मंगलवार को मध्य प्रदेश के धार ज़िले से दो विपरीत तस्वीरें सामने आईं हैं. एक तरफ़ आदिवासी समुदाय की पारंपरिक पगड़ी पहनाकर प्रधानमंत्री का स्वागत किया.
वहीं दूसरी ओर जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के खिलाफ़ विरोध प्रर्दशन किया.
इस संगठन ने सवाल उठाया कि जब आदिवासी परिवार शोक में हैं, तब उत्सव का क्या औचित्य है.
प्रधानमंत्री का स्वागत-सत्कार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धार ज़िले के भैंसोला गांव में पहुंचे तो उनका स्वागत एक खास तरीके से किया गया.
खुली जीप में पहुंचे मोदी का लोगों ने तालियों और नारों से अभिवादन किया. मंच पर केंद्रीय मंत्री सावित्री ठाकुर ने उन्हें आदिवासी पगड़ी और शॉल पहनाकर सम्मानित किया.
यह पगड़ी आदिवासी समाज की संस्कृति और सम्मान का प्रतीक मानी जाती है.
धार और झाबुआ जैसे इलाकों में इसे किसी खास मेहमान को ही पहनाया जाता है जिसका मतलब होता है कि मेहमान को परिवार का सदस्य माना गया है.
इसमें लाल, सफेद और केसरिया रंग होते हैं. ये रंग वीरता, शांति और बलिदान का संकेत देते हैं.
आदिवासी समुदाय इस पगड़ी को त्योहारों, भगोरिया, शादी या बड़े आयोजनों पर पहनता है.
प्रधानमंत्री को यह पगड़ी पहनाना आदिवासी समाज की ओर से उनके प्रति विश्वास और सम्मान का प्रतीक माना गया. कार्यक्रम में पीएम को भगवान वाराह और मां दुर्गा की प्रतिमा भी भेंट की गई.
विरोधियों का पक्ष
इसी कार्यक्रम को लेकर जयस (JAYS) के कार्यकर्ताओं ने आपत्ति जताई.
उनका कहना था कि हाल ही में इंदौर के एमवाय अस्पताल में आदिवासी बच्चों की मौत हुई है और परिवार अब भी शोक में हैं.
ऐसे समय में सांस्कृतिक उत्सव और राजनीतिक कार्यक्रम अनुचित हैं.
संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकेश मुजाल्दा ने कहा, “जब तक शिशुओं की मौत के मामले में न्याय नहीं मिलता, तब तक किसी भी प्रकार का उत्सव आदिवासियों की पीड़ा को नजरअंदाज करने जैसा है.”
कार्यकर्ताओं ने धार की ओर कूच करने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें रास्ते में रोक दिया.
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने उन्हें रोकने के लिए सड़क को अवरुद्ध किया.
संगठन ने अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए ज़िम्मेदार अधिकारियों के निलंबन की मांग की.
योजनाएँ और ज़मीनी सच्चाई
इस कार्यक्रम के दौरान ‘आदि सेवा पर्व’ और ‘स्वस्थ नारी सशक्त परिवार’ जैसी योजनाओं की शुरुआत की गई.
सरकार का कहना है कि इनका उद्देश्य आदिवासी समाज में स्वास्थ्य और सशक्तिकरण से जुड़ी पहल को बढ़ावा देना है.
धार में प्रधानमंत्री को आदिवासी पगड़ी पहनाकर किया गया सम्मान निस्संदेह परंपरा और संस्कृति की झलक दिखाता है.
लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रतीकों से आगे बढ़कर ज़मीनी बदलाव भी होंगे?
जब आदिवासी परिवार स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और बच्चों की मौत जैसी त्रासदियों से जूझ रहे हैं, तब केवल सांस्कृतिक आयोजनों और योजनाओं की घोषणाओं से उनकी पीड़ा कम नहीं होती.
आदिवासी समाज ठोस नीतिगत कदम और जवाबदेही चाहता है. बिना वास्तविक सुधार के, ऐसे दौरे उत्सव की चकाचौंध में असल समस्याओं और ज़मीनी हकीकत को नज़रंदाज़ करने का काम ही करते हैं.
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