राजस्थान राज्य सरकार में कृषि और ग्रामीण विकास विभाग संभाल रहे आदिवासी नेता किरोड़ी लाल मीना ने गुरुवार को राज्य सरकार को अपना इस्तीफ़ा दे दिया है. उनके इस फैसले के पीछे की वजह दौसा में बीजेपी की हार बताई गई.
लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर नहीं किया है. साथ ही शुक्रवार यानि आज पार्टी हाईकमान ने उन्हें दिल्ली बुलाया है.
दरअसल, किरोड़ी लाल मीना भाजपा के काफ़ी अनुभवी नेता हैं. वे पांच बार विधायक और दौसा क्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं. दौसा में आदिवासी मीनाओं की अच्छी खासी आबादी है. साथ ही यह मीना का जन्मस्थान भी है. यह माना जाता है कि इन वजहों से यहां उनका काफ़ी प्रभाव है.
पार्टी का कहना है कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में पार्टी के न जीत पाने के कारण वे इसे अपनी असफलता मान रहे हैं और इसलिए इस्तीफा देना चाहते हैं.
किरोड़ीलाल ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में दौसा और आसपास की अन्य सीटों पर पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए उन्हें जिम्मेदारी सौंपी थी. लेकिन उनकी अपेक्षा के विपरीत वे विफल रहे और इसलिए उन्होंने ये फैसला लिया है.
वे अपने निर्णय में अटल दिख रहे हैं. पार्टी हाईकमान द्वारा उन्हें दिल्ली बुलाए जाने के बाद उन्होंने एक्स पर रामचरितमानस की एक पंक्ति लिखी रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई.
उन्होंने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि पार्टी हाईकमान ने उन्हें दिल्ली आने को कहा है. उन्होंने कहा कि वे वहां जाकर उन्हें यह समझाने की कोशिश करेंगे कि लोगों से किए गए अपने वादे को पूरा करने के लिए उनका पद छोड़ना ज़रूरी है…. उन्होंने कहा, “अपने वादे की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इस्तीफा देना मेरा नैतिक कर्तव्य है.”
दरअसल, कांग्रेसी नेता लगातार उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. क्योंकि चुनाव के समय किरोड़ीलाल मीणा ने कहा था कि अगर पूर्वी राजस्थान की 7 सीटों में से बीजेपी (BJP) एक भी हारती है तो वह इस्तीफा दे देंगे. दौसा सीट पर भी बीजेपी हार गई थी. इन सात सीटों में से बीजेपी 4 सीटें हार गई जिनमें दौसा, करौली-धौलपुर, टोंक-सवाई माधोपुर और भरतपुर सीट शामिल है.
मुख्यमंत्री को चुनाव के तुरंत बाद सौंप चुके थे इस्तीफ़ा
राजस्थान के मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भाजपा नेता किरोड़ी लाल मीणा ने कहा, “मेरी ना तो मुख्यमंत्री से नाराजगी है, न ही संगठन से. जिस क्षेत्र में मैंने 40 वर्ष काम किया, वहां के लोग इस बहकावे में आ गए कि पीएम मोदी आरक्षण खत्म करेंगे. पीएम मोदी ने 2019 में आरक्षण बढ़ाया है. इसके बावजूद जिनकी मैं सेवा करता था, उनके हर दुख-दर्द में संभालता रहा. हर जाति-हर वर्ग के लोगों की मदद करता रहा, वही लोग बहकावे में आकर मेरे विरोधी हो गए और मैं अपने क्षेत्र में पार्टी को नहीं जीता सका. यह मेरी विफलता है.”
हालांकि आदिवासी नेता ने दावा किया कि उन्हें किसी पद के लिए कोई शिकायत नहीं है. लेकिन यह बात तो सभी को पता है कि जब पिछले साल के अंत में राज्य में भाजपा की जीत के बाद पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री चुना गया था और उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद भी नहीं दिया गया, इस बात से किरोड़ी लाल मीना नाराज़ थे.
उनके समर्थकों को भी लगता है कि सरकार में उनका पद उनके प्रभाव के हिसाब से नहीं है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने दावा किया कि दिल्ली में होने वाली पार्टी बैठक में उन्हें इस्तीफा न देने के लिए मनाया जाएगा क्योंकि यह पार्टी के लिए एक बड़ा नुकसान साबित होगा.
हालांकि पार्टी ने अभी हार नहीं मानी है लेकिन उन्होंने बातचीत के दौरान बताया है कि वे सरकारी साधन जैसे- बंगला, गाड़ी आदि छोड़ चुके हैं और करीब डेढ़ महीने से अपने निजी वाहन का उपयोग कर रहे हैं. अपने निजी निवास पर रह रहे हैं. उन्होंने कहा, “जब मैंने नैतिक दृष्टि से इस्तीफा दे दिया तो यह मेरी जिम्मेदारी बनती है कि अब मैं सत्ता के सुख छोड़कर उनका उपयोग न करूं.”
उनकी बात से तो लगता है कि इस बार सरकार को ही समझना पड़ेगा. लेकिन जब तक ये बैठक हो नहीं जाती तब तक पार्टी के अंदर असल में क्या चल रहा है, ये अनुमान लगाना कठिन है.