झारखंड के हजारीबाग जिले के बरकाकांडे प्रखंड में स्थित पांदानवाटंद गांव में आज भी बिजली नहीं पहुंची है.
इस गांव में करीब 250 लोग रहते हैं और यहां की अधिकांश आबादी गंजु जनजाति की है.
गंजु समाज को हाल ही में अनुसूचित जनजाति (ST) की मान्यता दी गई है, लेकिन इसके बावजूद गांव में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं.
गांव में न तो बिजली है और न ही कोई सोलर लाइट या पक्की सड़क.
पांदानवाटंद गांव में बिजली न होने की वजह से लोगों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
सबसे बड़ी परेशानी मोबाइल चार्ज करने की है, जिसके लिए उन्हें रोज़ाना 6 किलोमीटर पैदल चलकर ट्रक की बैटरी से चार्ज करना पड़ता है.
आज के समय में मोबाइल सिर्फ बात करने का साधन नहीं, बल्कि बैंकिंग, पढ़ाई और सरकारी योजनाओं तक पहुंच का ज़रिया भी बन चुका है.
बिजली न होने के कारण गांव में शाम होते ही अंधेरा छा जाता है और लोग आज भी टॉर्च, लैंप और दीयों का सहारा लेते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है और बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता है.
इस अंधेरे का सबसे बुरा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है क्योंकि ना तो लाइट है और ना ही मोबाइल या इंटरनेट चार्ज करने की सुविधा, जिससे ऑनलाइन पढ़ाई भी नहीं हो पा रही है.
बुजुर्गों और बीमार लोगों को रात में चलने-फिरने या किसी आपात स्थिति में इलाज की व्यवस्था करना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है क्योंकि फोन चार्ज नहीं रहता.
महिलाओं की सुरक्षा भी अंधेरे में खतरे में पड़ जाती है, खासकर जब उन्हें रात में बाहर जाना पड़ता है, क्योंकि गांव की गलियां बिना स्ट्रीट लाइट के पूरी तरह सुनसान और असुरक्षित हो जाती हैं.
इसके अलावा, मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा न होने से लोग डिजिलॉकर, आधार अपडेट, बैंकिंग और स्वास्थ्य जैसी जरूरी सरकारी सेवाओं से भी वंचित रह जाते हैं.
ये सारी परेशानियां एक ही बात को साबित करती हैं – कि बिजली केवल सुविधा नहीं, बल्कि आज की ज़रूरत बन चुकी है, और इसके बिना जीवन बेहद कठिन हो जाता है.
हालांकि इस गंभीर समस्या को लेकर सरकार ने कुछ कदम उठाने की बात कही है.
स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि गांव को जल्द ही “सौभाग्य योजना” के तहत बिजली से जोड़ा जाएगा.
बिजली विभाग ने इस इलाके का सर्वे कर लिया है और ट्रांसफॉर्मर लगाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है.
इसके अलावा सरकार कुछ गांवों में सोलर लाइट लगाने पर भी विचार कर रही है, ताकि जब तक मुख्य बिजली लाइन न पहुंचे, तब तक लोग किसी हद तक राहत महसूस कर सकें.
फिर भी गांव वालों को चिंता है कि ये वादे सिर्फ कागजों तक सीमित न रह जाएं.
उनका कहना है, कि उन्होंने पहले भी कई बार अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला.
पांदानवाटंद गांव की स्थिति यह दिखाती है कि आज भी देश के कई हिस्से विकास की दौड़ में बहुत पीछे हैं.
जरूरत है कि सरकार और प्रशासन मिलकर ऐसे गांवों को प्राथमिकता दें, ताकि हर नागरिक को बिजली जैसी बुनियादी सुविधा मिल सके.