असम सरकार ने हाल ही में जनसंख्या नियंत्रण नीति में एक संवेदनशील बदलाव किया है.
असम में 2017 से लागू जनसंख्या और महिला सशक्तिकरण नीति के तहत दो से अधिक बच्चे वाले उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य घोषित किया गया था.
इसके साथ ही उन्हें कुछ और अन्य सरकारी लाभों से भी वंचित किया गया था. लेकिन अब सरकार ने कुछ विशेष समुदायों को इस नीति के दायरे से बाहर रखने का फैसला लिया है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को एक कैबिनेट बैठक के बाद राज्य के जनजातीय समुदायों, चाय-जनजाति (Tea Tribes), मोरन (Moron) और मटक (Mottock) समुदायों के लिए दो-बच्चे (two-child) के नियम को शिथिल करने की घोषणा की.
मुख्यमंत्री ने बताया कि मोरन समुदाय की आबादी इस समय करीब एक लाख के आसपास है.
सरकार ने इस फैसले से पहले समाजशास्त्रियों और विशेषज्ञों से सलाह ली है.
मुख्यमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि इन समुदायों की जनसंख्या वृद्धि पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो ये समुदाय आने वाले 50 वर्षों में अपना अस्तित्व ही खो देंगे.
सरमा ने कहा, “जहां तक जनजातीय लोगों का सवाल है, चाय बागानों के लोगों का सवाल है, मोरन और मटक का सवाल है, हम दो बच्चों के मानदंड में ढील दे रहे हैं. क्योंकि वे सूक्ष्म समुदाय (Micro communities) हैं. अगर हम उनकी जनसंख्या पर प्रतिबंध लगाते हैं तो 50 साल बाद उनका अस्तित्व समाप्त हो सकता है. इसलिए हमने विभिन्न सामाजिक वैज्ञानिकों से राय ली है और हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जहां तक इन चार समुदायों का सवाल है, हमारी सख्त जनसंख्या नियंत्रण नीति में ढील देने की ज़रूरत है.”
चार नहीं तीन नए समुदाय को मिलेगी छूट?
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने चार समुदायों को जनसंख्या नियंत्रण नीति में छूट देने की घोषणा की है.
मुख्यमंत्री ने जनजातीय लोगों, चाय बागान के लोगों, मोरन और मटक लोगों का नाम लिया.
लेकिन यहां गौरतलब है कि सितंबर 2021 में सरकार ने अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पारंपरिक वनवासियों को पहले ही इस नियम से छूट दे दी थी.
भले ही मुख्यमंत्री ने चार समुदायों को जनसंख्या नियंत्रण नियम में छूट देने की बात कही है, लेकिन फिलहाल सरकार ने केवल तीन नए समुदायों को इस नियम से छूट दी है क्योंकि जनजातीय लोगों को पहले ही इस नियम में ढील मिली हुई है.
फिलहाल कौन-से समुदाय नियम के दायरे से बाहर है?
2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की कुल जनसंख्या करीब 3 करोड़ 12 लाख है. इसमें 38.8 लाख आबादी एसटी सूची और करीब 22 लाख आबादी एससी सूची में शामिल समुदायों की है.
राज्य की आबादी का लगभग 12.45 प्रतिशत हिस्सा जनजातीय और 7.15 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जातियों का है.
असम में अनुसूचित जनजातियों को दो श्रेणियों में बांटा गया है, हिल एरिया (स्वायत्त ज़िले) और प्लेन्स एरिया.
प्लेन एरिया की एसटी सूचि में कछार के बर्मन, बोरो/बरो कछारी, देओरी, होजाई, कछारी/सोनवाल, लालुंग, मेच, मिरी और राभा शामिल हैं.
वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले चकमा, डिमासा कछारी, गारो, हाजोंग, हमार, खासी–जैन्तिया–सिन्थेंग–पनार–वार–भोई–लिंग्न्गम, कुकी जनजाति, लखेर, ताई बोलने वाले मान, मिज़ो (लुशाई), मिकिर, नागा, पावी और सिन्थें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल हैं.
यह सूची अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976 और 2011 की जनगणना में अधिसूचित है.
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice & Empowerment) द्वारा जारी सूची के अनुसार असम में बांसफोर, भुइँमाली (माली), ब्रिटियल बनिया (बनिया), धूपी (धोबी), डुगला (ढोली), हिरा, जलकियोट, झालो (मालो, झालो-मालो), कैवर्त (जलिया), लालबेगी, महारा, मेहतर (भंगी), मूची (ऋषि), नामशूद्र, पत्नि, सूत्रधार नामक जातियां अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल हैं.
यानी उपरोक्त सभी जातियों और जनजातियों के साथ अब चाय जनजाति कहे जाने वाले समुदाय, मोरन और मटक समुदाय को भी जनसंख्या नियंत्रण नियम के दायरे से बाहर रखा गया है.
जनसंख्या और महिला सशक्तिकरण नीति की पृष्ठभूमि
असम सरकार ने 2017 में जनसंख्या और महिला सशक्तिकरण नीति लागू की थी.
यह नीति मुख्य रूप से राज्य में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी.
इसमें दिशा-निर्देश दिए गए थे कि दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य होंगे.
