HomeAdivasi Dailyप्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासियों की तारीफ़ के पुल बांधे

प्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासियों की तारीफ़ के पुल बांधे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल यानि रविवार को मन की बात कार्यक्रम में देश को संबोधित किया. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने केरल के आदिवासी महिलाओं औरअराकू कॉफी की तारीफ की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद कल यानि रविवार को चार महीने बाद मन की बात कार्यक्रम में देश को संबोधित किया.

उनके इस कार्यकाल के पहले मन की बात कार्यक्रम में आदिवासियों पर फोकस रहा.

इस कार्यक्रम में उन्होंने आदिवासियों के प्रयासों की तारीफ़ की है. रविवार को देशवासियों को संबोधित करते हुए पीएम ने करथुम्बी छतरियों को लोकल फॉर वोकल का सबसे बढ़िया उदाहरण बताया.

ये छतरियाँ केरल की आदिवासी महिलाएं बनाती हैं. प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी ने केरल के आदिवासी महिलाओं के साथ अराकू कॉफी की भी तारीफ की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बातचीत में करथुंबी ब्रांड की छतरियों का ज़िक्र किया. ये छतरियाँ केरल के पलक्कड़ ज़िले के अट्टापडी आदिवासी क्षेत्र में महिलाओं के एक समूह द्वारा बनाई जाती है.

मोदी बरसात में छतरियों की बढ़ती ज़रूरत के बारे में बोले और करथुंबी (ड्रैगनफ़्लाई) छतरियों को “शानदार” और “रंगीन” बताया. उन्होंने कहा कि कारथुंबी छतरियों की मांग बढ़ रही है. यह मल्टीनेश्नल कंपनियों तक पहुँच चुकी है. उन्होंने इसे “वोकल फ़ॉर लोकल” का सबसे अच्छा उदाहरण बताया.

अट्टापडी के आदिवासी बस्तियों की करीब 30 महिलाएं करथुम्बी छतरियां बनाती हैं. इस छतरी के ब्रांड की शुरुआत 2014 में हुई थी. इसकी स्थापना थम्पू (NGO) ने की थी. ये एनजीओ आदिवासियों के विकास और प्रगति के लिए काम करता है. प्रोग्रेसिव टेकीज और ऑनलाइन कम्युनिटी पीस कलेक्टिव नामक कंपनियाँ इस ब्रांड को बढ़ावा दे रही हैं.

थंपू के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि छतरी बनाने की शुरुआत महिलाओं को सशक्त बनाने की एक कोशिश थी.  ताकि क्षेत्र में कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके, क्योंकि कुपोषण की वजह से बच्चों की मृत्यु यहां की विकट समस्या है.

आदिवासी विकास के लिए मिले सरकारी पैसे से ये सुविधा शुरु की गई थी. महिलाओं को चुना गया और प्रशिक्षण दिया गया. प्रसाद ने कहा कि करभुंबी छाते 350 रुपये में बेचे जा रहे हैं, जबकि बाजार में समान गुणवत्ता छातों की कीमत 470 रुपये के आस-पास है.

राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि हालांकि हम अभी तय लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हैं. उन्होंने बताया कि करीब  तीन लाख छाते बनाए जा चुके हैं.

उन्होंने कहा कि 360 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है. लेकिन इसमें से 30 ही सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि मांग सीमित है इसलिए साल में चार महीने ही यह काम किया जाता है.

राजेंद्र इसे सालभर रोज़गार देने का ज़रिया बनाने की कोशिश में जुटे हैं. उन्होंने कहा आशा है कि इसके लिए अब हमें मूल सुविधाएं मिल सकेंगी. प्रधानमंत्री की तारीफ के बाद हमें कुछ बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में अराकू कॉफी की भी प्रशंसा की.

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के कई उत्पाद हैं जिनकी विश्व में उच्च मांग है. यह देखकर गर्व होता है कि हमारे क्षेत्रीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिल रही है. ऐसा ही एक उत्पाद अराकू कॉफी है, जो अपने स्वाद और सुगंध के लिए मशहूर है.

आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीता राम राजू जिले में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है. लगभग 1.5 लाख आदिवासी परिवार इसकी खेती में शामिल हैं.

उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ कॉफी पर बिताए पलों को याद किया. उन्होंने कहा मुझे इस कॉफी का स्वाद याद है. विशाखापटनम में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ इसका स्वाद चखा था.

उन्होंने कहा अराकू कॉफी ने कई वैश्विक पुरस्कार जीते हैं और दिल्ली में आयोजित जी 20 शिखर सम्मेलन में इसकी अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी.

प्रधानमंत्री मोदी ने इस कॉफी के उत्पादन में गिरिजन सहकारी समिति की भूमिका का भी ज़िक्र किया.

उन्होंने कहा करीब 1.5 लाख आदिवासी परिवार अराकू कॉफ़ी की खेती में लगे हुए हैं, गिरिजन सहकारी समिति इसकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. सहकारी समिति ने स्थानीय किसानों को एकजुट करके, उन्हें अराकू कॉफ़ी की खेती के लिए प्रोत्साहित किया है. इससे उनकी आय भी बढ़ी है.

अराकू कॉफी का जीआई टैग क्या है?

अराकू कॉफ़ी को 2019 में जीआई टैग दिया गया था. यह टैग किसी असमान्य या अलग भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले ऐसे उत्पादों को दिया जाता है. जो अपने खास गुणों के लिए जाने जाते हैं.

प्रधानमंत्री की तारीफ़ काफ़ी नहीं होगी

आदिवासियों के उत्पादों और सहकारी समितियों के प्रयासों की प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में तारीफ़ एक अच्छी बात है. लेकिन जिन दो इलाकों के आदिवासियों के बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में ज़िक्र किया, वहां आदिवासियों के सामने कई तरह की चुनौतियां मौजूद हैं.

मसलन केरल के अट्टापडी इलाके में आदिवासियों की बस्तियों तक आज भी सड़कें नहीं पहुंची हैं. इसके अलावा यहां पर कुपोषण और अन्य स्वास्थ संबंधी मुद्दे भी मौजूद हैं.

उधर आंध्र प्रदेश की अराकु घाटी में बेशक बेहतरीन कॉफ़ी का उत्पादन होता है. लेकिन यहां के कॉफ़ी बागानों में काम करने वाले आदिवासी ग़रीबी में जीने को मजबूर हैं.

इस इलाके में कई आदिवासी बस्तियां हैं जहां ऐंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है क्योंकि सड़क नहीं है. यहां के आदिवासी इलाकों से इलाज के अभाव में आदिवासियों के मारे जाने की ख़बरें लगातार मिलती हैं.

उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार इस कार्यकाल में आदिवासियों के विकास के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराएगी.

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