HomeAdivasi Dailyबांसवाड़ा में यूक्लियर प्लांट के खिलाफ आदिवासियों का जोरदार आंदोलन

बांसवाड़ा में यूक्लियर प्लांट के खिलाफ आदिवासियों का जोरदार आंदोलन

प्रदर्शन कर रहे आदिवासी संगठनों ने कहा है कि अगर सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लेती, तो वे प्रधानमंत्री की यात्रा के समय भी विरोध प्रदर्शन करेंगे.

राजस्थान के दक्षिणी जिले बांसवाड़ा में इन दिनों एक बड़ा आदिवासी आंदोलन चल रहा है. यहाँ सैकड़ों आदिवासी लोग सरकार के एक बड़े प्रोजेक्ट के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं.

यह प्रोजेक्ट है – माही बांसवाड़ा राजस्थान एटॉमिक पावर प्रोजेक्ट (MBRAPP).

सरकार की योजना है कि इस प्रोजेक्ट की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद रखेंगे, जो इसी हफ्ते बांसवाड़ा आ रहे हैं.

लेकिन इससे पहले ही आदिवासी समाज ने विरोध की आवाज़ बुलंद कर दी है.

यह परमाणु बिजली घर माही नदी और नपला गाँव के पास बनना है. इस न्यूक्लियर प्लांट से 2800 मेगावॉट बिजली बनाई जाएगी.

इसे दो सरकारी कंपनियाँ – एनटीपीसी (NTPC) और एनपीसीआईएल (NPCIL) मिलकर बनाएंगी. इस परियोजना में कुल चार न्यूक्लियर रिएक्टर लगाए जाएंगे.

इसके लिए कई गाँवों की ज़मीन अधिग्रहित की जा रही है यानी सरकार ज़मीन ले रही है.

लोगों की शिकायत क्या है?

यहाँ के आदिवासी समुदाय का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की वजह से कई गाँवों के लोग बेघर हो रहे हैं.

उनकी जमीन छीन ली जा रही है, लेकिन बदले में उन्हें ना तो पर्याप्त मुआवजा दिया गया है, और ना ही दूसरी जगह बसाया गया है.

कई लोग ऐसे भी हैं जो पहले माही डैम के कारण अपना घर और खेत खो चुके हैं, और अब दूसरी बार उन्हें हटाया जा रहा है.

आदिवासी नेताओं का कहना है कि एक ही परिवार को दो बार उजाड़ना अन्याय है.

मांगें क्या हैं?

प्रदर्शन कर रहे लोगों की मुख्य मांग है कि उन्हें सही मुआवजा मिले, नई जमीन दी जाए और उन्हें न्यूक्लियर प्लांट में नौकरी भी दी जाए.

वे यह भी चाहते हैं कि जिन गाँवों को इस प्रोजेक्ट से नुकसान होगा, वहाँ स्कूल, अस्पताल, सड़क जैसी सुविधाएँ दी जाएँ.

इसके अलावा, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की सही जानकारी भी लोगों को दी जाए.

सामाजिक और कानूनी पक्ष

सांसद राजकुमार रोत ने भी इस मुद्दे पर आवाज़ उठाई है.

उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी भी परिवार को एक से ज्यादा बार बेघर नहीं किया जा सकता. फिर भी सरकार वही गलती दोहरा रही है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि 2001 में माही डैम के कारण बेघर हुए करीब 40 मछुआरे परिवारों को आज तक कोई मुआवजा नहीं मिला. अब उन्हें फिर से उजाड़ा जा रहा है.

प्रदर्शन की चेतावनी

प्रदर्शन कर रहे आदिवासी संगठनों ने कहा है कि अगर सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लेती, तो वे प्रधानमंत्री की यात्रा के समय भी विरोध प्रदर्शन करेंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि यह धरना तब तक चलेगा, जब तक सरकार लिखित में कोई भरोसा नहीं देती.

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