जयपुर से एक बेहद अहम खबर सामने आई है जहाँ राजस्थान हाई कोर्ट ने एक आदिवासी महिला को उसकी पुश्तैनी ज़मीन का अधिकार देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.
यह मामला मीना जनजाति की मन्नी देवी से जुड़ा हुआ है, जो अपने परिवार की ज़मीन को लेकर लंबे समय से न्याय के लिए लड़ाई लड़ रही थीं.
कोर्ट के इस फैसले को आदिवासी महिलाओं के अधिकारों के लिहाज़ से एक बड़ी जीत माना जा रहा है.
मन्नी देवी ने बताया कि उन्हें यह ज़मीन मिलने में बहुत संघर्ष करना पड़ा .
जब उन्होंने अपने अधिकार की मांग की तो परिवार और गांव में कई लोगों ने उनका विरोध किया.
कई बार उन्हें अपमान का सामना करना पड़ा और लोग कहते थे कि “औरतें ज़मीन की वारिस नहीं होतीं.
मन्नी देवी को पंचायत स्तर से लेकर तहसील और अदालत तक चक्कर लगाने पड़े.
दस्तावेज़ों की कमी, सरकारी तंत्र की ढिलाई और समाज की सोच ने उनकी राह को और मुश्किल बना दिया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
उन्होंने अदालत में यह दलील दी कि जैसे पुरुषों को पुश्तैनी ज़मीन का हक दिया जाता है, वैसे ही महिलाओं को भी बराबर का हक मिलना चाहिए.
यह मामला सीधे तौर पर लैंगिक समानता और आदिवासी अधिकारों से जुड़ा था.
हाई कोर्ट ने भी माना कि यह केवल एक ज़मीन का मामला नहीं है, बल्कि एक महिला के आत्मसम्मान और अधिकार का सवाल है.
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि आदिवासी महिलाओं को ज़मीन से वंचित रखना ना केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह सामाजिक न्याय के खिलाफ भी है.
कोर्ट ने माना कि यह भेदभावपूर्ण परंपरा अब खत्म होनी चाहिए और महिलाओं को भी वही हक मिलना चाहिए जो पुरुषों को मिलता है.
इस मामले को लेकर अदालत ने केंद्र सरकार को यह सुझाव भी दिया कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन करने पर विचार करे.
कोर्ट का कहना था कि कानून में बदलाव करके यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आदिवासी समुदाय की महिलाएं भी अपनी पुश्तैनी ज़मीन पर पूरी तरह से मालिकाना हक पा सकें.
यह सुझाव आने वाले समय में बहुत बड़ा असर डाल सकता है.
इस फैसले का असर सिर्फ मन्नी देवी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे देश की उन आदिवासी महिलाओं को नई उम्मीद देगा, जिन्हें आज भी पारंपरिक संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया जाता.
यह फैसला एक मिसाल बन सकता है जो यह दिखाता है कि न्याय सबके लिए बराबर है, चाहे वह महिला हो या पुरुष, और चाहे वह किसी भी समुदाय से ताल्लुक रखता हो.
राजस्थान हाई कोर्ट का यह निर्णय आदिवासी समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा क़दम है.
ऐसा ही गलत फैसला नीमकाथाना SDM के द्वारा भी अभी 31 जुलाई 2015 को किया गया है,, यहाँ आदिवासी महिला सुनीता मीणा को आदिवासी मानते हुए,,उनके परदादा की जमीन से बेदखल करके,,सुनीता मीणा के दोनों भाइयों के नाम अनिल मीणा ओर सुनील मीणा के नाम उस पुस्तनी जमीन का नामांकन खोल दिया,
सुनीता मीणा द्वारा 06.08.2025 को ADM नीमकाथाना को अपना हक पेश करेंगी,,
31 जुलाई 2015 नही
31 जुलाई 2025 को
31 जुलाई 2015 नही
31 जुलाई 2025 को SDM नीमकाथाना ने ये फैसला लिया है