HomeAdivasi DailyLok Sabha Election 2024: झारखंड में आदिवासी अस्मिता पर लड़ाई

Lok Sabha Election 2024: झारखंड में आदिवासी अस्मिता पर लड़ाई

झारखंड के लोकसभा चुनाव में आदिवासी पहचान एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिस पर बीजेपी बचाव की मुद्रा में नज़र आ रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह सभी का ज़ोर इस बात पर रहा है कि बीजेपी ने पहली बार एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया. लेकिन हेमंत सोरेन की ग़िरफ़्तारी एक ऐसा मुद्दा है जो उनके इस दावे को बेअसर कर देता है.

26 फीसदी आदिवासी आबादी (Tribal population) वाले राज्य झारखंड (Jharkhand) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के दौरान 31 जनवरी को कथित जमीन हड़पने के मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की गिरफ्तारी के कारण पहचान की राजनीति केंद्र में आ गई है.

इसके साथ जुड़ा हुआ है “सरना” धर्म के लिए नए सिरे से आह्वान, छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासी समुदाय जिस धर्म का पालन करते हैं.  ये दोनों मुद्दे बीजेपी को परेशान कर रहे हैं.

जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) समेत झारखंड के भाजपा नेताओं से प्रकृति पूजा पर अपना रुख बताने को कहा गया है.

पिछले साल हेमंत सोरेन ने यह मुद्दा उठाया था और बताया था कि आदिवासी लोग हिंदू नहीं हैं और न ही वे सरना के अलावा किसी अन्य धर्म का पालन करते हैं.

भाजपा के घोषित हिंदुत्व एजेंडे को देखते हुए, भाजपा के राज्य प्रमुख बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) राज्य के पहले संथाल मुख्यमंत्री, इस मुद्दे पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं.

विपक्ष ने तुरंत मौके का फायदा उठाया और कहा कि आदिवासी लोगों की उपेक्षा की गई है. सिंहभूम जिले के मुख्यालय चाईबासा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए, कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने लोगों को याद दिलाया कि “भाजपा ने एक आदिवासी मुख्यमंत्री को जेल में डाल दिया है.”

पिछले सप्ताह हरियाणा के पंचकुला में आयोजित एक सेमिनार में भी राहुल गांधी ने हेमंत सोरेन की ग़िरफ्तारी को मुद्दा बनाया. दो मुख्यमंत्रियों को गिरफ़्तार किया गया था. लेकिन आदिवासी मुख्यमंत्री अभी भी जेल में है.

उन्होंने कहा कि पूरा सिस्टम आदिवासी, दलित और पिछडों के ख़िलाफ़ इस धारणा के साथ काम करता है कि वे भ्रष्ट होते हैं.

इससे पहले चाईबासा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने एक चुनावी रैली में कहा कि यह उनकी सरकार थी जिसने स्वतंत्रता संग्राम में बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी नेताओं की भूमिका को पहचाना और उनकी जयंती को “जनजातीय गौरव दिवस” ​​के रूप में मनाया और एक जनजातीय संग्रहालय भी बनाया.

इसके अलावा भाजपा नेताओं ने बार-बार इस तथ्य को उजागर किया है कि उन्होंने संथाल जनजाति से आने वाली झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) को राष्ट्रपति नियुक्त किया और कांग्रेस ने उनके खिलाफ एक उम्मीदवार खड़ा किया था.

झारखंड में संथाल प्रमुख जनजाति है. इसके अलावा ओरांव, मुंडा, खरिया, हो और पहाड़िया जनजातियां भी महत्वपूर्ण संख्या में मौजूद हैं. ऐसा लगता है कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से राज्य की समग्र आदिवासी पहचान में मतभेदों का पर्दाफाश हो गया है, जिसका मुकाबला करने के लिए भाजपा को कड़ा संघर्ष करना होगा.

2019 के लोकसभा चुनाव में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 12 सीटें (भाजपा ने 11 और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन ने [AJSU] 1) जीती थी.

लेकिन विपक्ष को इसके तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनाव में अपने अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, जब उसने 81 में से 47 सीटें जीती थीं.

अब वह हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद आदिवासी वोटों के अपने पक्ष में एकजुट होने की भी उम्मीद कर रही है.

