आंध्र प्रदेश में कुल 34 आदिवासी समुदाय रहते हैं. इन आदिवासी समुदायों में से 4 समुदाय ऐसे भी हैं जिन्हें एक ज़माने में आदिम जनजाति (primitive tribes) कहा जाता था.
आजकल इन समुदायों को विशेष रुप से पिछड़े आदिवासी समूह (PVTG) कहा जाता है. ये समुदाय वे हैं जो सामाजिक और आर्थिक तौर पर आदिवासी जनसंख्या में भी बहुत ज़्यादा पिछड़े हुए हैं.
ये समुदाय चेंचू (Chenchu), गडबा (Gadabas), कोंडा रेड्डी (Konda Reddy) और बोंडा (Bonda) हैं.
इन समुदायों के अति पिछड़े होने के कई कारणों में से एक इनका दुर्गम इलाकों में निवास करना माना जाता है.
इनकी बस्तियां या गांव अक्सर पहाड़ी जंगलों में होती है. ज़ाहिर है इन बस्तियों तक पक्की सड़क बनाना ना तो आसान है और ना ही प्रशासन की बहुत ज़्यादा रुचि इसमें होती है.
ऐसा नहीं है कि पीवीटीजी समुदायों के गांवों या निवास स्थलों तक ही पक्का रास्ता नहीं पहुंचता है बल्कि जो बड़े आदिवासी समुदाय हैं उनके ज़्यादातर गांवों में भी पक्के रास्तों का अभाव है.
दशकों से आंध्र प्रदेश के कई आदिवासी समुदाय दूरदराज के इलाकों और मौसमी अलगाव में जी रहे हैं, जिसने उन्हें बुनियादी सेवाओं से वंचित कर दिया है.
अब दावा किया जा रहा है कि राज्य के अलग थलग पड़े आदिवासी इलाकों को भी पक्के रास्ते से जोड़ा जाएगा. इसके साथ ही इन इलाकों बाकी ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किया जाएगा.
सरकार का कहना है कि यह लक्ष्य हासिल करने के लिए ‘आदवी थल्ली बाटा’ (Adavi Thalli Bata) योजना की शुरुआत की जा रही है.
यह पहल प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (PM-JANMAN) योजना के तहत शुरू की जा रही है.
इस योजना का उद्देश्य दूरदराज की बस्तियों को बारहमासी सड़कों और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ना है.
केंद्र ने पीएम-जनमन के तहत कार्यों के लिए पहले ही 555.6 करोड़ जारी कर दिए हैं. ऐसे में यह योजना एक अच्छी शुरुआत प्रतीत होती है.
योजना को लेकर उपमुख्यमंत्री ने की समीक्षा बैठक
10 अगस्त को पंचायत राज और ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों के साथ एक समीक्षा बैठक में उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने उनसे स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ने का आग्रह किया ताकि वे परियोजना के लक्ष्यों को समझ सकें.
उन्होंने कहा, “लोगों को पता होना चाहिए कि हम डोली-मुक्त बस्तियां बनाना चाहते हैं. उनका सहयोग और प्रोत्साहन हमें तेज़ी से काम पूरा करने में मदद करेगा.”
उन्होंने कहा कि हम उन इलाकों में सड़कें बना रहे हैं जहां पहले कभी कनेक्टिविटी नहीं थी. अगर चुनौतियां आती हैं, तो उनका रणनीतिक समाधान किया जाना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि कुछ गांवों के लिए यह इतिहास में पहली बार होगा जब उनके पास मोटर-योग्य सड़क होगी. यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है. हमारा लक्ष्य आज़ादी के बाद पहली बार आदिवासी इलाकों को ‘डोली-मुक्त’ बनाना है.
ASR जिले के 600 से ज्यादा आदिवासी सड़क संपर्क से वंचित
2011 की जनगणना के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में जनजातीय जनसंख्या 27 लाख 39 हज़ार 919 थी, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5.53 प्रतिशत थी. इस जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा, करीब 51.14 फीसदी, पूर्वी घाट के अनुसूचित क्षेत्रों में रहता है, जो जनजातीय उप-योजना क्षेत्रों का हिस्सा हैं.
इन क्षेत्रों में पडेरू (विशाखापत्तनम), पार्वतीपुरम (विजयनगरम), सीथमपेटा (श्रीकाकुलम) और रामपचोदावरम (पूर्वी गोदावरी) की एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसियां शामिल हैं.
कई जगहों पर मानसून में सड़कें ज़्यादातर कच्ची या ऊबड़-खाबड़ बजरी वाली होती हैं.
उदाहरण के लिए अकेले अल्लूरी सीताराम राजा (ASR) ज़िले में ही 600 से ज़्यादा आदिवासी गांव सड़क संपर्क से वंचित हैं.
