HomeLaw & Rightsआदिवासी लड़कों के क्रिकेट पर बवाल, जंगल की लूट पर नहीं सवाल

आदिवासी लड़कों के क्रिकेट पर बवाल, जंगल की लूट पर नहीं सवाल

आदिवासी लड़कों ने खेल का मैदान बनाया तो सरकार और प्रशासन तुरंत हरकत में आ गया. लेकिन आदिवासियों की पुनर्वास और ज़मीन की माँग को सरकार सालों से नज़रअंदाज़ कर रही है.

नागरहोल टाइगर रिज़र्व में आयोजित एक क्रिकेट टूर्नामेंट को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. बिरसा मुंडा जयंती के उपलक्ष्य में 19 नवंबर को बालेकुवु हाड़ी के पास आयोजित इस टूर्नामेंट का वीडियो वायरल होने के बाद वन विभाग ने जांच शुरू की है.

कुछ पर्यावरणवादियों ने वीडियो साझा करते हुए आरोप लगाया कि टूर्नामेंट के लिए पेड़ काटे गए और वन्यजीव कानूनों का उल्लंघन हुआ. उन्होंने सेटेलाइट पिक्चर भेजकर राज्य सरकार को टूर्नामेंट के लिए जंगल को नुकसान पहुंचाने की शिकायत की थी. 

इस शिकायत के आधार पर वन मंत्री ईश्वर बी खांडरे ने 20 नवंबर को विभाग से सात दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी है.

आदिवासियों का विरोध, दावों पर सवाल

अपने उपर लगे आरोप के बाद नागरहोल के आदिवासी समुदाय ने 25 नवंबर को नानाची गेट पर प्रदर्शन किया. करीब 30 आदिवासी पुरुष, महिलाएँ और बच्चे पोस्टर लेकर खड़े हुए. 

इन आदिवासियों ने सवाल उठाया कि बिना किसी तथ्यात्मक जांच के उनके उत्सव और खेल आयोजन पर आपत्ति क्यों जताई जा रही है.

अगले दिन नागरहोल आदिवासी जमापाले हक्कु स्थापना समिति तथा अन्य संगठनों ने वन मंत्री को पत्र लिखकर पर्यावरणवादियों और विभाग की कार्रवाई पर कड़ा आपत्ति जताई है. 

इस पत्र में कहा गया कि टूर्नामेंट के लिए किसी भी पेड़ को नहीं काटा गया और जो दावे फैलाए जा रहे हैं, वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं. समिति ने स्पष्ट किया कि वर्षों से वन विभाग स्वयं सफारी मार्गों के किनारे लैंटाना और अन्य झाड़ियों को साफ करता रहा है.

आदिवासी समुदाय का तर्क है कि यदि शहरों के लोग मैदान, क्लब और स्टेडियम का उपयोग कर सकते हैं, तो आदिवासी भी अपने पूर्वजों की धरती पर खेल और उत्सव मना सकते हैं.

आदिवासी अधिकारों पर ही निगाह क्यों?’

आदिवासी संगठन ने सरकार का ध्यान इस पर भी दिलाया कि वर्षों से वे वनाधिकार, वनवास और पुनर्वास संबंधी समस्याओं को उठाते रहे हैं, लेकिन उन पर कभी इतनी त्वरित कार्रवाई नहीं हुई. जबकि एक क्रिकेट टूर्नामेंट पर तुरंत शिकायत और जांच शुरू कर दी गई है.

आदिवासी संगठन ने कहा है कि टाइगर रिज़र्व की घोषणा के समय भी उनसे परामर्श नहीं  किया गया था.  जबकि कानून के तहत सरकार को ग्राम सभाओं को सूचना देना और यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके आजीविका और विकास से जुड़े अधिकार प्रभावित न हों.

बांदीपुर टाइगर रिज़र्व में पिच का सवाल

इस विवाद के बीच आदिवासी कार्यकर्ताओं ने बांदीपुर टाइगर रिज़र्व के भीतर बने एक कंक्रीट के क्रिकेट पिच का मुद्दा भी उठाया है. उनका कहना है कि जब संरक्षित क्षेत्र में कंक्रीट का पिच मौजूद है, तो नागरहोल में युवाओं द्वारा खेल आयोजन पर आपत्ति क्यों की जा रही है.

नागरहोल का यह मामला अब सिर्फ एक क्रिकेट टूर्नामेंट का विवाद नहीं रह गया है. बल्कि आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार, वन विभाग की नीतियां और पर्यावरणीय संगठनों की भूमिका को लेकर एक बड़ा सवाल बन गया है.

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