महाराष्ट्र सरकार ने एक नई नीति शुरू की है. जिसके तहत अब आदिवासी किसान अपनी ज़मीन को खेती या खनन के लिए निजी लोगों या कंपनियों को लीज़ पर दे सकते हैं.
पहले ऐसा नहीं होता था क्योंकि आदिवासी क्षेत्रों में ज़मीन बेचने या पट्टे पर देने की सख़्त पाबंदियाँ थीं.
लेकिन अब सरकार ने किसानों को अपनी ज़मीन से कमाई करने का नया मौका दिया है.
इस नीति की जानकारी महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने दी. उन्होंने बताया कि किसान अगर चाहें तो अपनी ज़मीन खेती, खनन या किसी दूसरे काम के लिए लीज़ पर दे सकते हैं.
इसका मतलब यह है कि किसान ज़मीन का मालिक बना रहेगा लेकिन कुछ सालों के लिए किसी और को इस्तेमाल करने देगा और इसके बदले उसे पैसा मिलेगा.
सरकार ने तय किया है कि जो ज़मीन दी जाएगी उसका किराया हर साल कम से कम 50,000 रुपये प्रति एकड़ होगा.
अगर ज़मीन हेक्टेयर में है तो 1,25,000 रुपये प्रति हेक्टेयर हर साल मिलेगा.
यह दर तय करने से किसानों को फायदा होगा और कोई उन्हें कम पैसे में ज़मीन इस्तेमाल नहीं कर पाएगा.
अगर किसी किसान की ज़मीन में खनिज यानी मिनरल्स निकलते हैं, तो कंपनी को किसान को उसका भी पैसा देना होगा.
यानी जितना खनिज निकलेगा, उसके हिसाब से किसान को पैसा मिलेगा. इससे किसानों को और ज़्यादा कमाई हो सकती है.
इस नीति में यह भी बताया गया है कि अब ज़मीन लीज़ पर देने के लिए किसानों को राज्य सरकार तक फाइल भेजने की ज़रूरत नहीं होगी.
अब यह काम जिले के कलेक्टर के स्तर पर ही हो जाएगा. इससे समय बचेगा और प्रक्रिया आसान होगी.
किसान और कंपनी आपस में समझौता करेंगे लेकिन यह सब कलेक्टर की निगरानी में होगा. इससे गड़बड़ी होने की संभावना कम होगी और पारदर्शिता बनी रहेगी.
सरकार का कहना है कि यह नीति आदिवासी किसानों के जीवन में सुधार लाएगी.
कई बार ऐसा होता है कि आदिवासी किसानों के पास ज़मीन होती है लेकिन उनके पास पैसा या साधन नहीं होते जिससे वे खेती कर सकें.
अब वे चाहें तो अपनी ज़मीन लीज़ पर देकर पैसे कमा सकते हैं और अपना जीवन बेहतर बना सकते हैं.
हालाँकि इस नीति पर कुछ लोगों को चिंता भी हो सकती है. जैसे कि निजी कंपनियाँ किसानों को धोखा न दें, या पर्यावरण को नुकसान न हो.
लेकिन सरकार ने कहा है कि जिला प्रशासन की निगरानी में सब कुछ होगा. हर समझौता कलेक्टर की मंजूरी के बाद ही होगा. इससे किसानों के हक की रक्षा होगी.
इस तरह यह नई नीति आदिवासी इलाकों में बदलाव ला सकती है. किसान अपनी ज़मीन को बेचें बिना ही उससे कमाई कर सकते हैं.
अगर इसे सही ढंग से लागू किया गया तो यह आदिवासी समाज के लिए एक बड़ा फायदा हो सकता है.