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टॉमन कुमार की कहानी: एक पैर खोने के बाद भी ओलंपिक जीतने का सपना

माओवादियों के हमले में एक पैर गंवाने के बाद भी टॉमन ने हार नहीं मानी. तीरंदाज़ी को अपनाकर उन्होंने देश के लिए गोल्ड मेडल जीता और अब उनका सपना है ओलंपिक में भारत का परचम लहराना.

छत्तीसगढ़ के बलौद जिले के रहने वाले टॉमन कुमार आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

वे पहले CRPF में कांस्टेबल थे, लेकिन साल 2022 में माओवादियों के IED ब्लास्ट में बुरी तरह घायल हो गए.

इस घटना में उन्होंने अपना एक पैर खो दिया.

लेकिन जहां ज़्यादातर लोग ऐसे हादसे के बाद हिम्मत हार जाते हैं, वहीं टॉमन ने हार नहीं मानी.

उन्होंने अपने नए जीवन की शुरुआत की और तीरंदाज़ी (Archery) को चुना.

उन्होंने मेहनत की, रोज़ाना अभ्यास किया और खुद को एक अच्छे खिलाड़ी के रूप में साबित किया.

आज टॉमन भारत के बेहतरीन पैरातीरंदाज़ों (Para Archers) में गिने जाते हैं.

टॉमन ने 2025 में दक्षिण कोरिया में हुई पैरा वर्ल्ड तीरंदाज़ी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीता.

इस जीत के बाद उन्होंने अब 2028 में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में होने वाले ओलंपिक में हिस्सा लेने का सपना देखा है.

ओलंपिक तक पहुंचने के लिए टॉमन को अभी कुछ और मुकाबले खेलने होंगे. सबसे अहम मुकाबला 2026 में जापान में होने वाला एशियन गेम्स है.

अगर वे वहां पदक जीतते हैं, तो उनका ओलंपिक का रास्ता साफ हो जाएगा. टॉमन इन दिनों रोज़ कड़ी मेहनत कर रहे हैं, ताकि वे इस मौके को हासिल कर सकें.

टॉमन का कहना है कि उनका सपना सिर्फ खुद के लिए नहीं है, बल्कि वे छत्तीसगढ़ और पूरे देश का नाम रोशन करना चाहते हैं.

 उनका मानना है कि उनके जैसे कई और बच्चे, खासकर आदिवासी इलाकों से, खेलों में बहुत आगे जा सकते हैं, अगर उन्हें सही मौका और मदद मिले

टॉमन खुद एक आदिवासी समुदाय से आते हैं.

उन्होंने बताया कि उनके गांव में सुविधाएं कम थीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

बचपन से ही उन्हें खेलों का शौक था.

हादसे के बाद भी उन्होंने खुद को कमजोर नहीं समझा. पैर खोने के बाद उन्होंने नया रास्ता चुना और खेल को अपना जीवन बना लिया.

आज टॉमन एक स्टार खिलाड़ी हैं, लेकिन उनकी जिंदगी आसान नहीं रही.

उन्होंने कई मुश्किलें झेली हैं,  चोट का दर्द, मानसिक तनाव, समाज का व्यवहार, लेकिन हर चुनौती का सामना डटकर किया.

टॉमन अब चाहते हैं कि सरकार और समाज ऐसे खिलाड़ियों को पहचाने जो छोटे इलाकों से हैं, लेकिन बड़े सपने रखते हैं.

वे चाहते हैं कि राज्य सरकार ऐसे खिलाड़ियों को मदद दे, ताकि उन्हें अच्छा प्रशिक्षण, कोचिंग और जरूरी उपकरण मिल सकें.

उन्होंने कहा कि अगर सरकार चाहे, तो वे खुद नए खिलाड़ियों को सिखाने में मदद करना चाहेंगे.

उन्हें खुशी होगी अगर वे किसी और की जिंदगी में भी उम्मीद की किरण बन सकें.

आज टॉमन ना सिर्फ एक तीरंदाज़ हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ के युवाओं के लिए उम्मीद का एक नया चेहरा बन चुके हैं.

वे बताते हैं कि उन्होंने रायपुर में पैरातीरंदाज़ी की ट्रेनिंग शुरू की थी, जहां उन्हें कोच और खेल विभाग का सहयोग मिला.

शुरुआत में उन्हें कई तकनीकी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, क्योंकि प्रोस्थेटिक पैर (कृत्रिम पैर) के साथ तीरंदाज़ी करना आसान नहीं होता, लेकिन उन्होंने हर दिन अभ्यास करके खुद को बेहतर बनाया.

टॉमन की यह कहानी बताती है कि अगर हौसला मजबूत हो, तो कोई भी इंसान अपनी जिंदगी को बदल सकता है.

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