गई है और लोकतंत्र चल रहा है… पिछले 9 सालों में हमारे लोकतंत्र में गांव समिति चुनाव क्यों नहीं हुए?”
(Image credit: @PradyotManikya)

