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आदिवासी समूहों के विरोध के बाद तेलंगाना सरकार ने टाइगर कॉरिडोर के प्रस्ताव को स्थगित किया

पंचायत राज मंत्री डी. अनसूया सीताक्का, आदिलाबाद के प्रभारी मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव, वन मंत्री कोंडा सुरेखा और स्थानीय विधायक वेदमा भोज्जू के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी से मुलाकात के बाद यह निर्णय लिया.

तेलंगाना सरकार ने सोमवार (21 जुलाई) को यू-टर्न लेते हुए आदिवासियों, विपक्षी दलों और कांग्रेस के भीतर उठ रही आवाज़ों के बाद कुमराम भीम बाघ संरक्षण रिजर्व के निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी आदेश (जीओ) 49 को स्थगित कर दिया.

30 मई को जारी इस आदेश में आसिफाबाद और कागजनगर वन प्रभागों में 1,492.88 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कुमराम भीम संरक्षण रिजर्व (Kumuram Bheem Conservation Reserve) के रूप में अधिसूचित किया गया था.

जिसका उद्देश्य तेलंगाना के कवल टाइगर रिजर्व (Kawal Tiger Reserve) और महाराष्ट्र के ताडोबा अंधारी रिजर्व (Tadoba Andhari reserve) को जोड़ने वाले एक महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर को औपचारिक रूप देना था.

लेकिन करीब 339 आदिवासी गांवों में विस्थापन की बढ़ती आशंकाओं और आदिलाबाद जिले में सोमवार को पूर्ण बंद के बीच राज्य सरकार को अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा.

पंचायत राज मंत्री डी. अनसूया सीताक्का, आदिलाबाद के प्रभारी मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव, वन मंत्री कोंडा सुरेखा और स्थानीय विधायक वेदमा भोज्जू के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी से मुलाकात के बाद यह निर्णय लिया.

कोंडा सुरेखा ने वारंगल में मीडिया से कहा, “कांग्रेस के नेतृत्व वाली जनता की सरकार हमेशा जंगल के बच्चों के साथ खड़ी रहेगी. आदिवासियों और जनजातियों को जीओ 49 को लेकर कोई चिंता नहीं होनी चाहिए.”

इस सरकारी आदेश के विरोध में आदिलाबाद, निर्मल, कुमराम भीम आसिफाबाद और मंचेरियल जिलों में आदिवासी समूहों ने पूरे दिन का बंद रखा.

आदिवासी समूह टुडुम देब्बा के आह्वान पर बसें सड़कों से नदारद रहीं जबकि कारोबार, स्कूल और सिनेमाघर और पेट्रोल पंप बंद रहे, सार्वजनिक परिवहन ठप्प रहे.

व्यापक प्रतिरोध और बेदखली का डर

सरकारी आदेश पर आदिवासी अधिकार समूहों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी, जिनमें टुडुम देब्बा (Tudum Debba) भी शामिल हैं, जिनके नेता गोडम गणेश ने कहा कि यह कॉरिडोर आदिवासियों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और बड़े पैमाने पर विस्थापन का कारण बनेगा.

उन्होंने कहा, “हमें डर है कि इससे आसिफाबाद और कागजनगर के 339 आदिवासी गांव प्रभावित होंगे.”

टुडुम देब्बा द्वारा सोमवार को आहूत बंद के कारण चार जिलों में कारोबार, स्कूल और सार्वजनिक परिवहन ठप्प रहे.

सीपीआई और सीपीएम के पदाधिकारियों ने भी आंदोलन का समर्थन किया और सरकार पर आदिवासियों की ज़मीन हड़पने का आरोप लगाया.

विरोध प्रदर्शनों को कथित तौर पर सीपीआई (माओवादी) के एक पत्र ने और भड़का दिया, जिसमें सीताक्का से प्रभावित इलाकों में आदिवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया था.

सीताक्का, जिनकी जड़ें आदिवासी हैं और जो खुद एक पूर्व माओवादी हैं. उन्होंने पत्र की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया, लेकिन कहा कि वह ऐसे किसी भी फैसले को मंज़ूरी नहीं देंगी जिससे वनवासी समुदायों को नुकसान पहुंचे.

उन्होंने कहा, “जैसे ही जीओ 49 को लेकर चिंताएं जताई गईं, मैंने सीधे संबंधित अधिकारियों से बात की. मैं वन या वन्यजीव संरक्षण के नाम पर आदिवासियों की आजीविका को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी नीति की अनुमति कभी नहीं दूंगी.”

कॉरिडोर का पारिस्थितिक महत्व

अब निलंबित कुमराम भीम संरक्षण रिजर्व की परिकल्पना बाघों की आवाजाही और प्रमुख अभ्यारण्यों के बीच आनुवंशिक आदान-प्रदान के लिए एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कड़ी के रूप में की गई थी.

यह क्षेत्र कवल को महाराष्ट्र के ताड़ोबा, टिपेश्वर, कन्हारगांव, चपराला और छत्तीसगढ़ के इंद्रावती से जोड़ता है.

