दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में हुए कला उत्सव 2025 में झारखंड की दस महिला कलाकारों ने अपनी पारंपरिक सोहराई कला से सभी का मन मोह लिया.
ये कलाकार 14 से 24 जुलाई तक चले इस कार्यक्रम में शामिल हुईं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खुद इन कलाकारों से मुलाकात की और उनकी कला की खूब तारीफ की.
हजारीबाग जिले की दस महिला कलाकार—रुदन देवी, अनीता देवी, सीता कुमारी, मालो देवी, सजवा देवी, पार्वती देवी, आशा देवी, कदमी देवी, मोहिनी देवी और रीना देवी—ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया.
इन्होंने कपड़े पर मिट्टी के रंग और बांस से बने ब्रश से खूबसूरत चित्र बनाए. इनके चित्रों में पेड़, जानवर, पक्षी और आदिवासी जीवन की झलक दिखाई दी.
राष्ट्रपति मुर्मू ने कलाकारों से बातचीत करते हुए कहा कि उनकी बनाई तस्वीरों में “भारत की आत्मा की झलक” है.
उन्होंने कहा कि ये चित्र सिर्फ कला नहीं हैं, ये हमारी संस्कृति और प्रकृति से जुड़े भाव दिखाते हैं। उन्होंने सभी कलाकारों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया.
यह आयोजन राष्ट्रपति भवन की एक खास पहल है, जिसका नाम है ‘Artists in Residence’.
इसमें देश के अलग-अलग राज्यों से लोक और आदिवासी कलाकारों को बुलाया जाता है.
इस बार इसमें झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की पारंपरिक कलाएं शामिल थीं—जैसे सोहराई, पट्टचित्र और पटुआ कला.
सोहराई कला झारखंड की पारंपरिक चित्रकला है, जो आदिवासी महिलाएं खास मौकों पर बनाती हैं—जैसे फसल कटाई या त्योहार.
इसमें मिट्टी, कोयला और फूलों से रंग बनाकर दीवारों या कपड़ों पर चित्र बनाए जाते हैं.
इस कला को 2020 में GI (Geographical Indication) टैग भी मिला है, लेकिन अभी इसे वह पहचान नहीं मिली जो मिथिला या गोंड चित्रकला को मिली है.
इस आयोजन से झारखंड की पहचान और मजबूत हुई है.
अब और लोग इस कला के बारे में जान पाएंगे और आदिवासी कलाकारों को भी नई पहचान मिलेगी.
इससे झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को देशभर में फैलाने का मौका मिलेगा.
इन कलाकारों ने यह भी कहा कि इतनी दूर‑दराज की अपनी कला को दिल्ली जैसे प्रतिष्ठित स्थल पर प्रस्तुत करना, उनके लिए एक सपने जैसा अनुभव था.
यह अवसर उनके लिए व्यक्तिगत और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण था.
इन महिला कलाकारों को पहले कभी ऐसा राष्ट्रीय स्तर का मंच नहीं मिला था, यह उनके लिए पहला बड़ा अवसर था.
जब वे राष्ट्रपति भवन जैसे ऐतिहासिक और प्रतिष्ठित स्थान पर अपनी कला को देशभर के सामने प्रस्तुत कर सकीं.
इससे पहले वे सिर्फ अपने गाँव या आस-पास के मेलों में ही सोहराई चित्र बनाती थीं.
उनके लिए दिल्ली जाकर प्रदर्शन करना, और वह भी राष्ट्रपति के सामने, एक बड़ा सपना पूरा होने जैसा था.