HomeAdivasi Dailyमादक पेय: पूर्वोत्तर के जनजातीय समुदायों को एक सूत्र में पिरोते हैं

मादक पेय: पूर्वोत्तर के जनजातीय समुदायों को एक सूत्र में पिरोते हैं

त्रिपुरा राज्य का भी अपना पारंपरिक पेय है जिसे चुवाक (Chuwak) कहते हैं. त्रिपुरियों के लिए ये पारंपरिक पेय न सिर्फ खपत के लिए हैं बल्कि औषधीय उपयोगों के लिए भी हैं. साथ ही ये लोग इसे अपने देवताओं को भी चढ़ाते हैं.

पूर्वोत्तर भारत कई जनजातियों का घर है जो इस क्षेत्र की विविधता को बढ़ाते हैं. इन जनजातियों की अपनी अनूठी वेशभूषा, खानपान और त्योहार इन्हें बेहद ख़ास बनाते हैं. यहां के लोग ज्यादातर खेती पर निर्भर हैं, विशेष रूप से चावल की खेती पर क्योंकि यहां चावल की खपत बहुत ज्यादा है.

यहां की जनजातियों की आकर्षण का एक और केंद्र है – राइस बीयर. यहां के निवासियों का चावल से बनी बीयर या पारंपरिक पेय तैयार करने के अपने तरीके हैं. पूर्वोत्तर भारत का हर राज्य राइस बीयर का अपना वर्जन बनाता है और यकीन मानिए इसका स्वाद हर जगह अलग होता है.

जड़ी-बूटियों और मसालों के साथ घर पर तैयार किए जाने वाले ये स्थानीय पेय या राइस बीयर आदिवासी भोजन का एक मुख्य हिस्सा हैं. इन पारंपरिक पेय का दिलचस्प पहलू इसका नामकरण, बनाने की प्रक्रिया और साथ ही वे अवसर भी हैं जब इसका सेवन किया जाता है. वहीं स्वदेशी स्पर्श वाली इसकी सुगंध जादू का काम करती है.

पूर्वोत्तर के राज्यों में इन पेय के अलग-अलग नाम हैं. तो आइए आज हम पूर्वोत्तर के लोकप्रिय घर पर बने पेय के बारे में जानते है…

असम (अपोंग)

असम राज्य अपने पारंपरिक पेय पदार्थों के लिए प्रसिद्ध है और ऐसे ही एक पारंपरिक पेय को ‘अपोंग’ (Apong) के नाम से जाना जाता है. अपोंग पारंपरिक रूप से मिसिंग समुदाय द्वारा पके हुए चावल को किण्वित (पदार्थ को सड़ा के बनाए जाने वाला) करके बनाया जाता है.

चावल और जड़ी-बूटियों से बनी हल्के क्रीम रंग की इस बियर को ख़ास तौर पर मिसिंग महिलाएं ही बनाती हैं. क्योंकि महिलाओं को राइस बीयर बनाने की गहरी जानकारी होती है जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा है.

अपोंग की दो क़िस्में होती है – नोंगज़िन अपोंग, जो सिर्फ चावल से बनती है और पोरो अपोंग, जिसमें धान की डंठल की राख का स्वाद मिला होता है.

राख, उबले चावल और जड़ीबूटियों के किण्वित मिश्रण को एक शंकु के आकार की टोकरी में रख दिया जाता है, जिसके पेंदे पर केले का पत्ता बिछा होता है. उसके बाद इस टोकरी को एक हांडी के ऊपर लटका दिया जाता है. टोकरी में पानी को उड़ेला जाता है और मिश्रण की बनी हुई बियर बूंद-बूंद कर नीचे रखी हांड़ी में टपकती रहती है. इसे अमूमन खाने के साथ पिया जाता है.

अपोंग मिसिंग समुदाय के लिए सिर्फ एक पेय नहीं है बल्कि उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है. जैसा कि मिसिंग समुदाय के लोगों का कहना भी है कि अगर हमारे जीवन में अपोंग नहीं हो तो हम किसी पूजा या समारोह के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं.

मिडांग (विवाह), उई (अनुष्ठान), तानी सिको (मृत्यु समारोह) और यहां तक ​​​​कि पोराग, अली ऐ लिगैंग जैसे त्योहारों में भी किया जाता है.

