HomeIdentity & Lifeत्रिपुरा: सीएए लागू करने का फैसला राजनीतिक समीकरण बदल सकता है

त्रिपुरा: सीएए लागू करने का फैसला राजनीतिक समीकरण बदल सकता है

त्रिपुरा सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) 2019 को लागू करने का फैसला कर लिया है. इस फैसले ने सरकार में शामिल जनजातीय लोगों की पार्टी टिपरा मोथा के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. क्योंकि जनजातीय समुदायों को चिंता है कि राज्य में पहले से ही अल्पसंख्यक हो चुके जनजातीय समुदाय का हिस्सा और कम हो सकता है.

त्रिपुरा में नागरिकता संशोधन कानून 2019 (Citizenship Amendment Act (CAA)2019) को लागू करने के फैसला बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन रहा है. इस सिलसिले में मुख्य विपक्षी दल सीपीआई (एम) और कांग्रेस पार्टी ने इस क़ानून को लागू करने से जुड़ी कई आशंकाएं व्यक्त की हैं. 

त्रिपुरा सरकार की तरफ़ से सीएए लागू करने के फैसले से टिपरा मोथा पार्टी भी परेशान नज़र आ रही है. इस सिलसिले में पार्टी ने अभी तक कोई औपचारिक पोजिशन नहीं बताई है. लेकिन पार्टी के नेता प्रद्योत किशोर ने अपने समर्थकों के नाम एक संदेश जारी किया है.

इस संदेश में प्रद्योत किशोर ने कहा है कि वे सीएए के सभी पहलुओं पर विचार कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि त्रिपुरा की जनजातीय जनसंख्या पहले से ही अपनी ज़मीन पर अल्पसंख्यक है. इसलिए यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

उन्होंने अपने संदेश में कहा है कि अगर सीएए त्रिपुरा के मूल निवासियों यानि आदिवासियों के ख़िलाफ़ जाता है तो फिर वे और उनकी पार्टी क़ानून लड़ाई के साथ साथ राजनीतिक लड़ाई के लिए भी तैयार हैं. उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी इस मामले में चुप नहीं बैठेगी.

टिपरा मोथा की इस मुद्दे पर बेचैनी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह फ़िलहाल खुद त्रिपुरा में सरकार का हिस्सा है. इससे पहल टिपरा मोथा चीफ़ ने सोशल मीडिया पर यह कहा था कि त्रिपुरा के जनजातीय इलाकों में संविधान की अनुसूचि 6 (Schedule 6 of Constitution) लागू है. इसलिए इन इलाकों में सीएए लागू नहीं हो सकता है.

उन्होंने सीएए का भय दिखा कर जनजातीय लोगों को भड़काने का आरोप भी कुछ लोगों पर लगाया था. उन्होंने कहा था कि सीएए की धारा 6 बी यह प्रावधान करती है कि जनजातीय इलाकों में सीएए लागू नहीं होगा.

लेकिन इस सिलसिले में कांग्रेस पार्टी के आदिवासी संगठन ने राज्य के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में एक ज़रूरी मुद्दा उठाया है. पार्टी ने कहा है कि यह बात सही है कि सीएए को छठी अनुसूचि के इलाकों में लागू नहीं करने का प्रावधान किया गया है.

लेकिन राज्य के अलग अलग हिस्सों में बांग्लादेश से आए लोगों को अगर नागरिकता मिल जाएगी तो फिर वे राज्य में कहीं भी बसने से रोका नहीं जा सकता है. इस पत्र में कहा गया है कि त्रिपुरा की जनजातियां अपनी ही ज़मीन पर पहले ही अल्पसंख्यक बन चुके हैं. 

अब यह आशंका है कि सीएए लागू होने के बाद यह स्थिति और गंभीर हो जाएगी. क्योंकि अब सीएए ने बांग्लादेश से आने वाले हिंदू शर्णार्थियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए साल 2014 को कटऑफ माना है. जबकि इससे पहले यह कटऑफ़ साल 1971 था.

त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल सीपीआई (एम) ने भी सीएए को लागू करने के फैसले पर सरकार को चेतावनी दी है. पार्टी ने एक औपचारिक बयान में यह कहा है कि राज्य में पहले से ही प्रवासियों की संख्या बढ़ रही है. अगर सीएए लागू होता है तो यह संख्या और भी बढ़ जाएगी.

पार्टी ने सरकार को चेतावनी दी है कि उसके इस कदम से राज्य के जनजातीय इलाकों में सामाजिक और आर्थिक जीवन प्रभावित होगा.

इसके साथ ही पार्टी ने यह भी कहा है कि सरकार अगर सीएए को लागू करने का फैसला टालती नहीं है तो वह सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करेंगे.

सीपीआई (एम) ने जनजातीय इलाकों में सबसे मजबूत पार्टी टिपरा मोथा की भी आलोचना की है. अपने बयान में पार्टी ने कहा है कि टिपरा मोथा ने बेशक ये कहा है कि जनजातीय इलाकों में सीएए लागू नहीं होगा, लेकिन उनकी इस बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.

कांग्रेस पार्टी मुख्य सचिव को दिये पत्र में यह आशंका ज़ाहिर करते हुए कहा है कि राज्य की स्थिति को देखते हुए पूरे राज्य में ही सीएए को लागू नहा किया जाए. 

त्रिपुरा में नागरिकता का मुद्दा एक बड़ा मसला है. जनजातीय बहुल इलाकों में मजबूत आधार रखने वाली टिपरा मोथा के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी कि वह सरकार में रहते हुए इस मुद्दे पर अपनी कोई स्वतंत्र राय बनाए. 

इसलिए इस मामले पर टिपरा मोथा तुरंत कोई बयान जारी करने से बच रही है. लेकिन इस मुद्दे पर ज़्यादा देर चुप रहना भी उसे राजनीतिक तौर पर महंगा पड़ सकता है.

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