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जंगली हाथियों के हमले से आदिवासी किसानों की बदहाली

जंगली हाथियों के हमले से आदिवासी किसानों की फसलें, घर और संपत्ति बर्बाद हो गई हैं, मुआवज़ा देने की बात कहने के बावजूद कोई सहायता क्यों नहीं मिली. शिकायत करने से भी रोकने की हो रही थी कोशिश... कैसे आया मामला सामने..

आंध्र प्रदेश के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित पार्वतीपुरम मन्यम ज़िले के कई गांवों में जंगली हाथियों का कहर देखने को मिला है.

इन हमलों में आदिवासी किसानों की फसलें, घर और संपत्ति बर्बाद हो रही है लेकिन अब तक सरकार की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नहीं दी गई है.

यह मामला एक जन शिकायत निवारण प्रणाली (Public Grievance Redressal System) के ज़रिए चर्चा में आया.

ये शिकायत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के ज़िला सचिव कोल्ली गंगू नायडू और पार्टी के सदस्य कोल्ली संबमूर्ति ने औपचारिक रूप से ज़िले के कलेक्टर ए. श्याम प्रसाद को सौंपी.

इसमें उन्होंने प्रभावित किसानों के लिए तुरंत मुआवज़े की मांग की.

कुरुपाम मंडल सबसे अधिक प्रभावित

CPM नेताओं ने जानकारी दी कि कुरुपाम मंडल के जरड़ा और तिथिरी पंचायतों के अंतर्गत आने वाले गांव बोड्डमगुड़ा, गुमिडीमानुगुड़ा, गुंडम, कोठागुड़ा और निमलिमनुगुड़ा सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.

यहां जंगली हाथियों के झुंडों ने रात के समय खेतों में घुसकर फसलों को रौंद दिया और कई ग्रामीणों के घरों को भी नुकसान पहुंचाया.

किसानों की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार धान, हल्दी, मक्का, कपास और केले जैसी खड़ी फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई हैं.

कुछ किसानों ने बताया है कि उन्होंने पूरे साल की मेहनत इन फसलों में लगाई थी और अब उनके पास खाने तक को कुछ नहीं बचा.

कलेक्टर ने अधिकारियों को दिए निर्देश

शिकायत मिलने के बाद ज़िला कलेक्टर श्याम प्रसाद ने इस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए वन विभाग से तुरंत स्पष्टीकरण मांगा और राजस्व, वन और कृषि विभागों को संयुक्त रूप से स्थल निरीक्षण कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया.

इन विभागों के कुछ अधिकारी मौके पर गए, नुकसान का आकलन भी किया और किसानों से आवेदन एकत्र किए गए. लेकिन अब तक किसी भी पीड़ित को मुआवजा नहीं मिला है.

शिकायत करने से रोकने का आरोप

कोल्ली संबमूर्ति ने यह गंभीर आरोप लगाया कि जब जरड़ा पंचायत की उपाध्यक्ष हरिका रमेश और कुछ ग्रामीण कलेक्टर कार्यालय जा रहे थे, तब वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें बीच में ही रोक लिया और जन शिकायत निवारण प्रणाली के माध्यम से शिकायत न करने की सलाह दी.

उन्होंने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि अधिकारियों ने ही मुआवज़े की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है, तो गरीब आदिवासी किसानों को न्याय कैसे मिलेगा?

मुआवज़े में देरी पर नाराज़गी

संबमूर्ति ने बताया कि वन और राजस्व विभाग ने एक सप्ताह में मुआवजा देने का वादा किया था.

लेकिन अब कई हफ्ते बीत गए हैं और एक भी किसान को एक रुपया तक नहीं मिला.

उन्होंने मांग की कि सभी संबंधित विभाग पारदर्शिता के साथ तुरंत राहत राशि उपलब्ध कराएं ताकि आदिवासी परिवार फिर से अपने जीवन को पटरी पर ला सकें.

इस पूरे मामले से यह स्पष्ट होता है कि आदिवासी क्षेत्रों में आपदा के समय त्वरित सहायता और सरकारी तंत्र की सक्रियता का अभाव हमेशा से रहा है.

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