अपोंग का गिलास देकर मेहमानों का स्वागत करना मिसिंग समुदाय के लिए गर्व की बात होती है.

त्रिपुरा (चुवाक)

त्रिपुरा राज्य का भी अपना पारंपरिक पेय है जिसे चुवाक (Chuwak) कहते हैं. त्रिपुरियों के लिए ये पारंपरिक पेय न सिर्फ खपत के लिए हैं बल्कि औषधीय उपयोगों के लिए भी हैं. साथ ही ये लोग इसे अपने देवताओं को भी चढ़ाते हैं.

जनजातियों द्वारा तैयार किए जाने वाले सभी विशिष्ट चावल पेय पदार्थों की तरह, यह पेय भी स्थानीय रूप से उपलब्ध चावल और विभिन्न पत्तियों और छाल से तैयार किया जाता है.

इसे बनाने के लिए पहले चावल को कुछ घंटों के लिए भिगो कर रखा जाता है और फिर ड्रमस्टिक, गुलाब महोगनी, कैट टेल ट्री की पत्तियां और छाल, कटहल, गन्ना, मेदा, अनानास, कॉक्सपुर, मीठा संतरा को पीसकर तैयार किया जाता है.

स्थानीय रूप से उगाए गए चिपचिपे चावल, लहसुन और लाल मिर्च को भी इस मिश्रण में मिलाया जाता है और नरम आटा गूंथ लिया जाता है. फिर इस मिश्रण के छोटे चपटे केक बनाए जाते हैं जिन्हें कुछ दिनों के लिए धूप में सुखाया जाता है.

इसके बाद एक बार फिर चिपचिपे चावल को पकाकर बांस की चटाई पर फैलाकर ठंडा होने दिया जाता है. वहीं चपटे आकार के केक का एक महीन पाउडर बनाकर ताज़े पके चावल के साथ मिलाया जाता है. इस मिश्रण को एक बड़े मिट्टी के बर्तन या मटके में रखा जाता है और उसके ऊपर केले के पत्ते रख दिए जाते हैं.

इसे तीन दिन तक ऐसे ही रखा रहने दिया जाता है और बाद में मटके का मुंह कपड़े से बंद कर दिया जाता है. तीन दिनों के बाद इसमें पानी डाला जाता है और मिश्रण को फिर से दो दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है.

यहां की जनजातियों के मुताबिक चावल के इस देशी पेय चुवाक का इस्तेमास नर्वस डिसऑर्डर, कब्ज, त्वचा रोग, सामान्य सर्दी, पीलिया, पेट के संक्रमण, सूजन, ऑस्टियोपोरोसिस और कई अन्य बिमारियों के इलाज के लिए किया जाता है.

नागालैंड (जुथो)

ज़ुथो (Zutho) चावल से बना एक पारंपरिक पेय है जो अंगामी जनजाति द्वारा तैयार किया जाता है जो मुख्य रूप से नागालैंड के कोहिमा और दीमापुर जिलों में रहते हैं.

यह स्वदेशी राइस बीयर नागालैंड की जातीय जनजातियों जैसे एओ, लोथा, अंगामी, खिम्नियुंगन और सुमी नागा की संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसकी तैयारी में मामूली बदलाव के साथ इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है.

ज़ुथो चिपचिपे चावल और पियाज़ू नामक एक स्टार्टर केक का इस्तेमाल करके तैयार किया जाता है जो कि अंकुरित चावल है. बिना छिलके वाले चावलों को पहले 3 से 4 दिनों के लिए पानी में भिगोया जाता है और फिर कुछ पानी निकाल दिया जाता है. इसके बाद दानों को अंकुरित होने के लिए छोड़ दिया जाता है. अंकुरित होने में मौसम की स्थिति के आधार पर लगभग एक सप्ताह या उससे अधिक समय लगता है.

अंकुरित चावल के दानों को ओखल और मूसल का उपयोग करके एक महीन पाउडर बनाया जाता है. इस चूर्ण को पियाजू के नाम से जाना जाता है. स्थानीय रूप से उपलब्ध चिपचिपा चावल (लाल या सफेद) या बाजरा (अगर चावल कम आपूर्ति में है) को अच्छी तरह से धोया और पकाया जाता है. इसके बाद इसे बांस की चटाई पर फैलाकर ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है.