इस बार बीजेपी 13 सीटों पर और आजसू 1 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. वहीं कांग्रेस-जेएमएम-आरजेडी-सीपीआई (एमएल) गठबंधन में कांग्रेस 7, झारखंड मुक्ति मोर्चा 5, राष्ट्रीय जनता दल 1 और सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) मुक्ति 1 सीट पर चुनाव लड़ रही है.

पांच आदिवासी सीटों- दुमका, सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा और राजमहल में कड़ा मुकाबला है. अन्य नौ सीटों पर भाजपा को बढ़त मिलती दिख रही है क्योंकि आंशिक रूप से कांग्रेस ने राजनीतिक दिग्गजों को मैदान में उतारने का फैसला किया है.

संथाल परगना डिवीजन का मुख्यालय दुमका, सोरेन परिवार और बाबूलाल मरांडी दोनों का गृह क्षेत्र है. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, जिन्होंने हेमंत की जगह ली और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, कोल्हान डिवीजन से आते हैं.

राज्य में पांच डिवीजन हैं: पलामू, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर, संथाल परगना और कोल्हान.

कोल्हान

कोल्हान क्षेत्र में भाजपा ने मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को चुना है, जो सिंहभूम से कांग्रेस सांसद थीं. उन्होंने 2019 में बीजेपी के दिग्गज नेता लक्ष्मण गिलुवा के खिलाफ जीत हासिल की थी और इस साल फरवरी में बीजेपी में शामिल हो गईं.

संख्यात्मक रूप से कहें तो गीता के लिए यह कोई प्रतियोगिता नहीं है. क्योंकि उनकी जनजाति, हो, की  इस सीट पर 51 फीसदी मतदाता हैं, जबकि उनकी झामुमो प्रतिद्वंद्वी जोबा माझी की जनजाति संथाल की संख्या 11 फीसदी है.

लेकिन फैक्ट यह है कि सिंहभूम के सभी छह विधानसभा क्षेत्र इंडिया ब्लॉक के पास हैं (पांच झामुमो के पास और एक कांग्रेस के पास) जो जोबा के लिए फायदेमंद हो सकता है.

इसके अलावा जोबा पांच बार विधायक रह चुकी हैं और 2019 से 2024 तक हेमंत सोरेन सरकार में समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास और पर्यटन मंत्री रहीं. मधु कोड़ा ने 2009 में निर्दलीय के रूप में यह सीट जीती थी.

दुमका

दुमका एक ऐसी सीट है जिसके नतीजे झारखंड की राजनीति की भविष्य की दिशा तय कर सकते हैं. शिबू सोरेन ने आठ बार और मरांडी ने दो बार इसे जीता. 2019 में बीजेपी के सुनील सोरेन ने यहां जीत हासिल की.

हेमंत की गिरफ़्तारी के बाद इस निर्वाचन क्षेत्र के साथ भावनात्मक जुड़ाव को महसूस करते हुए, भाजपा ने शिबू सोरेन के दिवंगत बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की पत्नी और हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन को उम्मीदवार बना दिया.

यह जानते हुए कि पार्टी का एक वर्ग सुनील को हटाए जाने से नाराज है, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनके लिए भविष्य की भूमिका का वादा किया है.  

अपना नामांकन दाखिल करने के बाद दुमका में एक रैली को संबोधित करते हुए, सीता ने भ्रष्टाचार को लेकर झामुमो सरकार की आलोचना करते हुए कहा था, “विपक्ष इस बात को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है कि हेमंत को सलाखों के पीछे भेजा गया क्योंकि वह आदिवासी थे और आदिवासी लोगों को कमजोर किया जा रहा है. वे मोदीजी को ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं जो संविधान को नष्ट कर देगा. आप गुमराह मत होइए.”

कांग्रेस के इस आरोप पर कि मोदी और भाजपा आरक्षण खत्म करने पर आमादा हैं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जवाब दिया, “किसने मां का दूध पिया है जो आपका आरक्षण खत्म कर दे.”

गरीबी से जूझ रहे दुमका में सिंह ने बार-बार “धन, दौलत, धनवान” वाक्यांश का इस्तेमाल करते हुए यह बात कही कि भाजपा इस क्षेत्र में समृद्धि लाएगी.

