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राजस्थान के आदिवासी समूहों ने केंद्र सरकार को अधूरी मांगों को लेकर चेताया

यह चेतावनी विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) के अवसर पर आदिवासी बहुल बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर जिलों में आयोजित रैलियों और मार्च के दौरान दी गई.

राजस्थान के राजनीतिक और सामाजिक आदिवासी संगठनों ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा (Bhajan Lal Sharma) को कड़ी चेतावनी देते हुए उनकी लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करने में देरी के प्रति आगाह किया.

इन मांगों में अलग भील प्रदेश (Bhil Pradesh) राज्य का गठन, आदिवासी उप-योजना (TSP) क्षेत्रों में आरक्षण लाभ में वृद्धि, धर्मांतरित आदिवासियों की सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया पर रोक और आदिवासी कल्याण के लिए निर्धारित केंद्र और राज्य निधियों का उचित उपयोग सुनिश्चित करना शामिल है.

यह चेतावनी विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) के अवसर पर आदिवासी बहुल बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर जिलों में आयोजित रैलियों और मार्च के दौरान दी गई.

आदिवासी समुदाय को मूर्ख बनाया जा रहा

इस अभियान का नेतृत्व करते हुए बांसवाड़ा के सांसद राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) ने राज्य सरकार पर आदिवासी विरोधी रुख अपनाने का आरोप लगाया.

रोत ने आदिवासी कल्याण के लिए 2025-26 के बजट आवंटन की आलोचना की, जिसे पहले के 1,500 करोड़ रुपये से घटाकर 250 करोड़ रुपये कर दिया गया.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने पिछले साल के बजट से बचे हुए 1,500 करोड़ रुपये को नए 250 करोड़ रुपये के आवंटन में जोड़कर और इसे 1,750 करोड़ रुपये के पैकेज के रूप में पेश करके “समुदाय को गुमराह” किया है.

उन्होंने बांसवाड़ा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “यह आदिवासी समुदाय को मूर्ख बनाया जा रहा है.”

वहीं चित्तौड़गढ़ में एक रैली के दौरान राजकुमार रोत ने कहा कि देश में करीब 14-15 करोड़ आदिवासी आबादी है, जो प्रकृति संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देती है. इसके बावजूद, प्रधानमंत्री और राजस्थान के मुख्यमंत्री ने विश्व आदिवासी दिवस पर शुभकामनाएं तक नहीं दीं.

उन्होंने राजस्थान सरकार पर भी आरोप लगाया कि बजट जारी होने के बावजूद विश्व आदिवासी दिवस के लिए कोई आधिकारिक आयोजन नहीं किया गया. यह आदिवासी समाज के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है.

उन्होंने आगे कहा कि चित्तौड़गढ़ जिले में सबसे अधिक भील समुदाय की संख्या है, लेकिन भील समुदाय को न तो प्रशासनिक प्रतिनिधित्व मिला है और न ही उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला है.

उन्होंने चित्तौड़गढ़ के गौरवशाली इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि यह क्षेत्र वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां का भील समाज आज भी विकास के मामले में पिछड़ा हुआ है.

शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में आदिवासियों के लिए विशेष योजनाओं की जरूरत है, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही.

TSP पर पहला हक आदिवासियों का

वहीं आदिवासी आरक्षण मंच के कनकमल कटारा ने बांसवाड़ा में एक अलग कार्यक्रम में बोलते हुए राज्य के 12 फीसदी अनुसूचित जनजाति आरक्षण में दक्षिणी राजस्थान के आदिवासियों के लिए 6.5 फीसदी उप-कोटा की मांग दोहराई.

कटारा ने पूर्वी राजस्थान के मीणा आदिवासियों पर आरक्षण के लाभों पर एकाधिकार करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इसके बिना, टीएसपी आदिवासी लाभ से वंचित रहेंगे.

भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) और भारत आदिवासी पार्टी (BAP) सहित राजनीतिक संगठनों द्वारा आयोजित ब्लॉक-स्तरीय कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं ने “टीएसपी पर पहला हक आदिवासियों का” के नारे लगाए.

बीटीपी के प्रदेश अध्यक्ष वेला राम घोगरा ने आरोप लगाया कि वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.

ज्वार खदान परियोजना का हवाला देते हुए, घोगरा ने दावा किया कि स्थानीय आदिवासियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के वादों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया, जबकि गैर-आदिवासी इस क्षेत्र में बस गए.

उन्होंने चेतावनी दी, “हम जल्द ही ज्वार खदानों को खाली कराने के लिए एक अभियान शुरू करेंगे.”

वहीं गैर-आदिवासियों के साथ तनाव की आशंका को देखते हुए सभी आयोजनों में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था.

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