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आदिवासियों की ज़मीन पर शिवा जी महाराज युद्ध स्मारक का निर्माण क्यों हो?

मुंबई प्रशासन ने यह आश्वासन दिया है कि अगर आदिवासियों की ज़मीन का अधिग्रहण (Tribal land acquisition ) होगा तो उनका पुनर्वास भी किया जाएगा. लेकिन ज़रूरी सवाल तो यह है कि आदिवासियों की ज़मीन उनकी मर्ज़ी के बिना ली ही क्यो जाएगी?

5 जून 2023 को महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री  मंगल प्रभात लोधा ने ये घोषणा की  थी  कि गोराई की एमटीडीसी ज़मीन पर शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल को समर्पित एक  युद्ध संग्रहालय बनाया जायेगा. इस म्यूज़ियम को  136 एकड़ भूमि पर 50 करोड़ की लागत से तैयार करने का प्रस्ताव है.

इस संग्रहालय के बनने से मुंबई की 6 आदिवासी बस्तियां मुख्य रूप से प्रभावित होंगी. इन बस्तियों में बाबर पाड़ा (3 एकड़) , जमाजद पाड़ा (6 एकड़) , मोथाडोंगरी पाड़ा (5 एकड़) छोटाडोंगरी पाड़ा , बिरसा मुंडा पाड़ा और बोरखल पाड़ा (सभी 3-4 एकड़ ) शामिल हैं.

दिसंबर के अंतिम दिनों में जब दुनिया में नया साल और क्रिसमस का जश्न मनाया जा रहा था तब 24 दिसंबर को मुंबई के लगभग छह हज़ार आदिवासी बाबर पाड़ा की भूमि पर जनजातीय समुदाय महोत्सव मनाने और इस संकट पर चर्चा करने के लिए इक्कठे हुए .

वारली समुदाय का दावा है कि जिस भूमि पर म्यूजियम बनाए जाने की स्वीकृति मिली है , वह उनकी भूमि है जिसपर वे बरसों से निर्भर हैं.

कौन किस पक्ष में?

बिरसा मुंडा की अस्मिता कोलेकर ने कहा है ‘हमें संग्रहालय से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे हमारी जमीन पर नहीं बनाया जाना चाहिए.’

कुसुम किसान बाबर का कहना है कि पर्यटन मंत्री की घोषणा के बाद से महाराष्ट्र टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एमटीडीसी) के लोग कई बार वहां पुलिस के साथ आ चुके हैं.

जिससे उन्हें न केवल अपनी ज़मीन छिनने का डर है बल्कि उन्हें आजीविका गवाने का भी खतरा दिखाई दे रहा है. गायत्री सिंह , बॉम्बे हाई कोर्ट की वरिष्ठ वकील हैं.

इन्होंने 2011 में भी एमटीडीसी के पर्यटन प्रस्ताव के संबंध में जनहित याचिका दायर की थी जिसके फैसले में हाई कोर्ट ने एमटीडीसी के गोरई और मनोरी गांव के आस पास होटल और रिजॉर्ट्स बनाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था ।.

गायत्री ने बताया है कि वारली जनजाति और मछुआरों ने शिवाजी युद्ध संग्रहालय परियोजना के खिलाफ अंतरिम आवेदन दायर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

वागोभा हैबिटेट फाउंडेशन के संचालक , संजीव वलसन कहते हैं कि वास्तविक मुंबईकर आदिवासी ही हैं जो वनों की देखभाल करते हैं और स्थाई जीवन व्यतीत करते हैं. मुंबई उपनगर के कलेक्टर , राजेंद्र भोसले ने कहा है कि यदि आदिवासी समुदाय अधिकृत भूमि पर खेती करते हैं तो वे ऐसी परियोजनाओं से प्रभावित नहीं होंगे. 

कलेक्टर के अनुसार आदिवासियों को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। यदि उनका स्थान प्रभावित होगा भी तो भी उन्हें सुरक्षित पुनर्वास दिया जायेगा.

छोटाडोंगरी पाड़ा से वनिता कोट्टल ने कहा कि उन्होंने पहले भी अपने अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन किया है और ज़रूरत पड़ने पर आगे भी  अपने निवास और वनों को बचाने के लिए ऐसा करते रहेंगे.

वे ज़ोर देकर कहती हैं कि शहर पहले ही उनकी बस्तियों के नज़दीक आ चुके हैं और अब सरकार शिवाजी म्यूजियम के नाम पर हमारी जमीन पर कब्ज़ा करना चाहती है , ये हमारा घर है और हम इसे नही छोड़ेंगे.

इस मामले में प्रशासन ने यह आश्वासन ज़रूरी दिया है कि अगर शिवाजी महाराज युद्ध संग्रहालय के निर्माण के लिए आदिवासियों की ज़मीन ली जाती है तो उनका पुनर्वास किया जाएगा. लेकिन यह एक वाजिब सवाल है कि आदिवासियों की सहमति के बिना उनकी ज़मीन लेने की योजना क्यों बनाई जा रही है.

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