तमिलनाडु के इरोड ज़िले के दो आदिवासी गाँव – वेलमपट्टी और मट्टीमरथल्ली – इन दिनों एक बड़ी परेशानी से जूझ रहे हैं.
यहाँ रहने वाले लोगों की सबसे बड़ी मांग है कि मनीयाची नदी पर जल्द से जल्द एक पुल बनाया जाए.
वजह ये है कि हर बार जब ज़ोरदार बारिश होती है, तो ये दोनों गाँव पूरी तरह से बाहर की दुनिया से कट जाते हैं.
न कोई इस गाँव में आ सकता है और न ही गाँव वाले ज़रूरी सामान या इलाज के लिए बाहर जा पाते हैं.
इन गाँवों के चारों ओर दो नदियाँ हैं – पलारू और मनीयाची.
जब भी तेज़ बारिश होती है, दोनों नदियों में पानी का स्तर बहुत बढ़ जाता है और रास्ते बंद हो जाते हैं.
गाँव में रहने वाले लगभग 60 से ज़्यादा परिवारों को रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए भी बहुत लंबा और मुश्किल रास्ता तय करना पड़ता है.
गाँव के एक निवासी समीनाथन बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में हुई भारी बारिश की वजह से पलारू नदी पूरी तरह से उफान पर थी.
इसके कारण लोग दो दिनों तक अपने घरों से बाहर तक नहीं निकल सके ना राशन मिल पाया, ना दवाइयाँ, और ना ही कोई ज़रूरी सेवा.
यहाँ के लोग इलाज के लिए भी परेशान हैं.
गाँव में कोई अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. अगर किसी को तेज़ बुखार हो जाए या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो, तो उन्हें कम से कम 40 किलोमीटर दूर बारगूर जाना पड़ता है.
लेकिन जब रास्ते ही बंद हो जाएँ, तो यह काम लगभग नामुमकिन हो जाता है.
बच्चों की पढ़ाई पर भी इसका असर साफ़ दिखता है.
बच्चे गाँव से बाहर स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाते, जिससे उनकी पढ़ाई रुक जाती है.
लोगों का कहना है कि उनके बच्चे आगे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन बारिश के मौसम में स्कूल जाना ही मुश्किल हो जाता है.
ऐसे में आगे की पढ़ाई करना सपना बनकर रह जाता है.
गाँववालों ने सरकार से मांग की है कि मनीयाची नदी पर एक पक्का पुल बनाया जाए.
साथ ही उन्होंने सुझाव दिया है कि जो 7 किलोमीटर लंबा जंगल का रास्ता मुख्य सड़क से गाँव तक जाता है, उसे भी पक्का और सुरक्षित बनाया जाए.
यह रास्ता गाँव को बिना कर्नाटक की सीमा में घुसे सीधे जोड़ सकता है.
इस रास्ते को सुधारने और नदी पर पुल बनाने से गाँव को हर मौसम में बाहर की दुनिया से जोड़ा जा सकेगा.
बारिश हो या सूखा, बच्चे स्कूल जा सकेंगे, मरीज इलाज के लिए समय पर अस्पताल पहुँच सकेंगे और सामान की सप्लाई भी बिना रुके हो सकेगी.
गाँव के लोगों ने कई बार इस बारे में सरकार से शिकायत की है और अपील भी की है. उनका कहना है कि कई जिलों में पुल बनाए जा रहे हैं, लेकिन उनका गाँव अभी तक नजरअंदाज किया गया है.
उन्हें लगता है कि आदिवासी होने की वजह से उनकी बात नहीं सुनी जाती.
इन गाँवों की हालत दिखाती है कि आज भी देश के कई कोने ऐसे हैं जहाँ बुनियादी सुविधाएँ नहीं पहुँच पाई हैं.
एक पुल ना होने की वजह से लोगों की ज़िंदगी खतरे में पड़ जाती है.
गर्भवती महिलाओं, बच्चों, बुज़ुर्गों और बीमारों के लिए यह स्थिति और भी खतरनाक बन जाती है.
गाँववालों की यही मांग है कि उन्हें भी सुरक्षित जीवन जीने का हक मिले, जो देश के हर नागरिक को मिलना चाहिए.
पुल बनना केवल एक निर्माण कार्य नहीं होगा, यह इन गाँवों के लिए एक जीवन रेखा साबित होगा.