वहीं झामुमो ने दुमका से नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है, जो पुराने समय के व्यक्ति हैं जिन्होंने कई वर्षों तक शिबू सोरेन के साथ काम किया है.

दक्षिणी छोटानागपुर

दक्षिण छोटानागपुर में स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा, झामुमो के कालीचरण मुंडा के साथ दोबारा मुकाबले में हैं.

2019 में अर्जुन ने कालीचरण को सिर्फ 1,400 से अधिक वोटों से हराया था. ऐसा इसलिए था क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आंतरिक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण अर्जुन मुंडा को हराने की पूरी कोशिश की थी.

अनुभवी राजनेता करिया मुंडा ने इस सीट से आठ बार जीत हासिल की है. सात बार भाजपा के सदस्य के रूप में और एक बार जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में.

इस निर्वाचन क्षेत्र में मुंडाओं की आबादी 50 प्रतिशत है इसलिए अन्य समुदायों के वोट निर्णायक हो सकते हैं. हालांकि, भाजपा के भीतर अर्जुन और मरांडी के बीच सबसे अच्छे समीकरण नहीं हैं और अर्जुन की एकमात्र उम्मीद यह है कि मरांडी उन्हें चैन की सांस लेने देंगे.

झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव भगत दक्षिणी छोटानागपुर के लोहरदगा में भाजपा के समीर ओरांव से मुकाबला कर रहे हैं. वहीं झामुमो के पूर्व विधायक चमरा लिंडा के निर्दलीय चुनाव लड़ने से भगत के लिए स्थिति कठिन हो सकती है. जबकि ओरांव सीट जीतने के लिए अच्छी स्थिति में हैं.

गोड्डा (संथाल परगना) में भाजपा के निशिकांत दुबे का मुकाबला कांग्रेस के प्रदीप यादव से है, जो पहले बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) में थे.

दो बार के सांसद दुबे इस क्षेत्र में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और एक हवाई अड्डे सहित कई विकास परियोजनाएं लाए हैं और इससे उन्हें सफलता मिल सकती है.

2014 में मुख्यमंत्री के रूप में रघुबर दास को चुनने के भाजपा के फैसले ने आदिवासी लोगों को नाराज कर दिया था. जिन्होंने इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन का समर्थन किया.

लेकिन बाबूलाल मरांडी को पार्टी में वापस लाने के बाद  भाजपा को उम्मीद है कि वह हेमंत सोरेन को जेल भेजने पर अपेक्षित आदिवासी प्रतिक्रिया को बेअसर कर देगी.

भाजपा न केवल 14 लोकसभा सीटों में से एक बड़ा हिस्सा हासिल करने की उम्मीद कर रही है, बल्कि इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है.

भाजपा और आजसू को कुर्मी और अन्य सदान (पुराने गैर-आदिवासी सह-निवासियों) वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने की उम्मीद है. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन का एक कारण यह था कि दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. 

वैसे मुख्य मुकाबला भाजपा और इंडिया ब्लॉक के बीच है. लेकिन एक तीसरे खिलाड़ी, झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति के उभरने के संकेत हैं, जिसका नेतृत्व कुर्मी जाति के एक युवा नेता, जयराम महतो कर रहे हैं.

रांची, गिरिडीह और हज़ारीबाग जैसी सीटों पर समिति को युवाओं के बीच कुछ समर्थन मिलता दिख रहा है, जो मानते हैं कि पारंपरिक राजनीतिक खिलाड़ियों ने उनके लिए बहुत कुछ नहीं किया है.

गिरिडीह में जहां से जयराम महतो चुनाव लड़ रहे हैं, आजसू के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी और जेएमएम के मथुरा महतो जैसे दिग्गजों की मौजूदगी के बावजूद नई पार्टी के लिए समर्थन ज्यादा स्पष्ट लगता है. तीनों उम्मीदवार कुर्मी जाति से हैं.

उत्तर प्रदेश में एक अन्य युवा दलित नेता चन्द्रशेखर आजाद रावण की तर्ज पर जयराम महतो का उदय कुर्मी पार्टी के लिए चिंता का विषय हो सकता है.