इससे निवासियों को स्वास्थ्य सेवा, बाज़ारों या स्कूलों तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. पुलों और जल निकासी की व्यवस्था न होने के कारण, जब भी मूसलाधार बारिश होती है तो पूरी बस्तियां कई दिनों तक अलग-थलग पड़ जाती हैं.
स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कनेक्टिविटी की कमी सिर्फ़ एक असुविधा से कहीं ज़्यादा है. यह ज़िंदगी और मौत का सवाल है. अंदरूनी इलाकों तक एम्बुलेंस नहीं पहुंच पातीं. आदिवासी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर मरीज़ों को ले जाने के लिए ग्रामीणों द्वारा ढोए जाने वाले अस्थायी बांस के स्ट्रेचर डोलियों पर निर्भर हैं.
उदाहरण के लिए, मार्च 2023 में 20 वर्षीय गर्भवती महिला सुकुरु लक्ष्मी को प्रसव पीड़ा होने पर एएसआर जिले के रचाकिलम गांव से गुम्मंती तक चार किलोमीटर तक डोली में ढोया गया. वहां से उसे एम्बुलेंस में पिन्नाकोटा अस्पताल ले जाया गया.
बाद में उसे अनकापल्ले जिले के कोटापाडु क्षेत्र के अस्पताल ले जाया गया क्योंकि उस समय वहां कोई डॉक्टर नहीं था.
फिर उसके रिश्तेदार उसे विशाखापत्तनम ले गए और विशाखापत्तनम के किंग जॉर्ज अस्पताल (KGH) में भर्ती कराया, जो बदहाल सड़क व्यवस्था और आस-पास कहीं भी चिकित्सा देखभाल के अभाव का संकेत था.
बुनियादी सुविधाओं की कमी
आर्थिक तंगी समस्या को और गहरा कर देती है.
कॉफ़ी, हल्दी और बाजरा उगाने वाले किसानों को कटाई के बाद नुकसान का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनकी उपज समय पर बाज़ार नहीं पहुंच पाती.
बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित होती है क्योंकि स्कूल अक्सर कई किलोमीटर दूर होते हैं और परिवहन की कोई भरोसेमंद सुविधा नहीं होती.
यहां तक कि बिजली और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी अंदरूनी इलाकों में अनिश्चित बनी हुई हैं.
मानसून के दौरान भूस्खलन पहले से ही कमज़ोर संपर्कों को तोड़ सकता है, खाद्य आपूर्ति रोक सकता है और सरकारी पहुंच को बाधित कर सकता है.
‘आदवी थल्ली बाटा’ उम्मीद की किरण
ऐसे में ‘आदवी थल्ली बाटा’ को आशा भरी नज़रों से देखा जा रहा है. प्रधानमंत्री जन-जमन, मनरेगा और राज्य सरकार की उप-योजना निधि से प्राप्त 1 हज़ार 5 करोड़ के बजट के साथ इस कार्यक्रम के तहत 625 दूरदराज की आदिवासी बस्तियों को जोड़ने वाली 1,069 किलोमीटर सड़कें बनाने का वादा किया गया है.
इस योजना में मौजूदा पटरियों पर पक्की सड़क बनाना, पूरी तरह से नए हिस्से बनाना, नालियां, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और पेयजल जैसी आवश्यक सुविधाएं जोड़ना शामिल है.
अकेले एएसआर ज़िले में कोंध और सवारा जैसे विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के उत्थान के लिए 1 हज़ार 50 करोड़ का पैकेज निर्धारित किया गया है.
अधिकारियों ने बताया कि आरक्षित वन क्षेत्रों से होकर बनने वाली 128 सड़कों में से 98 को वन मंज़ूरी मिल चुकी है. 186 खंडों पर काम चल रहा है, जबकि 20 और खंडों पर निविदा प्रक्रिया चल रही है.
हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं…पहाड़ी मार्गों के लिए बोल्डर विस्फोट में समय लगता है, तीव्र ढलानों के लिए विशेष इंजीनियरिंग उपायों की आवश्यकता होती है और लगातार बारिश के कारण ये सभी काम धीमा हो जाता है.
इस साल जनजातीय कल्याण के लिए कुल 7 हज़ार 557 करोड़ के राज्य आवंटन के साथ, ‘आदवी थल्ली बाटा’ आंध्र प्रदेश की आबादी के सबसे उपेक्षित वर्ग के लिए बेहतर रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के नए सिरे से प्रयास का प्रमुख केंद्र बन गया है.
लेकिन इसकी असली सफलता तब मापी जाएगी जब इसे पूरी तरह से लागू किया जाएगा, जिससे आदिवासियों को कीचड़ भरे रास्तों पर डोलियों का उपयोग करने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी.
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