देश की राजधानी में बीते दो दिनों तक चली एक अहम बैठक में आदिवासी कल्याण से जुड़े अधिकारी इकट्ठा हुए थे.
यहां एक सवाल बार-बार उठा कि सरकार की इतनी योजनाओं के बाद भी आदिवासी इलाकों में अब भी हालात क्यों नहीं बदल रहे हैं.
इस सवाल का जवाब भी खुद अधिकारियों ने दिया. उन्होंने बताया कि योजनाएं तो हैं लेकिन उन्हें लागू करने वालों में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की कमी है.
ज़मीनी बदलाव के लिए ‘आदि कर्मयोगी’
बैठक में यह तय किया गया कि अब आदिवासी विकास को सिर्फ सरकारी काम न मानकर, एक समाज सेवा के रूप में देखने की ज़रूरत है. इसी सोच के साथ एक नई पहल ‘आदि कर्मयोगी’ कार्यक्रम की शुरूआत की गई है.
इस योजना का उद्देश्य है ऐसे अफसरों और कर्मचारियों की टीम तैयार करना जो आदिवासी क्षेत्रों में सिर्फ ड्यूटी नहीं निभाएं बल्कि दिल से काम करें.
सरकार अब राज्य से लेकर ब्लॉक स्तर तक प्रशिक्षकों की एक पूरी टीम तैयार करना चाहती है. इस टीम में 180 राज्य स्तरीय मास्टर ट्रेनर, 3,000 से ज़्यादा जिला स्तरीय प्रशिक्षक और 15,000 से अधिक ब्लॉक स्तरीय अधिकारी होंगे.
ये प्रशिक्षक मिलकर करीब 20 लाख ज़मीनी स्तर के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगे, जिससे योजनाओं का असली फायदा आम लोगों तक पहुंचे.
मुद्दा सिर्फ फाइलें खिसकाने का नहीं, नज़रिया बदलने का है
सम्मेलन में कई अधिकारियों ने साझा किया कि स्कूल, अस्पताल, राशन, पानी और सड़क सभी चीज़ों के लिए योजनाएं तो हर इलाके के लिए बनी हैं. लेकिन उनका असर तभी दिखेगा जब फाइलों से बाहर निकलकर ज़मीनी ज़रूरतों को समझा जाएगा.
एक अफसर ने कहा, “आदिवासी इलाकों में एक स्कूल 10 किलोमीटर दूर है, लेकिन शिक्षक नहीं आते. अस्पताल है लेकिन दवा नहीं मिलती. योजना है, पर नीयत नहीं.”
अब कोशिश यही है कि ऐसे अधिकारी तैयार हों जो ‘आदेश’ के इंतज़ार में न बैठें बल्कि ज़िम्मेदारी को समझें और काम में लग जाएं.
विपक्ष की पहल
जहां केंद्र सरकार अफसरों की सोच बदलने की बात कर रही है, वहीं कांग्रेस पार्टी आदिवासी नेतृत्व को मज़बूत करने की दिशा में काम शुरू कर रही है.
हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ज़िला स्तर पर आदिवासी नेताओं को आगे लाने, उनके संघर्षों को राजनीतिक मंच देने और भूमि अधिकार जैसे मुद्दों पर कानूनी मदद देने के लिए ‘जनजातीय विधिक परिषद’ जैसी पहल की बात की है.
उनका कहना है कि डिजिटल भूमि रिकॉर्ड व्यवस्था के चलते कई आदिवासी परिवार अपनी पुश्तैनी ज़मीन से हाथ धो बैठे हैं.
इस पर रोक लगाने और वन अधिकार समितियों के गठन में हुई देरी को लेकर उन्होंने चिंता जताई है.
राहुल गांधी ने कहा कि हर ज़िले में ऐसे 10-15 आदिवासी नेता तैयार किए जाएंगे जो सीधे अपने समाज से जुड़े हों और ज़मीनी समाधान देने में सक्षम हों.
उन्होंने गुजरात में 41 आदिवासी जिला अध्यक्ष नियुक्त करने को इस दिशा में प्रयोग बताया है.
एक ओर केंद्र सरकार अधिकारियों में सेवा भावना लाकर योजनाओं को ज़मीन पर उतारने की कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर विपक्ष यानी कांग्रेस पार्टी नेतृत्व को जड़ों से मज़बूत करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है.
अगर दोनों पक्षों की यह सोच ज़मीनी स्तर पर सही ढंग से लागू हुई तो यह आदिवासी समाज के लिए न केवल योजनाओं की दक्षता बढ़ाएगी बल्कि प्रतिनिधित्व और अधिकारों की लड़ाई को भी मज़बूती देगी.