HomeIdentity & Life2018 में आदिवासी बस्तियों को जोड़ने वाले पुल बह गए थे, अभी...

2018 में आदिवासी बस्तियों को जोड़ने वाले पुल बह गए थे, अभी तक नहीं बने हैं

आदिवासी बस्तियों को जोड़ने वाले पुल बह जाने से मानो ये बस्तियां दुनिया से ही कट गई हैं. एक सर्वे में यह पता चला है कि इन पुलों के बह जाने से इस बस्ती के आदिवासियों की ज़िंदगी का लगभग हर पहलू प्रभावित हुआ है.

केरल के एर्नाकुलम ज़िले की कई आदिवासी बस्तियों को ज़िले के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले दो पुल 2018 की बाढ़ में बह गये थे. इस घटना को पांच साल हो गए हैं लेकिन अभी तक इन पुलों को फिर से बनाए जाने का काम नहीं हुआ है.

ज़िले की कुंजीपारा, तालावेचुपारा, वरियम, वेलारमुकटु और मीनकुलम बस्तियों के आदिवासी इन पुलों के ना होने से काफी परेशान हैं. हाल ही में ज़िला विधि सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authority) के एक सर्वे में इन आदिवासी बस्तियों के लोगों ने यह शिकायत की है. 

यहां के लोगों ने सर्वे में बताया है कि दो पुलों के टूट जाने से लोगों की जीना दूभर हो गया है. इन बस्तियों तक किसी का भी पहुंचना बेहद मुश्किल काम है क्योंकि मुख्य मार्ग से इन बस्तियों तक पहुंचने के लिए उबड़ खाबड़ रास्ते से जाना पड़ता है. 

यहां की बस्तियों में रहने वाले लोगों ने सर्वे में लाइफ मिशन (LIFE mission project) प्रोजेक्ट के तहत मिलने वाली साहयता को बढ़ाने की मांग भी रखी.

इन आदिवासियों का कहना है कि जब से पुल टूटे हैं, यहां तक घर बनाने के लिए सामान पहुंचाने के लिए ट्रांसपोर्ट की लागत बढ़ गई है. 

यहां के आदिवासियों ने बताया कि सरकार की तरफ से मिलने वाले 6 लाख रूपये में घर बनाना अब मुश्किल हो गया है. सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया है कि आदिवासी मांग करते हैं कि इस राशी में कम से कम दो लाख रूपये बढ़ाये जाने चाहिएं. 

एर्नाकुलम की इन आदिवासी बस्तियों में कई परिवारों के घर 2018 की बाढ़ में बह गए थे. सर्वे में लोगों ने यह शिकायत भी दर्ज की है कि घर बह जाने के बाद उनसे जो साहयता राशी का वादा किया गया था, वह भी अभी तक नहीं मिली है.

आदिवासी कहते हैं कि लाइफ मिशन प्रोजेक्ट बहुत अच्छा है, लेकिन साथ में शिकायत भी करते हैं कि कई परिवार अभी भी इस परियोजना के तहत मकान के लिए पैसे की बाट जोह रहे हैं. 

इस आदिवासी बस्ती में एक और बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. अब इन आदिवासियों के लिए सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाला राशन मंहगा हो गया है. क्योंकि पहले की तरह राशन उनके घर तक नहीं पहुंच रहा है. 

क्योंकि राशन बांटने वाले लोगों को घर तक राशन पहुंचाने के लिए जो अतिरिक्त पैसा मिलता था वो राज्य सरकार ने बंद कर दिया है. इस वजह से आदिवसियों को राशन लेने के लिए दूर दुकानों पर जाना पड़ता है.

इस सर्वे की रिपोर्ट को केरल में आदिवासी मामलों के मंत्री राधाकृष्णन्न को सौंप दिया गया है. उम्मीद है कि राज्य सरकार इस रिपोर्ट में उठाए गए मसलों पर तुरंत कार्यवाही करेगी. क्योंकि ये सभी मसले ऐसे हैं जिन्हें टालना आदिवासियों के लिए बेहद ख़तरनाक हो सकता है. 

क्योंकि इन आदिवासी बस्तियों में कुपोषण पहले से ही चिंता का विषय रहा है. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments