HomeAdivasi Dailyअसम में आदिवासी संगठनों ने दिलीप सैइकिया के खिलाफ किया बहिष्कार

असम में आदिवासी संगठनों ने दिलीप सैइकिया के खिलाफ किया बहिष्कार

संगठन का कहना है कि दिलीप सैइकिया ने हाल ही में आदिवासी लोगों और उनके भूमि अधिकारों के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें कही हैं.

असम की राजनीति में आज एक बड़ी घटना हुई है.

आदिवासी संगठनों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्य अध्यक्ष दिलीप सैइकिया का विरोध किया है और उनका बहिष्कार (बायकॉट) करने की घोषणा की है.

यह फैसला ऑल असम ट्राइबल संघ (AATS) ने लिया है.

संगठन का कहना है कि दिलीप सैइकिया ने हाल ही में आदिवासी लोगों और उनके भूमि अधिकारों के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें कही हैं.

दिलीप सैइकिया ने कुछ दिन पहले कहा था कि असम के उन क्षेत्रों में जहां छठी अनुसूची लागू है, अब गैर-आदिवासी लोग भी ज़मीन खरीद सकेंगे.

उनका मतलब था कि आदिवासी इलाकों में जो कानूनी सुरक्षा दी गई है, उसे बदला जाना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि जो कानून आदिवासियों को ज़मीन की सुरक्षा देता है—जैसे असम भूमि और राजस्व अधिनियम की धारा 10—उसे भी हटाने की जरूरत है.

उनके इस बयान से आदिवासी समुदाय बहुत नाराज़ हो गया.

AATS ने कहा कि दिलीप सैइकिया जैसे पढ़े-लिखे और जिम्मेदार नेता को ऐसा बयान देना शोभा नहीं देता.

इससे यह साफ होता है कि वह आदिवासियों के अधिकारों और संविधान की रक्षा के महत्व को नहीं समझते.

संगठन ने इस बयान को “आदिवासी विरोधी” बताया और कहा कि यह आदिवासी लोगों के ज़मीन पर अधिकार और उनकी पहचान को खत्म करने की साजिश है.

AATS ने साफ कहा है कि जब तक दिलीप सैइकिया अपना बयान वापस नहीं लेते और माफ़ी नहीं मांगते, तब तक उनका बहिष्कार किया जाएगा.

संगठन ने पूरे असम के आदिवासी इलाकों में प्रदर्शन करने और जनजागरण अभियान चलाने का भी ऐलान किया है.

उनका कहना है कि दिलीप सैइकिया जैसे नेता को आदिवासी क्षेत्रों में घुसने नहीं दिया जाएगा.

असम के कई आदिवासी क्षेत्र जैसे कि बोडोलैंड, कार्बी आंगलोंग, और डिमा हसाओ—छठी अनुसूची के तहत आते हैं.

इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों को संविधान द्वारा विशेष सुरक्षा दी गई है ताकि वहां के आदिवासी लोग अपनी जमीन और संस्कृति को बचा सकें.

दिलीप सैइकिया का बयान इस सुरक्षा को खत्म करने की कोशिश माना गया है.

यह मामला अब केवल एक राजनीतिक विवाद नहीं रह गया है, बल्कि आदिवासी पहचान और अस्तित्व से जुड़ गया है.

AATS का कहना है कि वे अपने अधिकारों से कोई समझौता नहीं करेंगे और संविधान की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएंगे.

अभी तक भाजपा की ओर से इस मुद्दे पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है.

लेकिन आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर पार्टी ने इस बयान को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले चुनावों में इसका असर साफ दिखेगा.

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