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G20 सम्मेलन के भारत मंडपम में सजी आदिवासी कला और कलाकृतियों की प्रदर्शनी

9 से 10 सितंबर को G20 सम्मेलन के भारत मंडपम में अलग-अलग जनजातियों के विभिन्न प्रकार की कला, कपड़े, खाने की चीजे और आभूषणों की प्रदर्शनी आयोजित की जा रही हैं. जिसमें पिथौरा चित्रकला का सजीव प्रदर्शन भी किया जाएगा.

जी20 के शिखर सम्मेलन (G20 Summit) में विश्व नेताओं के लिए भारत मंडपम में भारतीय आदिवासी कला, संस्कृति और शिल्प की प्रदर्शनी लगाई गई है.

आज से नई दिल्ली के प्रगति मैदान के अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी-सह-सम्मेलन केंद्र (IECC) यानी भारत मंडपम में दो दिन चलने वाली जनजातियों की कला एवं कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगी है. यह प्रदर्शनी प्रगति मैदान के हॉल नंबर 3 यानी शिल्प बाजार में आयोजित होने वाली है.

प्रदर्शनी का आयोजन ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (TRIFED) एंव जनजातिय कार्य मंत्रालय करा रही है. इस प्रदर्शनी में अलग-अगल जनजाति समुदायों की विभिन्न और पारंपरिक कला देखने को मिलेगी.

जनजातियों की कला और कलाकृतियों का प्रदर्शन

प्रदर्शनी में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक जनजातीय कला, कलाकृतियों, पेंटिंग, मिट्टी के बर्तनों, वस्त्रों, जैविक प्राकृतिक उत्पादों और कई अन्य चीजें देखने को मिलेगी.

इसके साथ ही प्रदर्शनी में गुजरात और मध्य प्रदेश के राठवा, भिलाला, नायक और भील जनजातियों की प्रचलित और पूजनीय पिथौरा चित्रकला का सजीव प्रदर्शन भी किया जाएगा. पिथौरा चित्रकला का सजीव प्रदर्शन इस कला के प्रसिद्ध कलाकार एंव पद्म श्री से सम्मानित श्री परेश राठवा करेगें.

मध्य प्रदेश की महेश्वरी रेशम साड़ियाँ (Maheshwari silk sarees) जो धार्मिक कार्यों और शुभ आयोजनों में पहनी जाती है और गोंड जनजातियों का चित्र भी मन मोह लेगी. इतना ही नहीं ओडिशा की सौरा चित्रकला (Saura painting) भी आंखों को लुभाएगी.

कपड़ों में लेह-लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के बोध और भूटिया जनजातियों द्वारा बुनी गई अंगोरा और पश्मीना शॉल (Angora and Pashmina shawls) भी अपने ओर आकर्षित करेगी. इसके साथ असम के बोड़ो जनजाति (Bodo tribe) द्वारा बेहद नाजुक ढंग से बनाई जाने वाली ईरी (Eri) या मिलेनियम सिल्क साड़ी (Millenium Silk) भी सिल्क साड़ियों का प्रतिनिधित्व करेगी.

इसके अलावा प्रदर्शनी में नागालैंड के कोन्याक जनजातियों (Konyak tribes) के रंग-बिरंगे आभूषण भी अपनी ओर ध्यान खिंचेंगे. आभूषण के मामले में ढोकरा जनजाति की पिघली हुई धातुओं, मोतियों, रंगीन कांच के टुकड़ों, और लकड़ी की गेंदों से बने हुए आभूषण ही इनकी विशेष पहचान हैं. इस कला को पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की जनजातियों के कारीगर बनाते हैं.

राजस्थान के मीना आदिवासी द्वारा बनाए गए खूबसूरत धातु अंबाबारी शिल्प (Metal Ambabari craft) भी आखों को बेहद लुभा लेगी. इन्हें एनामेलिंग (Enamelling) के उपयोग से तैयार किया जाता है. जो धातु की सतह को रंगने या सजाने की कला है. जिसमें सतह पर फूलों, पक्षियों आदि के बेहद नाजुक डिजाइन बने होते हैं. यह कला देखने में पारंपरिक लगता है और घरों में शांति प्रदान करती हैं.

प्रदर्शनी में आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र आदी के विभिन्न राज्यों के अराकू वैली (Araku Valley) की कॉफी, शहद, काजू, चावल, मसाले आदि भी देखने को मिलेगा.

संक्षेप में कहा जाए तो एक जगह पर अलग-अलग जनजातियों के विभिन्न प्रकार की कला, कपड़े, खाने की चीजे और आभूषणों की खूबसूरती को देखा जा सकेगा. इसके साथ ही इस प्रदर्शनी के माध्यम से सभी जनजातियों को विश्व स्तरीय पहचान मिलने में मदद मिलेगी.

(Image credit: @tribesindia)

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