इसके साथ ही ऐसे लोग पंचायत चुनावों में भी भाग नहीं ले सकेंगे और इन्हें कुछ सरकारी लाभों से वंचित रखने की बात कही गई थी.
हालांकि 2017 की यह नीति केवल गाइडलाइंस यानी दिशानिर्देश के रूप में थी, मतलब इसका पालन करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं था.
बाद में, 2019 में असम कैबिनेट ने इसे ‘असम पब्लिक सर्विस (स्मॉल फैमिली नॉर्म्स इन डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) रूल्स, 2019’ के तहत इसे 1 जनवरी 2021 से लागू करने का निर्णय लिया.
तब से राज्य में दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्ति सरकारी नौकरी, पंचायत चुनाव और कुछ अन्य सरकारी लाभों के लिए कानूनी रूप से अयोग्य हो गए.
इसके बाद सितंबर 2021 में ही सरकार ने एससी, एसटी सूचि में शामिल समुदायों को इस नियम में छूट देने का फैसला लिया था.
अब असम सरकार ने समाजशास्त्रियों से विचार-विमर्श कर कुछ ऐसे समुदायों को भी इस नियम में छूट देने की घोषणा की है, जो एससी या एसटी किसी भी लिस्ट में शामिल नहीं हैं.
इस कदम का उद्देश्य राज्य की जनसांख्यिकी में आ रहे बदलाव को दूर करना और राज्य के जनजातीय समुदायों की चिंताओं को दूर करना बताया गया है.
चुनावी रणनीति या सामाजिक न्याय
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा जनसंख्या नियंत्रण नीति में कुछ समुदायों को छूट देने का निर्णय केवल कानून या सामाजिक नीति का मामला नहीं है. इसके पीछे चुनावी और राजनीतिक आयाम भी साफ़ तौर पर दिखाई दे रहे हैं.
असम में आगामी विधानसभा चुनाव मार्च-अप्रैल 2026 में होने हैं और इससे पहले ही राज्य में छह समुदाय – अहोम, चुटिया, मटक, मोरन, कोच राजबंशी और चाय जनजाति, अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा पाने के लिए लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. ये आंदोलन राज्य में राजनीतिक संवेदनशीलता को बढ़ा रहे हैं.
लेकिन अभी भी सरकार ने इन छह समुदाय की एसटी दर्जे की मुख्य मांग को दरकिनार करते हुए केवल कुछ छोटी-मोटी मांगों को पूरा करके इन समुदायों को बहलाने का प्रयास जारी रखा है.
जैसे सरकार ने टी ट्राइब समुदायों को भूमि अधिकार देने की भी घोषणा की है.
इसके बारे में बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “अगर हम भूमि सीमा कानून में संशोधन करते हैं, तो लगभग 96,000 एकड़ (2.9 लाख बीघा) ज़मीन करीब 4 लाख टी ट्राइब परिवारों को दी जा सकेगी. आज़ादी के 75 साल बाद यह असम के लिए एक ऐतिहासिक सामाजिक न्याय पहल होगी.”
इसी कड़ी में इन 6 समुदायों में से तीन समुदायों मटक, मोरन और चाय जनजाति को जनसंख्या नियंत्रण नीति में छूट देने का फैसला किया गया है.
यह कदम दो तरह से देखा जा सकता है. एक तरफ़ यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक संवेदनशील पहल के रूप में सामने आता है क्योंकि ये समुदाय लंबे समय से सीमित जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
जनसंख्या पर दो बच्चों की सीमा लागू होने से इन समुदायों की आबादी और उनकी सामाजिक स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता था.
इसे देखते हुए सरकार ने विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों से विचार-विमर्श करके नीति में ढील देने का निर्णय लिया.
दूसरी तरफ़ इस निर्णय को चुनावी रणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है.
आगामी चुनावों में एसटी दर्जे की मांग कर रहे छह समुदायों में से तीन को लाभ देने का कदम भाजपा के लिए राजनीतिक संतुलन बनाने जैसा है.
यदि सभी समुदायों को एसटी दर्जा तुरंत दे दिया जाए तो मौजूदा एसटी समुदाय नाराज़ हो सकते हैं और उनका वोट बैंक भाजपा के हाथों से निकल सकता था.
वहीं, अगर कोई भी लाभ नहीं दिया जाता तो एसटी दर्जे की मांग कर रहे समुदायों का समर्थन विरोधियों की तरफ़ जा सकता था.
इस तरह, सरकार ने अपने लिए ‘बीच का रास्ता’ अपनाने की कोशिश की है. तीन समुदायों को जनसंख्या नियंत्रण कानून से राहत देकर भाजपा ने चुनावी संवेदनशीलता को संतुलित करने की कोशिश की है.
विशेषज्ञों का मानना है कि असम जैसे बहु-जातीय और बहु-सांस्कृतिक राज्य में इस तरह के निर्णय हमेशा संवेदनशील होते हैं. क्योंकि जनसंख्या वृद्धि, माइग्रेशन और नागरिकता के मुद्दे गहरे सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव रखते हैं. इसलिए इस कदम को सिर्फ सामाजिक न्याय या चुनावी रणनीति में सीमित कर देखना कठिन है. यह दोनों पहलुओं का मिश्रण है.