पियाजू को ठंडे चावल में डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है. मिश्रण को फिर एक बड़े मिट्टी या लकड़ी के बर्तन में रखा जाता है और किण्वन के लिए रखा जाता है. किण्वन में आमतौर पर गर्मियों में करीब 4 दिन और सर्दियों में शायद एक सप्ताह का समय लगता है.

इस मिश्रण के किण्वित हो जाने के बाद घरेलू काढ़े में कुछ मात्रा में पानी मिलाया जाता है, जिसे बाद में बांस की जाली की मदद से छान लिया जाता है और बांस के कप में परोसा जाता है. यह सफेद दलिया जैसा पेय स्वाद में मीठा और खट्टा होता है जिसमें हल्के फल की गंध होती है.

अंगामी कभी-कभी खेतों में काम करते समय ज़ूथो ले जाते हैं क्योंकि यह बहुद ज्यादा पौष्टिक होता है. इसे वे अदरक, मिर्च या चटनी के साथ पीते हैं.

यह पेय आमतौर पर महिलाओं द्वारा तैयार किया जाता है. यह नागाओं के सभी महत्वपूर्ण त्योहारों में शामिल है. माना जाता है कि ज़ुथो में औषधीय गुण होते हैं और ब्लड प्रेशर, तेज़ बुखार को नियंत्रित करने और किसी के पाचन में सुधार करने और उनकी सहनशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है.

मेघालय (किआड)

किआड (Kiad) मेघालय के पश्चिम जयंतिया और पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में रहने वाले पनार लोगों द्वारा तैयार किया गया एक पारंपरिक राइस बीयर है. यह प्राचीन पेय (1800 के दशक से) यहां की जनजातियों के लिए सभी धार्मिक समारोहों और महत्वपूर्ण आयोजनों के लिए जरूरी है.

शिशुओं को उनके नामकरण समारोहों के दौरान इस देशी पेय की कुछ बूंदें दी जाती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि शिशु बड़ा होकर स्वस्थ और मजबूत होता है.

पूर्वोत्तर भारत के सभी पेय की तरह यह पारंपरिक पेय भी स्टार्टर केक से तैयार किया जाता है जिसे थियाट और औषधीय पौधों के रूप में जाना जाता है. खाव-यांग और केले की पत्तियों को स्थानीय रूप से स्ला-पोशार के रूप में जाना जाता है और इन्हें सुखाकर बारीक पाउडर बनाया जाता है.

फिर इसे स्थानीय चिपचिपे लाल चावल की किस्म में मिलाया जाता है जिसे खो-सो के नाम से जाना जाता है और एक महीन पेस्ट में मिलाया जाता है. फिर इस मिश्रण से छोटे गोल केक तैयार किए जाते हैं जिन्हें धूप में सुखाकर काढ़ा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये गोल केक प्राकृतिक खमीर के रूप में कार्य करते हैं और किण्वन प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाते हैं.

चावल की देशी किस्म खो-सो को धोकर, साफ करके पकाया जाता है. इसके बाद इसे केले के पत्तों पर फैलाकर ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है. फिर इसे बारीक पीसकर हाथ से ताजे पके हुए चावलों में मिलाया जाता है.

फिर मिश्रण को एक शंकु के आकार की टोकरी में डाल दिया जाता है और कसकर सील कर दिया जाता है और 2 से 3 दिनों के लिए किण्वन के लिए छोड़ दिया जाता है. किण्वित मिश्रण पीले सफेद रंग का होता है. इसके बाद इसे एक विशेष उपकरण में उबाला जाता है और आखिर में जो पेय बनता है उसे किआड के रूप में जाना जाता है. इसके तीखेपन को बनाए रखने के लिए इसे लंबे बांस के टंबलरों में नीचे चारकोल के टुकड़े के साथ परोसा जाता है.

आदिवासी लोग का इसका इस्तेमाल इलाज के लिए भी करते हैं. इसे एक स्वास्थ्य टॉनिक माना जाता है और दैनिक आधार पर इसकी थोड़ी मात्रा लेने की सलाह दी जाती है. हालांकि, इस पेय में लगभग 70 प्रतिशत अल्कोहल होता है इसलिए इसके अधिक सेवन से नशा हो सकता है और शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है.

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