HomeAdivasi Dailyगंदा पानी पीने से गई दो जानें, सरकार की बड़ी लापरवाही

गंदा पानी पीने से गई दो जानें, सरकार की बड़ी लापरवाही

गांव वालों को अब कहा जा रहा है कि पानी उबालकर पियो, साफ सफाई रखो, लेकिन ये सलाह पहले क्यों नहीं दी गई? क्या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं थी कि बारिश के मौसम में पहले ही जांच कर ले, दवा भेजे, डॉक्टर तैनात करे?

एक छोटा सा आदिवासी गांव “कोरवा टोला”, जहां लोग पहले से ही गरीबी, बीमारी और अनदेखी की ज़िंदगी जी रहे थे, अब वहां दो और जानें चली गईं.

एक 33 साल की महिला दिवंपी देवी और उसका 4 साल का भांजा बादल, दोनों की मौत एक ही बीमारी से हो गई — दस्त और उल्टी.

यह कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, बस वक्त पर इलाज नहीं मिला, साफ पानी नहीं मिला और सरकारी सिस्टम ने इन्हें पहले ही छोड़ दिया था.

गांव के लोगों ने बताया कि कुछ दिन पहले गांव में कई लोग बीमार पड़ने लगे थे.

उल्टी-दस्त की शिकायतें थीं. लेकिन कोई डॉक्टर नहीं आया, कोई दवाई नहीं पहुंची. जब तक सरकार की नींद खुली, दिवंपी और उसका मासूम भांजा मर चुके थे.

एक और महिला प्रमिला देवी भी इसी बीमारी से अस्पताल में भर्ती है.

अगर वक्त रहते इलाज मिलता, तो शायद तीनों जिंदा होते.

सरकारी अफसर अब जांच की बात कर रहे हैं. डॉक्टर एस.के. मिश्रा गांव आए, उन्होंने मिट्टी और पानी के सैंपल लिए और कहा कि शायद यह बीमारी गंदे पानी की वजह से हुई है.

पर सवाल ये है, क्या गांव में सरकार को नहीं पता कि लोग गंदा पानी पी रहे हैं? क्या इतने सालों से वहां कोई साफ पानी की व्यवस्था नहीं हुई?

कोरवा टोला गांव आदिवासी समुदाय का हिस्सा है.

ये लोग पहले से ही समाज की सबसे पिछड़ी पंक्ति में हैं. ना अस्पताल पास में है, ना डॉक्टर, ना ही पीने का साफ पानी.

सरकार की तरफ से कोई तैयारी नहीं थी, कोई जागरूकता अभियान नहीं चला, ना कोई मेडिकल कैंप पहले से लगाया गया.

अब जब मौत हो गई, तब जिलाधिकारी और सिविल सर्जन बोल रहे हैं कि सब कंट्रोल में है. लेकिन अगर सब कंट्रोल में था, तो दो लोग क्यों मरे?

गांव वालों को अब कहा जा रहा है कि पानी उबालकर पियो, साफ सफाई रखो, लेकिन ये सलाह पहले क्यों नहीं दी गई? क्या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं थी कि बारिश के मौसम में पहले ही जांच कर ले, दवा भेजे, डॉक्टर तैनात करे?

ये मौतें कोई हादसा नहीं थीं, ये सरकारी सिस्टम की सीधी लापरवाही का नतीजा हैं.

अगर समय पर ध्यान दिया गया होता, तो ये जानें बच सकती थीं.

अब मेडिकल टीम गांव में कैंप कर रही है, जांच हो रही है, पीए सिस्टम से माइक पर लोगों को समझाया जा रहा है.

लेकिन अब ये सब किस काम का? जिनके अपने जा चुके हैं, वो सरकार की ये “एक्शन के बाद की जिम्मेदारी” कैसे स्वीकार करें?

गढ़वा की ये खबर सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, ये पूरे झारखंड और देश के उन हजारों गांवों की हकीकत है, जहां लोग मरते रहते हैं और सरकार फाइलों में जांच लिखती रहती है.

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