HomeAdivasi Dailyटैटू आर्ट आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा का अटूट हिस्सा

टैटू आर्ट आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा का अटूट हिस्सा

पुरातत्वविदों और एंथ्रोपॉलोजिस्ट के लिए टैटू डिजाइन, उसको बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण और रंग, और बनाने का तरीक़ा शोध का बड़ा विषय रहा है. प्रोफ़ेसर सत्यपाल के अनुसार, टैटू को दुनियाभर के आदिवासियों का सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है.

हाल ही में अरकू घाटी में एक टैटू स्टूडियो खुला है. अरकू घाटी और आस-पास की आदिवासी बस्तियों के युवा अपने पसंदीदा फिल्मी सितारों के चेहरों से लेकर अपनी संस्कृति के बाहर के प्रतीकों के डिज़ाइन अपने शरीर पर बनवा रहे हैं.

डिज़ाइन भले ही अलग हों, लेकिन सच तो यह है कि टैटू सदियों से आदिवासियों की संस्कृति का अटूट हिस्सा रहे हैं. एंथ्रोपॉलोजिकल अध्ययन ने पाया है कि टैटू 5,000 साल से भी ज़्यादा से इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

दरअसल, आदिवासी टैटू को एक कला के रूप में नहीं देखते. उनके लिए यह उनकी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा है. आंध्रा यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपॉलोजी के पूर्व चीफ़ पीडी सत्यपाल ने द हिंदू से बातचीत में कहा कि आधुनिक डिज़ाइन बनाने वाले टैटू स्टूडियो आदिवासी संस्कृति के नष्ट होने का संकेत हैं.

पुरातत्वविदों और एंथ्रोपॉलोजिस्ट के लिए टैटू डिजाइन, उसको बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण और रंग, और बनाने का तरीक़ा शोध का बड़ा विषय रहा है. प्रोफ़ेसर सत्यपाल के अनुसार, टैटू को दुनियाभर के आदिवासियों का सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है.

विशाखापत्तनम एजेंसी इलाक़े में ही कई उप-समूहों के साथ 15 से ज़्यादा मान्यता प्राप्त जनजातियाँ हैं. इनमें से हर एक समुदाय का अपनी पहचान के लिए एक विशेष टैटू पैटर्न है.

नागालैंड के कोनयाक आदिवासी अपने फ़ेस टैटू के लिए मशहूर हैं

टैटू न सिर्फ़ सुंदरता के लिए बनाए जाते हैं, बल्कि वो अलग-अलग समुदायों को पहचानने का भी एक बड़ा ज़रिया हैं. टैटू के डिज़ाइन पुरुषों से महिलाओं, समुदाय से समुदाय, और पेशे से पेशे में अलग होते हैं.

मसलन, प्रोफ़ेसर सत्यपाल कहते हैं कि जादू टोना करने वाली औरत का एक अलग टैटू होता है, जो उसे गाँव के पुजारी से अलग करता है. इसी तरह गडबा जनजाति का टैटू पैटर्न कोंध या कोया आदिवासियों से अलग है.

पूर्वी घाट के आदिवासी टैटू के लिए वनस्पति रंगों का उपयोग करते हैं और उनके कुलदेवता प्रतीक इन टैटू के डिज़ाइन का आधार होते हैं.

पांगी उपनाम वाले लोगों का कुलदेवता प्रतीक चील है, और वे आम तौर पर इसे ही अपनी बांहों पर बनवाते हैं. इसी तरह, किलो समुदाय में कुलदेवता का प्रतीक बाघ हैं, जबकि कोरा में सूरज और  वनथला का कोबरा. किसी के शरीर पर बने टैटू से उसके समुदाय की पहचना हो जाती है.

मसलन, विशाखा एजेंसी इलाक़े में टैटू डिजाइन बिंदुओं या डॉट्स पर आधारित होते हैं, लेकिन अंडमान द्वीप समूह में यह डिजाइन लाइन-आधारित होते हैं. इसी तरह दुनिया भर के आदिवासी अलग-अलग टैटू डिज़ाइन से अपनी पहचान बनाते हैं.

आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा दुनिया भर में फैल गई है. लेकिन जिस संस्कृति ने आधुनिक टैटू आर्ट को जन्म दिया है, अब वही इसकी वजह से ख़तरे में हैं. और इसका सबसे बड़ा नुकसान आदिवासियों की आने वाली पीढ़ियों को होगा.

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