HomeIdentity & Lifeकोमाराम भीम की याद में तेलंगाना ने उत्सव मनाया

कोमाराम भीम की याद में तेलंगाना ने उत्सव मनाया

कोमाराम भीम की पुण्यतिथि को इस साल पहली बार राज्य स्तरीय उत्सव के रूप में मनाया गया.

आज 7 अक्टूबर 2025 को तेलंगाना में एक महान गोंड आदिवासी नायक कोमाराम भीम की पुण्यतिथि मनाई गई.

इस अवसर पर जोड़ेघाट में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए गए. आदिवासी कल्याण मंत्री अदलुरी लक्ष्मण कुमार और अन्य नेताओं ने इस कार्यक्रम में भाग लिया.

जिला कलेक्टर वेंकटेश दोहरे ने भीम की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की. कई जिलों से आदिवासी समुदाय के लोग इस आयोजन में शामिल हुए.

आदिवासी समाज द्वारा उनकी पुण्यतिथि हर साल आष्वयुज पूर्णिमा यानी अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है.

कौन थे कोमाराम भीम ?

कोमाराम भीम गोंड आदिवासियों के एक क्रांतिकारी नेता थे. उन्होंने अपने जीवन को ‘जल-जंगल-जमीन’ के अधिकारों के लिए समर्पित किया.

1926 से 1940 तक उन्होंने निज़ाम के अत्याचारों और अंग्रेज़ों के शोषण के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध किया.

उनका नेतृत्व आदिवासियों को संगठित करने और उनके प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार दिलाने के लिए था. 7 अक्टूबर 1940 को जोड़ेघाट में निज़ाम के सैनिकों के साथ लड़ते हुए भीम और उनके 15 साथियों ने बलिदान दिया.

कोमाराम भीम का आंदोलन किसी धर्म या राजनीतिक विचारधारा पर आधारित नहीं था.

वे आदिवासियों को न्याय दिलाने और उनके प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार सुरक्षित करने के लिए लड़ते रहे.

आज भी आदिवासी समाज उन्हें ‘पेन’ के रूप में सम्मान देता है और उनकी स्मृति जोड़ेघाट में आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से जीवित रखता है.

2025 की पुणयतिथि खास क्यों ?

इस बार उनकी पुण्यतिथि को राज्य उत्सव के रूप में मनाया गया.

राज्य सरकार ने कोमाराम भीम की 85वीं पुण्यतिथि के मद्देनज़र जनजातीय कल्याण विभाग के प्रस्ताव के बाद सरकारी आदेश संख्या 286 जारी कर उनकी पुण्यतिथि को राज्य स्तरीय उत्सव घोषित किया.

पहले अधिकांश लोग केवल स्थानीय स्तर पर ही उनके संघर्ष और बलिदान को जानते थे. सरकारी मान्यता सीमित थी और आदिवासी समुदाय अपने नायक को याद करते हुए ही पुण्यतिथि मनाता था.

लेकिन राज्य स्तरीय उत्सव घोषित होने से अब न केवल स्थानीय लोग, बल्कि पूरे तेलंगाना राज्य और अन्य क्षेत्रों के आदिवासी भी उनके बलिदान को जान सकेंगे.

यह बदलाव भीम की विरासत और उनके संघर्ष को व्यापक रूप से पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.

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