13 अक्टूबर की रात को बस्तर के घने जंगल में एक अज्ञात जगह पर मैं भी भारत की टीम को एक नक्सल नेता (Naxal Leader) से मिलवाया गया.
इस नेता को उनके दस्ते के लोग भास्कर दादा के नाम से पुकार रहे थे. भास्कर दादा से मैं भी भारत के सहयोगी संवाददाता अंकुर तिवारी से लंबी बात हुई.
इस बातचीत में उन्होंने बताया कि आख़िर सीपीआई (माओवादी) ने इस समय पर ही क्यों हथियार छोड़ कर मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया है.
क्या पार्टी के भीतर पहले से इस मुद्दे पर चर्चा चल रही थी? क्या माओवादी सरकार के इस प्रण से डर गए कि अब देश से नक्सलवाद का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा?
जो लोग अभी भी हथियार नहीं छोड़ रहे हैं उनका क्या कहना है? इन सभी सवालों का विस्तार से उन्होंने जवाब दिया? इस इंटरव्यू के दो दिन बाद उन्होंने अपने 50 गुरिल्लों के साथ पुलिस को हथियार सौंप दिए.
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