लद्दाख में हाल ही में हुई हिंसा ने वहां के आदिवासी समुदाय की परेशानियों को सामने ला दिया है.
लद्दाख के लोग लंबे समय से अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
खासकर आदिवासी समुदाय चाहता है कि उन्हें संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा दिया जाए. इससे उन्हें अपनी जमीन, संसाधन और संस्कृति को बचाने में मदद मिलेगी.
इस मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से बड़ा आंदोलन चल रहा है.
इस आंदोलन का नेतृत्व जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक कर रहे हैं.
उन्होंने 10 सितंबर से भूख हड़ताल शुरू किया है और राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकारों की मांग कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि ये मांगें लद्दाख के लोगों के भविष्य और उनकी संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए बहुत जरूरी हैं.
सोनम वांगचुक ने इस आंदोलन को ‘Generation Z Revolution’ बताया, जिसमें खासतौर पर युवा लोग शामिल हैं. युवा पीढ़ी अपनी जमीन और पहचान को बचाने के लिए आवाज उठा रही है.
लेकिन इस आंदोलन के बीच हिंसा की घटना हुई, जिसमें चार लोग मारे गए और कई लोग घायल हुए.
प्रदर्शनकारियों ने कई सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचाया. इस हिंसा के बाद केंद्र सरकार ने सोनम वांगचुक पर आरोप लगाए कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों को हिंसा के लिए उकसाया.
साथ ही, उनकी संस्था हिमालयन Himalayan institute of alternative Ladakh (HIAL) के विदेशी फंडिंग के मामले की जांच शुरू कर दी.
सरकार ने कहा कि इस संस्था ने विदेशी फंडिंग के नियमों का उल्लंघन किया है.
सोनम वांगचुक ने इन आरोपों को पूरी तरह गलत बताया और कहा कि यह उनके खिलाफ एक साजिश है.
उन्होंने कहा कि उनका मकसद सिर्फ आदिवासी लोगों के अधिकारों की मांग करना है और उन्होंने कभी भी किसी को हिंसा के लिए नहीं कहा.
इस मामले में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने भी वांगचुक का समर्थन किया है.
उन्होंने कहा कि वांगचुक ने हमेशा अहिंसा का रास्ता अपनाया है और प्रदर्शनकारियों को हिंसा का दोष देना गलत है.
उन्होंने सरकार से अपील की है कि वे लद्दाख के लोगों की मांगों को गंभीरता से सुनें और उनका समाधान करें.
लद्दाख के आदिवासी समुदाय को चिंता है कि अगर उन्हें विशेष दर्जा नहीं मिला तो उनकी जमीन और संसाधनों पर बाहरी लोग कब्जा कर सकते हैं.
इससे उनकी संस्कृति, जीवनशैली और पहचान खतरे में पड़ जाएगी.
आदिवासी लोग चाहते हैं कि उन्हें संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार मिलें, ताकि वे अपने इलाकों में खुद शासन कर सकें और अपनी जमीन को सुरक्षित रख सकें.
यह पूरा मामला सिर्फ लद्दाख का नहीं है, बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ी सीख है.
जब आदिवासी लोगों की मांगों को नजरअंदाज किया जाता है तो वे आंदोलन करने को मजबूर हो जाते हैं.
इसके साथ ही, सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे समय रहते इन समस्याओं को समझें और समाधान करें ताकि हिंसा न हों.