त्रिपुरा में सरकार के CAA लागू करने का फ़ैसले से राजनीतिक बहस शुरू हो गई है. इस बहस के बीच भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) ने शनिवार को आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य यानि टिपरालैंड राज्य की मांग को दोहराया है.
लेकिन इससे ज़रूरी बात ये है कि उसने कहा है कि सिर्फ़ जिला परिषद (ADC) को के दायरे से बाहर रखने से आदिवासी हितों की सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी.
आईपीएफटी की यह मांग राज्य सरकार के यह कहने के कुछ दिनों बाद आई है कि वह त्रिपुरा में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लागू करने के लिए केंद्र के हालिया दिशानिर्देश के अनुसार काम कर रही है.
दरअसल, त्रिपुरा सरकार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) के कार्यान्वयन के लिए राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति और जिला स्तरीय समिति के गठन के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
सभी जिलाधिकारियों को समितियां बनाने और अधिकारियों को नामित करने के लिए कहा गया है.
शनिवार को अगरतला में एक मीडिया ब्रीफिंग में IPFT के उपाध्यक्ष प्रदीप देबबर्मा ने कहा, “केवल एडीसी को सीएए के दायरे से बाहर रखकर आदिवासी हितों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती है. अगर सीएए राज्य के गैर-एडीसी क्षेत्रों में लागू किया जाता है तो यह राज्य की जनसंख्या की जनसांख्यिकीय संरचना को बदल देगा. और इससे आदिवासी और भी अल्पसंख्यक हो जाएंगे. लोकसभा और विधानसभा में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें कम हो जाएंगी, आदिवासियों को कम आरक्षण का लाभ मिल पाएगा.”
हालांकि, आदिवासी नेता ने छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों को सीएए के दायरे से बाहर करने के लिए केंद्र सरकार को धन्यवाद दिया और कहा कि 1955 में देश के नागरिकता अधिनियम के मूल संस्करण में असम को छोड़कर 6वीं अनुसूची क्षेत्रों के भीतर किसी को भी कानूनी अधिकार देने पर कोई प्रतिबंध नहीं था.
देबबर्मा ने कहा, सीएए ने आधिकारिक तौर पर यह अनिवार्य कर दिया है कि छठी अनुसूची क्षेत्रों के भीतर संबंधित आदिवासी समुदायों को छोड़कर किसी को भी नागरिकता का अधिकार नहीं दिया जा सकता है. हम इसे अपनी नैतिक जीत मानते हैं.”
आईपीएफटी, जिसे 2009 में स्वर्गीय एनसी देबबर्मा द्वारा गठित किया गया था. उसने मुख्य रूप से आदिवासियों के लिए एक अलग टिपरालैंड राज्य की अपनी मुख्य मांग को प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया, पार्टी ने यह भी मांग की कि अवैध अप्रवासियों की पहचान की जाए और उन्हें डिपोर्ट किया जाए.
त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC), जिसका गठन 1972 में हुआ था, राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के 70 प्रतिशत हिस्से में फैला हुआ है. इसमें राज्य की लगभग 30 प्रतिशत आबादी रहती है, जिसमें 19 मान्यता प्राप्त आदिवासी समुदाय शामिल हैं.
आईपीएफटी नेता ने यह भी दावा किया कि अगर त्रिपुरा एडीसी क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग राज्य का गठन किया जाता है तो त्रिपुरी आदिवासियों के लिए आरक्षण संबंधी मुद्दे अब नहीं उठेंगे.
देबबर्मा ने कहा, “केवल एडीसी को सीएए के दायरे से बाहर रखकर आदिवासी हितों की रक्षा नहीं की जा सकती.”
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की जनजातीय परिषद को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए कि बाहरी लोगों को एडीसी के भीतर कानूनी अधिकार न मिलें.
उन्होंने कहा, “स्थानीय मूल निवासी प्रशासन या टीटीएएडीसी को यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए कि बाहरी लोग एडीसी में प्रवेश नहीं कर सकें. नहीं तो यह कानून केवल नाम मात्र के लिए लागू किया जाएगा; बाहरी घुसपैठ को व्यवहारिक रूप से नहीं रोका जा सकेगा. वर्तमान एडीसी प्रशासन के पास ऐसी शक्तियां नहीं हैं. ऐसी घुसपैठ को तभी रोका जा सकता है जब एडीसी क्षेत्रों को राज्य की शक्तियां दी जाएं.”
प्रदीप देबबर्मा की यह टिप्पणी सीएम के उस बयान के कुछ दिनों बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार सीएए को लागू करने पर केंद्र के नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुसार काम करेगी.
सीएम की टिप्पणियों के तुरंत बाद जनगणना निदेशालय से एक आदेश आया, जिसमें सभी जिला मजिस्ट्रेटों को उन व्यक्तियों के आवेदनों पर कार्रवाई करने के लिए समितियां बनाने और अधिकारियों को नामित करने का निर्देश दिया गया, जो सीएए के तहत नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं.
अधिकारी ने यह भी कहा कि राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति और जिला स्तरीय समितियां जो आवेदनों को स्वीकार करने, जांचने और अंतिम रूप देने की प्रक्रिया की निगरानी करेंगी, पहले ही गठित की जा चुकी हैं और संबंधित अधिकारी फिलहाल ऑनलाइन दायर किए गए आवेदनों को संभाल रहे हैं.
वहीं इस हफ्ते की शुरुआत में टिपरा मोथा के संस्थापक और शाही वंशज से नेता बने प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा (Pradyot Kishore Manikya Debbarma) ने कहा कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) से बात की है और उन्हें आश्वासन दिया गया है कि पूर्वोत्तर भारत के सभी 6वीं अनुसूची वाले क्षेत्रों को सीएए के दायरे से बाहर रखा जाएगा.
टिपरा मोथा राज्य सरकार में भाजपा का बड़ा आदिवासी गठबंधन भागीदार है.
नागरिक संशोधन अधिनियम
लोकसभा चुनावों की घोषणा के कुछ दिन पहले 11 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के नियमों को अधिसूचित किया था.
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पेश और 2019 में संसद द्वारा पारित सीएए का उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 से पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों – हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है.
इस साल सीएए के नियम अधिसूचित होने के बाद असम में ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन हुआ था. दिसंबर 2019 में जब सीएए संसद में पारित हुआ था तो राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें गुवाहाटी में हुई हिंसा भी शामिल थी.
सीएए को दिसंबर 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई. हालांकि, मुस्लिम संगठनों और समूहों ने धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया और इसका विरोध किया.
इस कानून के बनने के बाद देशभर में महीनों तक विरोध प्रदर्शनों का दौर चला था, जो कोविड-19 महामारी के कारण थम गया.
कानून को आलोचकों द्वारा मुस्लिम विरोधी और असंवैधानिक बताया जाता रहा है.
वहीं बंगाल, तमिलनाडु जैसे कई गैर-भाजपा शासित राज्यों का कहना है कि वे अपने राज्यों में सीएए लागू नहीं होने देंगे.