सोरेन परिवार

चुनाव के नतीजे राज्य के सबसे लोकप्रिय और प्रमुख राजनीतिक परिवार, सोरेन के भाग्य का फैसला कर सकते हैं. शिबू सोरेन अपने शक्तिशाली अतीत की धुंधली छाया हैं, उनके बेटे और राजनीतिक उत्तराधिकारी, हेमंत सोरेन, सलाखों के पीछे हैं और परिवार के भीतर तीव्र प्रतिद्वंद्विता और पद के लिए प्रतिस्पर्धी दावों के कारण पार्टी ने जल्दबाजी में परिवार के बाहर से एक नया मुख्यमंत्री चुना है.

चुनाव के बाद चंपई सोरेन की जगह हेमंत की पत्नी कल्पना को शामिल किए जाने की संभावना है. जिन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता सरफराज अहमद द्वारा सीट खाली किए जाने के बाद झामुमो के टिकट पर 19 अप्रैल को गांडेय विधानसभा उपचुनाव लड़ा था.

निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “सोरेन परिवार ने मधु कोड़ा के बाद कोल्हान क्षेत्र के एक और नेता का अपमान करने का फैसला किया है. जहां शिबू सोरेन ने मधु कोड़ा को सीएम पद से हटा दिया था और खुद सीएम बन गए थे. वहीं अब हेमंत सोरेन ने फैसला किया है कि चंपई सोरेन को सीएम पद से हटा दिया जाएगा और कल्पना सोरेन मुख्यमंत्री बनेंगी.”

झारखंड की राजनीति और आदिवासी

व्यापक प्रचार अभियान जिस बात पर चर्चा नहीं करता वह है एक मंत्री के निजी सहायक के घरेलू नौकर के घर से लगभग 35 करोड़ रुपये की नकदी की बरामदगी या राज्य की राजधानी, रांची के नजदीक के गांवों में अभी भी महिलाओं को पानी लाने के लिए ढलान पर उतरते हुए देखा जा सकता है.

विकास की इस अनुपस्थिति को साल 2000 में राज्य के गठन के बाद से राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. राज्य में 24 वर्षों में 12 मुख्यमंत्री हुए हैं.

विडंबना यह है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री गैर-आदिवासी रघुबर दास थे.

भाजपा 2004 से ही बढ़त पर है, जब उसने सिर्फ एक लोकसभा सीट जीती थी. इसने 2009 में 8 सीटें, 2014 में 12 और 2019 में 11 सीटें जीतीं.

वहीं कांग्रेस ने 2004 में छह सीटें जीतीं, 2009 में एक, 2014 में कोई नहीं और 2019 में एक सीट जीती.

जबकि झामुमो ने 2004 में चार, 2009 और 2014 में दो-दो सीटें जीतीं और 2019 में सिर्फ एक सीट जीती.

विकास की कमी के साथ-साथ जल, जंगल, जमीन की लूट भी बदस्तूर जारी है. बड़े स्तर पर बेरोज़गारी और तुरंत पैसे कमाने के लालच ने जामताड़ा जैसे स्थानों में युवाओं को साइबर अपराध की ओर धकेल दिया है.

यहां तक कि रांची के नजदीक आदिवासी गांवों में भी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. सैकड़ों गांवों के लिए पीने के पानी का स्रोत चुआ (उथले गड्ढे) या झरना है. नलों से पानी आज भी सपना है.

केंद्र द्वारा दिसंबर 2021 में जल जीवन मिशन के तहत 9,544 करोड़ रुपये की लागत से झारखंड के लिए 315 जलापूर्ति योजनाओं को मंजूरी देने के बाद भी राज्य में मुश्किल से 20 प्रतिशत घरों में नल का पानी पहुंच पाया है.

खूंटी में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस योजना में कथित रूप से बाधा डालने के लिए राज्य में झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार को दोषी ठहराया.

ऐसे बुनियादी मुद्दे चुनाव को किस हद तक प्रभावित करेंगे यह स्पष्ट नहीं है. लेकिन सभी राजनीतिक दल चुनावी लाभ के लिए आदिवासी पहचान के मुद्दे को बेधड़क उठा रहे हैं.

(यह रिपोर्ट फ्रंटलाइन अंग्रेजी में छपी है)

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