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सूडान से सुरक्षित निकाले गए लोगों में 200 कर्नाटक के हक्की पिक्की आदिवासी

दावणगेरे के डीसी शिवानंद कापशी ने मंगलवार को कहा कि जिले के दोनों गांवों गोपनाल के 30 और अस्तापनहल्ली के 13 लोगों को युद्धग्रस्त सूडान से बचाया गया है. उन्होंने कहा कि फंसे हुए भारतीय नागरिकों को सूडान में भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने बचा लिया है और उन्हें पोर्ट सूडान की ओर ले जाया जा रहा है.

युद्धग्रस्त सूडान में कर्नाटक के फंसे 200 से अधिक हक्की पिक्की आदिवासी कथित तौर पर पोर्ट सूडान जाने के लिए बसों में सवार हो गए हैं और बाद में वे बेंगलुरु पहुंचेंगे. वे भारत सरकार द्वारा अपने 2 हजार से अधिक नागरिकों को वापस लाने के लिए शुरू किए गए ऑपरेशन कावेरी के तहत भारत आने वाले दूसरे बैच का हिस्सा होंगे.

ये सभी मैसूरु, शिवमोग्गा, दावणगेरे, एचडी कोटे, चन्नागिरी और आसपास के क्षेत्रों में आदिवासी बस्तियों के हैं.

आदिवासियों में से एक ने कहा, “हम राहत महसूस कर रहे हैं और खुश हैं लेकिन अभी फिर भी घबराए हुए हैं. जब तक हम यहां से पूरी तरह निकल नहीं जाते हमें चैन नहीं मिलेगा. हम चिंता और डर के कारण सो नहीं पाए हैं. गोलियों की आवाज और बम धमाकों की आवाजें अब भी हमें डराती हैं.”

वहीं अब युद्धग्रस्त अफ्रीकी देश से आदिवासियों के निकलने की सूचना मिलने के बाद उनके परिवार वाले उनके भारत आने की तारीख जानने के लिए बेचैन हैं.

शांडी, जो लगभग नौ महीने पहले अपनी पत्नी के साथ सूडान गए थे उन्होंने कहा, “हम मंगलवार दोपहर बसों में सवार हुए. पोर्ट सूडान तक पहुंचने में सड़क मार्ग से लगभग 7-8 घंटे लगेंगे. हमें बताया गया है कि वहां से हम समुद्र के रास्ते सऊदी अरब जाएंगे. इसके बाद हमारे कागजात का वेरिफिकेशन होगा फिर हमें बेंगलुरु के लिए सीधी उड़ान भरने की अनुमति दी जाएगी.”

एक अन्य आदिवासी ने कहा, “मुझे नहीं पता कि मुझे अपने होमटाउन और फिर अपने गांव तक पहुंचने में कितना समय लगेगा. लेकिन यहां से निकलना ही बहुत बड़ी बात है. मुझे लग रहा था मैं यहां से नहीं लौटूंगा. मैंने करीब एक हफ्ते ठीक से खाना नहीं खाया था.”

विदेश मंत्रालय के कार्यालय ने मंगलवार को ट्वीट किया कि 278 फंसे हुए भारतीयों का पहला जत्था आईएनएस सुमेधा पर पोर्ट सूडान से रवाना हुआ और जेद्दा पहुंचेगा. विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि वे बचाए गए सभी लोगों को सभी जरूरी सामान की आपूर्ति कर रहे हैं.

इस बीच, कर्नाटक राज्य प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि ऑपरेशन के पहले बैच में कर्नाटक के लोग हैं.  

दावणगेरे के डीसी शिवानंद कापशी ने मंगलवार को कहा कि जिले के दोनों गांवों गोपनाल के 30 और अस्तापनहल्ली के 13 लोगों को युद्धग्रस्त सूडान से बचाया गया है. उन्होंने कहा कि फंसे हुए भारतीय नागरिकों को सूडान में भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने बचा लिया है और उन्हें पोर्ट सूडान की ओर ले जाया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा, “एक बार जब वे पोर्ट पर पहुंच जाएंगे तो उन्हें सुरक्षित रूप से भारत लाया जाएगा और उन्हें घर वापस लाने के लिए बचाव अभियान जोरों पर है.”

डीसी ने कहा कि सभी लोगों को सुरक्षित बचाव स्थलों पर ले जाया जा रहा है. दूतावास अफ्रीकी देश में फंसे सभी लोगों के संपर्क में है.

कौन हैं हक्की-पिक्की आदिवासी?

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के SPPEL (लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण के लिए योजना) के मुताबिक, हक्की पिक्की’ कर्नाटक के प्रमुख आदिवासी समुदायों में से एक है. कन्नड़ में ‘हक्की’ शब्द का इस्तेमाल ‘पक्षी’ और ‘पिक्की’ का इस्तेमाल ‘पकड़ने’ के लिए किया जाता है. यानी इस समुदाय का पारंपरिक व्यवसाय ‘पक्षी पकड़ने’ के रूप में जाना जाता है.

2001 की जनगणना के मुताबिक, उत्तर भारत से विस्थापित हक्की पिक्की समुदाय की कर्नाटक में आबादी लगभग 8414  है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, इनकी आबादी 11 हजार 892 थी.

हक्की-पिक्की आदिवासी समुदाय कर्नाटक में मुख्य तौर पर शिमोगा, दावणगेरे और मैसूर में रहते हैं. द्रविड़ भाषाओं से घिरे होने और दक्षिणी भारत में रहने के बावजूद, इस समुदाय के लोग इंडो आर्यन भाषा बोलते हैं. उनकी मातृभाषा को ‘वागरी’ नाम दिया गया. ये लोग घर पर ‘वागरी’ भाषा का इस्तेमाल करते हैं जबकि दैनिक कामकाज के दौरान कन्नड़ भाषा बोलते हैं. यूनेस्को ने हक्की पिक्की को लुप्तप्राय भाषाओं में से एक बताया है.

1970 के दशक में भारत में पक्षी शिकार पर प्रतिबंध लगने के बाद इस जनजाति के सदस्यों ने पौधों से औषधीय उत्पाद बनाना शुरू कर दिया. ये समुदाय अपनी स्वदेशी दवाओं के लिए जाने जाते हैं. घने जंगलों में रहने वाली यह जनजाति पेड़- पौधे और जड़ी-बूटियों पर आधारित इलाज करते हैं. समुदाय के लोगों के पास जड़ी-बूटी संबंधी चिकित्सा का अच्छा ज्ञान है, इनकी कई अफ्रीकी देशों में मांग है.

यही वजह है कि समुदाय के सदस्य पिछले कई सालों से अफ्रीकी देशों में जाते रहते हैं. वे अपने उत्पादों को बेचने के लिए अक्सर अपने परिवारों के साथ सूडान, सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों की यात्रा करते हैं. इस समुदाय के सभी सदस्यों के पास पासपोर्ट हैं.

दरअसल, सूडान में आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं बहुत कम हैं सो हक्की पिक्की लोगों की जड़ी बूटी आधारित औषधियों  को वहां अच्छी स्वीकृति मिलती गई और सूडान एक बढ़िया बाजार बन गया. इसी के चलते हक्की पिक्की समुदाय के लोग सूडान में हैं.

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