HomeAdivasi Dailyआरक्षण बचाने की लड़ाई: पालघर में आदिवासियों का 'जन आक्रोश मोर्चा'

आरक्षण बचाने की लड़ाई: पालघर में आदिवासियों का ‘जन आक्रोश मोर्चा’

बंजारा-ढांगार को ST में शामिल करने के विरोध में पालघर में आदिवासी समाज का विशाल आंदोलन

महाराष्ट्र के पालघर  जिले में आज (16 अक्टूबर, 2025) को एक बड़ा आंदोलन हुआ.

इस आंदोलन में हजारों आदिवासी महिलाएं, पुरुष, युवा और छात्र सड़कों पर उतर आए.

यह आंदोलन “जन आक्रोश विशाल मोर्चा” के नाम से किया गया था.

इस प्रदर्शन का मुख्य कारण था कि कुछ समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में शामिल करने की कोशिश की जा रही है, जिससे आदिवासी समाज को डर है कि उनके आरक्षण का हिस्सा कम हो जाएगा.

यह प्रदर्शन बहुत शांति से किया गया, लेकिन उसमें बहुत गुस्सा और चिंता साफ दिखी.

लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर आए थे, ढोल-नगाड़ों की थाप पर नारे लगा रहे थे और हाथों में बैनर लेकर सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग कर रहे थे.

नारों में कहा गया—“आरक्षण हमारा हक है, किसी की भी भीख नहीं”, “बंजारा-धनगर को ST से बाहर रखो”, “हमारे अधिकार को कोई छीन नहीं सकता”.

आंदोलनकारियों का कहना था कि अगर सरकार बंजारा और धनगर जैसे समुदायों को ST में शामिल करती है, तो इससे पहले से इस सूची में शामिल आदिवासी समाज का हक मारा जाएगा.

उनका कहना है कि ST के तहत पहले ही सीमित सीटें, नौकरियाँ और योजनाएं होती हैं.

अगर इनमें और समुदाय आ जाएंगे, तो असली आदिवासियों को कुछ नहीं मिलेगा.

इस आंदोलन में भाग लेने वाले लोगों ने जिला अधिकारी को एक ज्ञापन भी सौंपा.

इस ज्ञापन में साफ-साफ लिखा गया कि अगर सरकार ने बंजारा और धनगर समुदायों को ST में शामिल किया, तो आदिवासी समाज इसका पुरज़ोर विरोध करेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला संविधान के खिलाफ होगा, क्योंकि ST की पहचान अलग होती है और इसे किसी भी दबाव में नहीं बदला जाना चाहिए.

इस मौके पर बोईसर के विधायक विलास तारे (शिंदे गुट) भी पहुंचे.

उन्होंने आदिवासी समाज का साथ देते हुए कहा कि यह लड़ाई सिर्फ आरक्षण की नहीं है, बल्कि आदिवासियों की पहचान और संस्कृति की भी है.

उन्होंने सरकार से मांग की कि वह आदिवासी समाज के साथ न्याय करे और इस तरह के फैसलों को तुरंत रोके.

भारत में आरक्षण की व्यवस्था उन लोगों के लिए बनाई गई थी जो लंबे समय से सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं.

संविधान के अनुसार, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण दिया जाता है ताकि उन्हें समाज में बराबरी का मौका मिले.

ST यानी अनुसूचित जनजातियों की पहचान उनके खास रहन-सहन, परंपराएं, बोली और जंगलों के साथ उनके संबंध से होती है.

सरकार समय-समय पर कुछ और समुदायों को भी ST में शामिल करने की कोशिश करती है, लेकिन यह बहुत संवेदनशील विषय होता है.

बंजारा और धनगर समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने की मांग बहुत समय से चल रही है.

लेकिन आदिवासी समाज का कहना है कि ये समुदाय उनकी तरह पारंपरिक जनजाति नहीं हैं और इनकी जीवनशैली, संस्कृति और सामाजिक पहचान अलग है.

इस वजह से उन्हें ST में शामिल करना गलत होगा.

आदिवासी लोगों को डर है कि अगर ये समुदाय ST में आ गए, तो जो थोड़ी बहुत नौकरियाँ, छात्रवृत्तियाँ और योजनाएँ आदिवासियों के लिए हैं, वह भी उनसे छिन जाएँगी.

इसके अलावा उनका कहना है कि उनके समाज की पहचान भी खतरे में आ जाएगी.

पालघर का यह आंदोलन सिर्फ एक जिले की लड़ाई नहीं है.

यह पूरे देश के आदिवासी समाज के लिए एक संकेत है कि वे अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हैं और किसी भी गलत फैसले का विरोध करने के लिए एकजुट हैं.

यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन इसका संदेश बहुत साफ था — आदिवासी समाज अपने अधिकार और पहचान के लिए कोई भी संघर्ष करने को तैयार है.

अब सबकी निगाहें सरकार पर हैं कि वह इस मुद्दे पर क्या फैसला लेती है.

अगर सरकार ने बंजारा और ढांगार समुदायों को ST में शामिल करने का फैसला लिया, तो आदिवासी समाज का विरोध और तेज हो सकता है.

लेकिन अगर सरकार आदिवासियों की बात सुनेगी, तो इससे उनकी सुरक्षा और आत्मविश्वास को मजबूती मिलेगी.

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