HomeAdivasi Dailyआदिवासी पिता को ठेले पर ढोना पड़ा बेटी का शव

आदिवासी पिता को ठेले पर ढोना पड़ा बेटी का शव

सवाल ये नहीं है कि आदिवासी पिता को कितनी दूर तक बेटी के शव को इस तरह ले जाना पड़ा, सवाल है कि सिस्टम इतना संवेदनाहीन क्यों?

ओड़िशा के बालासोर ज़िले के बिंधनी साहि गांव में एक दुखद घटना सामने आई है. इस घटना ने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

गांव के रहने वाले आदिवासी मज़दूर मधु बिंधनी को अपनी 19 वर्षीय बेटी के शव को मजबूरी में ठेले पर रखकर लगभग 6 किलोमीटर दूर स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाना पड़ा.

घरेलू विवाद के बाद लड़की ने की आत्महत्या

मृतका का नाम नंदिनी बिंधनी था. उसकी उम्र 19 साल बताई जा रही है.

नंदिनी का अपने घर में किसी बात को लेकर विवाद हुआ था. इसके बाद वह घर से निकल गई.

कुछ समय बाद वह पास के एक गांव में पेड़ से लटकी हुई मिली.

स्थानीय लोगों ने पुलिस को इसकी सूचना दी. इसके बाद बालीपाल थाना पुलिस मौके पर पहुंची लेकिन शव को अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई.

पुलिस ने नहीं की शव वाहन की व्यवस्था?

मृतका के पिता, मधु बिंधनी का कहना है कि उन्होंने पुलिस से शव वाहन की मांग की थी लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिली.

वे आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं थे कि 1,200 रुपये की एंबुलेंस का किराया चुका सके.

ऐसे में उन्होंने गांव से एक ठेला उधार लिया और उसी पर बेटी के शव को लादकर बालीपाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे.

इस पूरे मामले पर जांच अधिकारी पनिमनी सोरेन का कहना है कि शव वाहन उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में मधु बिंधनी ने खुद शव को ठेले पर ले जाने की बात कही थी.

हालांकि सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों और वीडियो ने प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है, जिससे लोगों में नाराज़गी है.

ज़िला प्रशासन का जवाब

बालासोर ज़िला कलेक्टर सूर्यवंशी मयूर विकास ने कहा कि जैसे ही उन्हें घटना की जानकारी मिली, बालीपाल के तहसीलदार और ब्लॉक ऑफिसर ने ग्राम प्रधान और पंचायत कार्यकारी अधिकारी (PEO) के साथ मिलकर शव के अंतिम संस्कार के लिए गाड़ी की व्यवस्था की.

साथ ही, परिजनों को हरिश्चंद्र योजना के तहत रेड क्रॉस फंड से ₹10,000 की आर्थिक सहायता दी गई है.

इस घटना ने आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवाओं की ज़मीनी हकीकत को सामने ला दिया है.

जहां सरकार योजनाओं की बात करती है, वहीं ज़मीनी स्तर पर एक मज़दूर पिता को अपनी बेटी का शव खुद ठेले पर ढोना पड़ा.

यह घटना केवल एक परिवार की नहीं बल्कि ज़्यादातर आदिवासी समुदायों द्वारा झेली जाने वाली गहरी समस्याओं की तस्वीर है.

(Image used is just for representation.)

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