बाघों के अलावा यह तेंदुए, जंगली कुत्ते, भालू, भेड़िये, लकड़बग्घे और 240 से अधिक पक्षी प्रजातियों का घर है, जिनमें लुप्तप्राय मालाबार पाइड हॉर्नबिल और लंबी चोंच वाले गिद्ध भी शामिल हैं.

सरकारी आदेश के मुताबिक, पिछले एक दशक में प्रजनन करने वाले बाघों की उपस्थिति और लगातार अंतर-राज्यीय फैलाव की घटनाएं लॉन्ग टर्म संरक्षण के लिए इस क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करती हैं. प्रस्तावित क्षेत्र में 10 मंडलों में 78 आरक्षित वन खंड शामिल हैं.

नीति परिवर्तन से संरक्षणवादी निराश

एक तरफ जहां आदिवासी समुदायों ने इस निर्णय का स्वागत किया. वहीं वन्यजीव विशेषज्ञों ने सरकार के इस मामले से निपटने के तरीके पर चिंता व्यक्त की.

वन्यजीव अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ क्षेत्रीय संरक्षणवादी और HYTICOS के सह-संस्थापक इमरान सिद्दीकी ने कहा, “आदिवासियों के विरोध के बाद कुमराम भीम संरक्षण रिजर्व को स्थगित रखने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है. इसलिए नहीं कि स्थानीय समुदायों की चिंताएं अमान्य हैं बल्कि इसलिए कि यह बातचीत की विफलता को दर्शाता है.”

उन्होंने कहा, “संरक्षण कभी भी थोपा नहीं जाना चाहिए बल्कि उन लोगों के साथ मिलकर बनाया जाना चाहिए जो पीढ़ियों से इन जंगलों में रहते आए हैं और उनकी रक्षा करते आए हैं. संरक्षण को त्यागने के बजाय हमें विश्वास बनाने के लिए और अधिक मेहनत करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संरक्षण प्रकृति और स्थानीय लोगों की आजीविका, दोनों को उन्नत करे.”

वन अधिकारियों द्वारा आशंकाओं को दूर करने और यह बताने की कोशिश कि तत्काल बेदखली की कोई योजना नहीं है, नाकाम रही.

अब वन विभाग को एक नई रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है और मुख्यमंत्री कार्यालय ने संकेत दिया है कि आगे विचार-विमर्श के बाद नीति पर पुनर्विचार किया जा सकता है.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, तेलंगाना सरकार ने 30 मई, 2025 को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के मुताबिक, तेलंगाना के कवल टाइगर रिज़र्व को महाराष्ट्र के ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व से जोड़ने वाले टाइगर कॉरिडोर क्षेत्र को कुमराम भीम संरक्षण रिज़र्व घोषित करने के आदेश जारी किए थे.

विस्तारित कवल टाइगर कॉरिडोर के हिस्से के रूप में, आसिफाबाद, केरामेरी, रेबेना, तिरयानी, कागजनगर, सिरपुर, करजेली, बेजूर और पेंचिकलपेट सहित कई वन क्षेत्रों में 1.49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कुमराम भीम टाइगर संरक्षण रिज़र्व में परिवर्तित करने के लिए सरकारी आदेश जारी किया गया था.

हालांकि, 330 से ज़्यादा गांवों के प्रभावित होने के कारण कई आदिवासी निवासियों और स्थानीय प्रतिनिधियों ने संभावित विस्थापन और अपने वन अधिकारों पर प्रतिबंधों को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त कीं.

कोंडा सुरेखा ने आदिलाबाद ज़िले के प्रभारी मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव और पंचायत राज मंत्री सीताक्का के साथ मिलकर स्थिति की व्यापक समीक्षा की और अपने निष्कर्ष और सिफ़ारिशें मुख्यमंत्री को सौंपीं.

मुख्यमंत्री के निर्देश पर, वन विभाग ने सोमवार को सरकारी आदेश 49 के कार्यान्वयन को स्थगित करने के आदेश जारी किए.

मंत्री कोंडा सुरेखा ने कहा कि सरकार ने कई आदिवासी क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों और जनप्रतिनिधियों द्वारा उठाई गई चिंताओं का सम्मान करते हुए यह निर्णय लिया है.

उन्होंने कहा, “यह जनता की सरकार है. हम ऐसा कोई भी निर्णय नहीं लेंगे जिससे आदिवासियों और जनजातीय समुदायों के अधिकारों या आजीविका को नुकसान पहुँचे. स्थानीय लोगों की चिंताओं को सुना गया है और उसके अनुसार कार्रवाई की गई है. प्रत्येक नागरिक, विशेषकर हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों का कल्याण हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है.”

मंत्री ने कहा कि तेलंगाना सरकार समावेशी विकास को प्राथमिकता देती रहेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि संरक्षण के प्रयास स्वदेशी समुदायों के अधिकारों और कल्याण के साथ-साथ चलें.

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