HomeAdivasi Dailyझारखंड के आदिवासी युवाओं ने लॉन्च किया 'आदि निवास' ऐप

झारखंड के आदिवासी युवाओं ने लॉन्च किया ‘आदि निवास’ ऐप

यह ऐप सितंबर 2025 से सभी के लिए उपलब्ध होगा और आदिवासी समुदाय की परंपराओं, खानपान, रहन-सहन, संगीत और नृत्य जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी देगा.


झारखंड के आदिवासी युवाओं ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संरक्षित और प्रदर्शित करने के लिए ‘आदि निवास’ नाम का मोबाइल ऐप बनाया है.
यह ऐप सितंबर 2025 से सभी के लिए उपलब्ध होगा और आदिवासी समुदाय की परंपराओं, खानपान, रहन-सहन, संगीत और नृत्य जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी देगा.
इस पहल का मुख्य उद्देश्य आदिवासी संस्कृति को डिजिटल दुनिया में लोगों तक पहुँचाना और इसके महत्व को बढ़ावा देना है.
‘आदि निवास’ ऐप में उपयोगकर्ताओं को विभिन्न आदिवासी समुदायों की जीवनशैली और परंपराओं के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी.
इसके साथ ही इसमें रोजगार, शिक्षा और उद्यमिता से जुड़ी जानकारी भी शामिल की गई है.
इस ऐप के जरिए युवा आदिवासी अपनी पहचान को मजबूत कर सकेंगे और नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से परिचित करा पाएंगे.
ऐप में जीवन शैली, परंपरागत पकवान, हस्तशिल्प और सांस्कृतिक आयोजन की जानकारी भी उपलब्ध होगी.
इस ऐप को मनीष लकड़ा के नेतृत्व में विकसित किया गया है.
टीम में अभिषेक मिंज, रेश्मा तिर्की और अमरजीत खलखो समेत लगभग 20 पेशेवर आदिवासी सदस्य शामिल हैं.
उन्होंने मिलकर यह सुनिश्चित किया है कि ऐप में दी गई जानकारी सही, विश्वसनीय और पूरे आदिवासी समुदाय के लिए उपयोगी हो.
टीम ने इस ऐप को खासतौर पर आदिवासी युवाओं के लिए डिज़ाइन किया है ताकि वे अपने समुदाय की संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहें और उन्हें डिजिटल दुनिया में भी सुरक्षित रख सकें.
आदिवासी युवाओं की डिजिटल पहल यहीं खत्म नहीं होती.
उन्होंने पहले भी ‘ट्राइबकार्ट’ प्लेटफ़ॉर्म शुरू किया था, जहाँ आदिवासी समुदाय के लोग अपने पारंपरिक उत्पाद बेचते हैं.
इस प्लेटफ़ॉर्म के जरिए झारखंड के रुगड़ा आचार जैसे उत्पाद विदेश तक पहुंच रहे हैं.
इसके अलावा ‘ट्राइब ट्री’ नाम का सोशल मीडिया समूह आदिवासी फैशन डिज़ाइन को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें 2,400 से अधिक सदस्य जुड़े हुए हैं.
‘आदि निवास’ ऐप और अन्य डिजिटल पहलों के माध्यम से आदिवासी युवा अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने और उसे व्यापक स्तर पर पेश करने में सफल हो रहे हैं.
यह पहल केवल आदिवासी समुदाय की पहचान को मजबूत नहीं करती बल्कि उन्हें डिजिटल दुनिया में भी सशक्त बनाती है.
इन प्रयासों से यह साफ है कि झारखंड के आदिवासी युवा अपनी संस्कृति को नई पीढ़ी और पूरे देश तक पहुँचाने के लिए तकनीक का सही उपयोग कर रहे हैं.

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