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4 साल से विकास की राह देख रहे हैं पार्वतीपुरम मण्यम के आदिवासी

चार साल से आदिवासी आईटीडीए बैठक का इंतजार कर रहे हैं. बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण प्रशासन की उदासीनता सवालों के घेरे में

आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम मण्यम ज़िले के आदिवासी समुदाय लंबे समय से एकीकृत जनजातीय विकास अभिकरण (Integrated Tribal Development Agency) बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

जब से पार्वतीपुरम मण्यम ज़िले का निर्माण हुआ है तब से यहां एक भी शासकीय निकाय बैठक (Governing Body Meeting) नहीं हुई है.

पार्वतीपुरम मण्यम ज़िला 4 अप्रैल 2022 को पुराने विजयनगरम ज़िले से अलग होकर बना था.

यहां आईटीडीए (एकीकृत जनजातीय विकास अभिकरण) की अंतिम बैठक दिसंबर 2021 में हुई थी. उस समय यह ज़िला विजयनगरम का हिस्सा हुआ करता था. यानी आदिवासी विकास के लिए काम करने वाली एजेंसी 4 साल से ठप्प पड़ी है.

आईटीडीए (ITDA) क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

एकीकृत जनजातीय विकास अभिकरण एक सरकारी निकाय है. इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए योजनाएं बनाना और उन्हें लागू करना है.

यह निकाय आदिवासी इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, जल आपूर्ति और कृषि विकास से जुड़ी योजनाओं को लागू करता है. लेकिन पार्वतीपुरम मण्यम जिले के कई गांव अब भी इन बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.

ज़िले के आदिवासी आज भी सड़क न होने के कारण कई बार बीमार या गर्भवती महिलाओं को डोली में अस्पताल ले जाने को विवश हो जाते हैं.

जिले के कुरुपम ब्लॉक में हाल ही में जॉन्डिस से दो छात्रों की मौत हो गई थी. इससे स्पष्ट होता है कि यहां स्वास्थ्य ढांचा भी बेहद कमज़ोर है.

चार साल से आईटीडीए की बैठक न होने के कारण आदिवासियों की समस्याएं जस की तस बनी हुईं हैं.

स्थानीय नेताओं और संगठनों का आरोप

स्थानीय आदिवासी संगठनों का कहना है कि ज़िले के गठन के बाद से प्रशासन ने आदिवासी विकास से जुड़े मामलों में कोई गंभीरता नहीं दिखाई.

वामपंथी दल सीपीआई(एम) के नेता कोल्ली सांबामूर्ति ने कहा कि न तो आईटीडीए अधिकारी और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि अब तक बैठक बुलाने को तैयार हुए हैं.

आंध्र प्रदेश गिरीजन संघ के नेताके अनुसार इस क्षेत्र से तीन अलग-अलग जनजातीय कल्याण मंत्री चुने जा चुके हैं, फिर भी एक भी बैठक आयोजित नहीं की गई.

उनका आरोप है कि आईटीडीए के नाम पर मिलने वाले धन को अन्य विभागों या योजनाओं में खर्च किया जा रहा है. इस वजह से वास्तविक लाभ आदिवासियों तक नहीं पहुंच पा रहा है.

उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कई नेता विपक्ष में रहते हुए आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद वही मुद्दे उनके लिए कम प्राथमिक हो जाते हैं.

उनके अनुसार, चुनावी घोषणाओं में तो आदिवासी विकास की बातें की जाती हैं पर ज़मीनी स्तर पर हालातों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता.

आईटीडीए (ITDA)  बैठक की अनदेखी – एक गंभीर मुद्दा

ये कोई पहला मामला नहीं है जब आदिवासियों के हितों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. इससे पहले भी इस तरह के मामले आए हैं जब आईटीडीए की बैठक एक लंबे अंतराल तक टाली जाती रहीं.

आंध्रप्रदेश के अलूरी सीताराम राजू ज़िले में भी अप्रैल 2025 में आईटीडीए की बैठक 33 महीनों यानी करीब 3 साल के बाद हुई थी.

आईटीडीए की बैठक सिर्फ औपचारिक बैठक नहीं होती. इन बैठकों में ही तय होता है कि फंड कहां खर्च होंगे, कौन सी योजनाएं प्राथमिकता पर होंगी और किस गांव में क्या सुविधाएं पहुंचाई जाएंगी.

लेकिन अगर ये बैठकें सालों के अंतराल पर होंगी तो इनके होने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा.  इसलिए इन बैठकों का नियमित रूप से होना बहुत ज़रूरी है.

नियमित रूप से इन बैठकों का आयोजन न होने के कारण आदिवासी समुदाय विकास में पिछड़ रहे हैं.

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