झारखंड के गोड्डा ज़िले में हुए सुर्या नारायण हांसदा के कथित एनकाउंटर ने नया मोड़ ले लिया है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने पुलिस से पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है.
एनसीएसटी की टीम रविवार को गोड्डा पहुंची और घटना से जुड़े कई पहलुओं की जांच की.
टीम का नेतृत्व आशा लाकरा ने किया. उन्होंने हांसदा के परिवार से मुलाकात की और उस जगह का भी दौरा किया, जहां 10 अगस्त को पुलिस ने मुठभेड़ में सुर्या हांसदा मार गिराया था.
आशा लाकरा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पुलिस की कहानी में कई तथ्य मेल नहीं खाते.
आयोग ने गोड्डा के उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक से सात दिन के भीतर पूरी जानकारी देने को कहा है.
कौन था सूर्या नारायण हांसदा?
सूर्या नारायण हांसदा की छवि दो अलग-अलग पहलुओं में बंटी हुई थी.
पुलिस रिकॉर्ड में वह अपहरण, रंगदारी और लूट जैसे कई मामलों में वांछित बताया गया, जबकि स्थानीय लोगों की नज़र में वह एक समाजसेवी और आदिवासी अधिकारों की आवाज़ था.
सूर्या ने कथित रुप से एक स्कूल की स्थापना की थी, जहां वह आदिवासी बच्चों को फ्री शिक्षा दिलाता था. शायद यही वजह है कि एनकाउंटर में मारे जाने के बाद भी कई लोग उसे अपराधी मानने को तैयार ही नहीं हैं
राजनीति में भी उसने अपनी किस्मत आज़माई थी, हालांकि उसे सफलता नहीं मिली.
सबसे पहले 2009 में जेवीएम (झारखंड विकास मोर्चा) से, 2019 में भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) से और 2024 में जेएलकेएम (झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा) के टिकट पर सूर्या ने बोरियो विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा.
घटना के बारे में क्या कहती है पुलिस?
पुलिस का कहना है कि हांसदा पर पच्चीस से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे.
गिरफ्तारी के बाद उसे हथियार बरामद कराने रहदबड़िया पहाड़ी ले जाया गया. वहीं उसने कथित तौर पर पुलिसकर्मी की रायफल छीन ली और गोली चलाई.
पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में उसे मार गिराया.
उनके सहयोगियों का कहना है कि हांसदा अपराधी नहीं बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता थे. वे लगातार अवैध खनन और माफिया गतिविधियों का विरोध करते थे.
शिक्षा, ज़मीन की सुरक्षा और युवाओं के भविष्य जैसे मुद्दे उठाते थे. संगठनों का आरोप है कि इसी वजह से उन्हें साजिश के तहत मार दिया गया.
एनसीएसटी के एक अन्य सदस्य निरुपम चकमा ने भी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए.
उन्होंने कहा कि रात में हथियार बरामद कराने क्यों ले जाया गया? अगर आधे घंटे तक गोलीबारी चली, तो आसपास के गांववालों ने आवाज क्यों नहीं सुनी?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का कहना है कि ज़रूरत पड़ने पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दिल्ली बुलाया जा सकता है.
विपक्षी पार्टी ने प्रशासन और सरकार पर उठाए सवाल
घटना के बाद राजनीतिक हलचल भी तेज़ है.
भाजपा ने इसे सोची–समझी हत्या बताया है. सांसद दीपक प्रकाश ने आयोग में शिकायत की, जबकि नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया कि सरकार माफियाओं के दबाव में काम कर रही है और आदिवासी नेताओं को झूठे मामलों में फंसाकर रास्ते से हटाया जा रहा है.
आरोप-प्रत्यारोप के बीच कई आदिवासी संगठनों ने रांची में राजभवन तक मार्च किया.
उन्होंने मांग की कि पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए और हांसदा के परिवार को सुरक्षा दी जाए.
केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने कहा कि यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है बल्कि पूरे आदिवासी समाज के अधिकारों से जुड़ा सवाल है.
मामले की जांच सीआईडी को सौप दी गई है. लेकिन परिवार, आदिवासी संगठन और भाजपा की मांग है कि निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इसे सीबीआई को दिया जाए.
Photo credit – Prabhat Khabar